ETV Bharat / state

kanker News: बस्तर में शादी को यादगार रखने की अनोखी परंपरा - बस्तर में शादी को यादगार रखने की अनोखी परंपरा

विवाह एक पवित्र बंधन होता है जिसमे दो लोग एक दूसरे के साथ सात जन्मों के अटूट बंधन में बंधते हैं. लोग अपनी शादी को यादगार बनाने के लिए आजकल कई तरह के जतन करते Tribals of Bastar हैं. जैसे वीडियोग्राफी और एलबम.लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि आज के आधुनिक युग में बस्तर के आदिवासी इन चीजों से काफी दूर है. आदिवासी समाज में भी शादियां होती हैं और ये शादियां एक दो नहीं बल्कि कई पीढ़ियों तक याद की जाती Unique tradition of keeping marriage memorable हैं.या यूं कहें कि सूरज की पहली किरण से ही लोग शादी की स्मृतियों को अपने आसपास देखते Unique tradition of tribals हैं. इन स्मृतियों की खास बात ये है कि इसके लिए ना तो इलेक्ट्रिसिटी की जरुरत है, ना टीवी और ना ही मोबाइल की. बस जब भी शादी की याद ताजी करनी हो तो इस स्मृति के पास चले जाईए. इसे देखते ही आपकी शादी की याद तरो ताजा हो जाएगी. kanker News

Unique tradition of keep marriage memorable
बस्तर में शादी को यादगार रखने की अनोखी परंपरा
author img

By

Published : Jan 5, 2023, 2:35 PM IST

बस्तर में शादी को यादगार रखने की अनोखी परंपरा

कांकेर : हम आपको बस्तर में विवाह के बाद होने वाली एक ऐसी रिवाज के बारे में बताएंगे जो आपने इससे पहले कभी ना सुना होगा और ना ही देखा होगा. आदिवासी बाहुल्य उत्तर बस्तर कांकेर जिले के कागबरस गांव (Kagbaras Village) हैं. जहां शादी में एक अनोखी रस्म अदाएगी की जाती Tribals of Bastar है. इस गांव में शादियों को यादगार बनाने के लिए खास तरह का स्मृति तैयार की जाती है. जो शादी की याद के साथ आने वाले पीढ़ियों के लिए भी एक अमिट निशानी की तरह होती है. अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसी कौन सी चीज है जो लोगों को कभी भी शादी की याद ताजा करने के लिए काफी है. वो भी किसी सुदूर इलाके के गांव में जहां वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी का दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं.लेकिन ये सच है आईए हम आपको लेकर चलते हैं ऐसे ही एक जगह जहां पर शादियों को यादगार बनाने के लिए आदिवासियों ने अनोखी परंपरा शुरु की.

आदिवासियों की अनोखी परंपरा : जिला मुख्यालय से लगभग 140 किलोमीटर दूर कोयलीबेड़ा ब्लॉक (Kolyibeda Block) जंगलों से घिरा हुआ है. यहां के ग्रामीण आदिवासी परंपरा के अनुसार शादी विवाह के संपन्न होने के बाद लकड़ी का बड़ा सा स्मृति चिन्ह बनाकर अपने घरों के सामने गाड़ देते Unique tradition of tribals हैं . ऐसा ही कागबरस गांव के एक आंचला परिवार के लोग विवाह की स्मृति चिन्ह के रूप में अपने घर के बाहर एक स्तंभ लगाए हुए है ताकि उस स्मारक को उनकी आने वाली पीढ़ी देख सके.कागबरस के स्थानीय ग्रामीण दशरथ आंचला बताते है कि '' उनका विवाह पिछले साल मई के महीने में संपन्न हुआ था. जिसके बाद उनके घर के बाहर स्मृति के तौर पर एक स्तंभ लगाया गया है. ताकि उनकी आने वाली पीढ़ी इसे देख सके और अपने रीति रिवाजों को न भूले. आंचला बताते हैं कि उनके घर के बाहर हर पीढ़ी का स्तंभ लगा हुआ है. जिसमें उनके पिता,चाचा, दादा और अन्य परिवार के लोग शामिल हैं. इस तरह के स्तंभ गाड़ने की परंपरा सिर्फ गोंड जाति के आंचला गोत्र के लोग ही ऐसा करते हैं.

ये भी पढ़ें- नक्सलगढ़ में शिक्षा का बुरा हाल

क्या होता है स्मृति स्तंभ : ग्रामीण योगेश नरेटी का कहना है कि '' स्मारक या स्तंभ लगाने की परंपरा आदिवासी समुदाय में शुरू से ही रही है. मृत्यु के बाद पत्थर गाड़कर स्तंभ बनाना हो या शादी के बाद यह स्मृति स्तंभ . आदिवासी गोंड जाति के लोग हमेशा से ही इस तरह के स्मृतियों में विश्वास रखते आ रहे हैं. साथ ही योगेश नरेटी ने बताया ये स्तंभ विवाह के समय मड़वा मंडप में लगाया जाता. उसी के बीच का भाग होता है. जिसे स्थानीय भाषा में मांडो कहा जाता है. विवाह संपन्न होने के बाद स्मृति चिन्ह के रूप में घरों के बाहर इसी मांडो को लगाया जाता है. छत्तीसगढ़ का आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर अपनी अनोखी परंपरा, आदिवासी रीति रिवाज, कला, संस्कृति के लिए पूरे देश विदेशों में पहचाना जाता है. बस्तर के आदिवासियों में जो परंपरा देखने को मिलती है वह शायद ही किसी अन्य जगहों पर देखने को मिलेगी. आदिवासी अपनी परंपरा को अपना मुख्य धरोहर मानते हैं. यही वजह है कि आदिवासियों में सदियों से चली आ रही परंपरा आज भी कायम है और आदिवासी ग्रामीण अपनी इस परंपरा को बखूबी निभाते आ रहे हैं,

बस्तर में शादी को यादगार रखने की अनोखी परंपरा

कांकेर : हम आपको बस्तर में विवाह के बाद होने वाली एक ऐसी रिवाज के बारे में बताएंगे जो आपने इससे पहले कभी ना सुना होगा और ना ही देखा होगा. आदिवासी बाहुल्य उत्तर बस्तर कांकेर जिले के कागबरस गांव (Kagbaras Village) हैं. जहां शादी में एक अनोखी रस्म अदाएगी की जाती Tribals of Bastar है. इस गांव में शादियों को यादगार बनाने के लिए खास तरह का स्मृति तैयार की जाती है. जो शादी की याद के साथ आने वाले पीढ़ियों के लिए भी एक अमिट निशानी की तरह होती है. अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसी कौन सी चीज है जो लोगों को कभी भी शादी की याद ताजा करने के लिए काफी है. वो भी किसी सुदूर इलाके के गांव में जहां वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी का दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं.लेकिन ये सच है आईए हम आपको लेकर चलते हैं ऐसे ही एक जगह जहां पर शादियों को यादगार बनाने के लिए आदिवासियों ने अनोखी परंपरा शुरु की.

आदिवासियों की अनोखी परंपरा : जिला मुख्यालय से लगभग 140 किलोमीटर दूर कोयलीबेड़ा ब्लॉक (Kolyibeda Block) जंगलों से घिरा हुआ है. यहां के ग्रामीण आदिवासी परंपरा के अनुसार शादी विवाह के संपन्न होने के बाद लकड़ी का बड़ा सा स्मृति चिन्ह बनाकर अपने घरों के सामने गाड़ देते Unique tradition of tribals हैं . ऐसा ही कागबरस गांव के एक आंचला परिवार के लोग विवाह की स्मृति चिन्ह के रूप में अपने घर के बाहर एक स्तंभ लगाए हुए है ताकि उस स्मारक को उनकी आने वाली पीढ़ी देख सके.कागबरस के स्थानीय ग्रामीण दशरथ आंचला बताते है कि '' उनका विवाह पिछले साल मई के महीने में संपन्न हुआ था. जिसके बाद उनके घर के बाहर स्मृति के तौर पर एक स्तंभ लगाया गया है. ताकि उनकी आने वाली पीढ़ी इसे देख सके और अपने रीति रिवाजों को न भूले. आंचला बताते हैं कि उनके घर के बाहर हर पीढ़ी का स्तंभ लगा हुआ है. जिसमें उनके पिता,चाचा, दादा और अन्य परिवार के लोग शामिल हैं. इस तरह के स्तंभ गाड़ने की परंपरा सिर्फ गोंड जाति के आंचला गोत्र के लोग ही ऐसा करते हैं.

ये भी पढ़ें- नक्सलगढ़ में शिक्षा का बुरा हाल

क्या होता है स्मृति स्तंभ : ग्रामीण योगेश नरेटी का कहना है कि '' स्मारक या स्तंभ लगाने की परंपरा आदिवासी समुदाय में शुरू से ही रही है. मृत्यु के बाद पत्थर गाड़कर स्तंभ बनाना हो या शादी के बाद यह स्मृति स्तंभ . आदिवासी गोंड जाति के लोग हमेशा से ही इस तरह के स्मृतियों में विश्वास रखते आ रहे हैं. साथ ही योगेश नरेटी ने बताया ये स्तंभ विवाह के समय मड़वा मंडप में लगाया जाता. उसी के बीच का भाग होता है. जिसे स्थानीय भाषा में मांडो कहा जाता है. विवाह संपन्न होने के बाद स्मृति चिन्ह के रूप में घरों के बाहर इसी मांडो को लगाया जाता है. छत्तीसगढ़ का आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर अपनी अनोखी परंपरा, आदिवासी रीति रिवाज, कला, संस्कृति के लिए पूरे देश विदेशों में पहचाना जाता है. बस्तर के आदिवासियों में जो परंपरा देखने को मिलती है वह शायद ही किसी अन्य जगहों पर देखने को मिलेगी. आदिवासी अपनी परंपरा को अपना मुख्य धरोहर मानते हैं. यही वजह है कि आदिवासियों में सदियों से चली आ रही परंपरा आज भी कायम है और आदिवासी ग्रामीण अपनी इस परंपरा को बखूबी निभाते आ रहे हैं,

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.