बालोद: गुरुर ब्लॉक के पेटेचुआ गांव से खारुन नदी का उदगम स्थल माना जाता है. जानकारों का कहना है कि बड़े तालाब से निकलने वाला पानी आगे जाकर नदी की शक्ल ले लेता है. खारुन नदी के पानी से रायपुर की बड़ी आबादी अपनी प्यास बुझाती है. बालोद जिले और उसके आस पास के 200 से ज्यादा गांव के लोग खारुन नदी के पानी पर पूरी तरह से निर्भर हैं. गांव के लोगों का कहना है कि तालाब की सफाई नहीं होने से इसका उदगम स्रोत अब सूखता जा रहा है. पहले जितनी मात्रा में तालाब से पानी नदी में पहुंचता था उतनी मात्रा में अब पानी नहीं आता. नदी के किनारे भी अब पानी की कमी से सूख रहे हैं.
सूख रही है खारुन नदी: स्थानीय लोगों का कहना है कि जहां पहले नदी हुआ करती थी वहां पर अब सूखा है. नदी की जगह पर खेत बन गए हैं. जंगल और पत्थरों का ढेर जमा हो गया है. गांव वालों और जानकारों का दावा है कि करीब पांच किलोमीटर तक नदी गायब हो चुकी है. गांव वालों का कहना है कि तालाब में जमा गंदगी की सफाई नहीं होने से पानी धीरे धीरे सूखने के कगार पर पहुंच गया है. गांव वालों का कहना है कि पहले तालाब से हर वक्त पानी की धारा निकलते रहती थी. जानकार बताते हैं कि तालाब से अभी भी पानी निकलता रहता है लेकिन उसकी मात्रा काफी कम हो गई है. दावा है कि सोर्स प्वाइंट ही सूख रहा है. स्थानीय लोग बताते हैं कि खारुन के पानी से 200 गांवों की प्यास बुझती है.
खारुन का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व: खारुन नदी के पास ही मां कंकालिन देवी मंदिर में विराजमान हैं. मां कंकालिन देवी को लेकर स्थानीय लोगों में बड़ी आस्था है. लोगों का कहना है कि पहले खारुन नदी के पानी से खर खर की आवाज आती थी. इस आवाज के चलते ही इस नदी का नाम खारुन पड़ा. छत्तीसगढ़ में खारुन नदी के पानी को गंगा की तरह पवित्र माना गया है. पूजा पाठ के दौरान खारुन नदी के पानी की इस्तेमाल किया जाता है. मान्यता है कि खारुन नदी सतह पर बहना छोड़ जमीन के नीचे बह रही है.
यहां से निकलती है पानी की धारा: जानकार हेमलाल ढीमर बताते हैं कि गुरुर तहसील के पेटेचुआ की पहाड़ी से खारुन नदी निकलती है. पहाड़ी से होते हुए पानी तालाब में जाकर भरता है. फिर एक संकर नाले के रूप में कंकालिन मंदिर तक पहुंचता है. वहीं से नदी की शुरुआत होती है. स्थानीय लोगों का कहना है कि मंदिर और उससे आगे का पांच किमी का नदी का एरिया सूख चुका है. गांव वाले बताते हैं कि पहले दौरादे नाम का झरना हुआ हुआ करता था जो सितंबर के महीने तक बहता रहता था. पानी की कमी से वो झरना भी गायब हो गया है.