कांकेर: छत्तीसगढ़ के बस्तर में आदिवासी जल जंगल जमीन को बचाने आंदोलन कर रहे हैं. पूरे बस्तर में 30 से 35 जगहों पर आदिवासी आंदोलन पर बैठे हुए हैं. कांकेर के चिलपरस में आदिवासियों के आंदोलन को एक साल हो गया है. आंदोलन के एक साल पूरे होने पर चिलपरस में बड़ी संख्या में आदिवासी इकट्ठा हुए. ETV भारत भी कांकेर पहुंचा और आदिवासियों से बात की.
जल जंगल जमीन बचाने आदिवासियों का आंदोलन: चिलपरस आंदोलन में बैठे आदिवासियों ने बताया बिना ग्राम सभा की अनुमति के कैंप खोले गए. कोयलीबेड़ा आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है. इसीलिए इस क्षेत्र में पेसा एक्ट लागू है. पेसा एक्ट में गांव में जो भी काम होता है चाहे शासन का हो या किसी और का जब तक ग्राम सभा में प्रस्ताव पारित नहीं होगा तब तक गांव में कोई निर्माण कार्य नहीं किया जाएगा. लेकिन बिना किसी सूचना के चुपचाप कैंप लगा दिया जा रहा है. यह क्षेत्र अंदरुनी होने के चलते स्वास्थ्य और शिक्षा में पिछड़ा हुआ है. इसको लेकर कई बार कोयलीबेड़ा ब्लाक मुख्यालय में प्रदर्शन किया. लेकिन उसके बदले कैंप खोल दिए गए. Chilparas Movement
बेचाघाट में तीन मुद्दों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं. जिनमें बेचाघाट में प्रस्तावित पुलिया, सितरम में पर्यटन केंद्र और बेचाघाट में बीएसएफ कैंप. उसी तरह चिलपरस में भी रोड चौड़ीकरण, बीएसएफ को लेकर एक साल से आंदलोन कर रहे हैं. पूरे बस्तर में 30 से 35 जगहों पर आंदोलन चल रहा है.- मैनी कचलाम, आंदोलनकारी
बिना ग्राम सभा की अनुमति के किए जा रहे काम: आदिवासी समाज के नेता सहदेव उसेंडी ने बताया चिलपरस में एक साल से आंदोलन कर रहे हैं. जल जंगल और जमीन की लड़ाई है. आदिवासियों के अस्तित्व का सवाल है. क्योंकि जल और जंगल खत्म हो जाएगा तो आदिवासी कहां जाएंगे. कम से कम सरकार को पहल करते हुए जल जंगल और जमीन को बचाने की कोशिश करनी चाहिए लेकिन सरकार इस मामले में कोई बात नहीं करती.
"पांचवीं अनुसूची क्षेत्र है. बिना ग्राम सभा के कैंप और सड़कों का काम नहीं होना चाहिए. इसके लिए ग्राम सभा की अनुमति लेना जरूरी है लेकिन शासन की तरफ से इस तरह का कोई काम नहीं किया जा रहा है. ग्राम सभा की अनुमित लेकर कैंप बनाए, सड़क बनाएं कोई परेशानी नहीं है."-सहदेव उसेंडी, आदिवासी समाज के नेता
शुरू होगा भूमकाल आंदोलन: सर्व आदिवासी समाज के उपाध्यक्ष सूरजु टेकाम ने आरोप लगाया कि आदिवासियों की सुरक्षा के नाम पर अंदरूनी इलाको में सुरक्षा बलों का कैंप खोला जा रहा है. आदिवासियों को फर्जी मामलों में नक्सली बताकर जेल भेजा जा रहा है. जंगलों में बसे गांवों के आदिवासियों को फर्जी तरीके से मुठभेड़ कर उन पर हत्या का आरोप लगाया जा रहा है. टेकाम ने कहा बस्तर में 1910 में भी आंदोलन चला. बड़ा विद्रोह हुआ. उस समय आदिवासियों ने जल जंगल जमीन को बचाने अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी. लगभग 45 दिनों तक आदिवासियों और अंग्रेजों के बीच लड़ाई हुई और अंग्रेज भागने के लिए मजबूर हो गए. अब 1947 की आजादी के बाद एक बार फिर आदिवासियों को जल जंगल जमीन के लिए लड़ाई लड़नी पड़ रही है. आदिवासी अपने अस्तित्व को बचाने के लिए भी लड़ाई लड़ रहे हैं. केंद्र की तरफ से लाए गए यूसीसी और वन संरक्षण कानून लाया गया.
आंदोलन के कई रूप होते हैं. अब तक जो आंदोलन हो रहा है वो शांतिपूर्ण आंदोलन है. लेकिन इसका दूसरा रूप भी यहां के आदिवासी दिखा सकते हैं, जिसकी तैयारी शुरू हो गई है. यहां एक आग धधक रही है. नई पौधे उग रहे हैं. आने वाली पीढ़ी दूसरे भूमकाल आंदोलन को लेकर आगे बढ़ रही है.-सूरजु टेकाम, उपाध्यक्ष, सर्व आदिवासी समाज
बीजापुर के सिलगेर, भैरमगढ़, कांकेर के अंतागढ़, कोयलीबेड़ा, राजनांदगांव, मोहला मानपुर से बड़ी संख्या में आदिवासी शिरकत कर रहे हैं. आदिवासियों का कहना है कि जब तक सरकार उनकी मांगों को पूरा नहीं करेगी वे आंदोलन जारी रखेंगे.