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देवी देवताओं के ढाई परिक्रमा के साथ रियासत कालीन कांकेर मेले की हुई शुरुआत

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Published : Jan 8, 2023, 9:00 PM IST

छत्तीसगढ़ में बस्तर के आदिवासी प्रकृति को भगवान की तरह पूजते हैं. Princely period Kanker fair started यहां दिसबंर से ही देव मेला की शुरुआत हो गई है. किसान अपने अन्न की अच्छी पैदावार के लिए मड़ई मेला का आयोजन करते हैं. लोगों का मानना है कि मड़ई के आयोजन से भगवान खुश होते हैं. Kanker fair started with circumambulation deities साथ ही देवी देवताओं को इकट्ठा कर गांव, शहर के विकास के लिए मनोकामना की जाती है.

Princely period Kanker fair started
कांकेर मेले की हुई शुरुआत
कांकेर मेले की हुई शुरुआत

कांकेर: बस्तर में रियासत कालीन कांकेर का मड़ई मेला रविवार से देवी देवताओं की पूजा अर्चना के साथ शुरु हो गया है. Princely period Kanker fair started शीतला माता देवी मंदिर से पारंपरिक बाजे-गाजे के साथ देवी-देवताओं को राजमहल लाया गया. Kanker fair started with circumambulation deities राजमहल में राजपरिवार के अश्विनी प्रताप देव ने आंगा देव और डांग देव की पूजा अर्चना कर लोगों के सुख शांति की कामना की.

देवी देवताओं को देव खूटा में लाया गया: राजमहल में पूजा के बाद देवी देवताओं को मड़ई मेला स्थल (देव खूटा) लाया गया. जहां पर देवी देवताओं की टोली के द्वारा ढाई परिक्रमा कर रियासत कालीन मेले की शुरुआत की गई. यह मेला रियासत काल की तरह ही चार दिनों के लिए आयोजित किया जा रहा है. इस दौरान बड़ी संख्या में स्थानीय लोग मड़ई पूजा में शामिल हुए.

कांकेर मेला का ऐतिहासिक महत्व: राजपरिवार के सदस्य अश्विनी प्रताप देव बताते है कि "ऐतिहासिक महत्व वाले कांकेर मेला की शुरुआत कांकेर रियासत में सबसे लंबे समय तक राजपाठ करने वाले राजा नरहरदेव (1853 से 1903) ने अपने शासनकाल में की थी. कांकेर मेला तब से लेकर आज तक शहर के बीचों बीच टिकरापारा के मैदान में लग रहा है. यही कारण है इस मैदान का नाम ही मेलाभाठा पड़ गया. कांकेर मेला हर साल नए साल के पहले महीने के पहले ही रविवार को लगता है.

यह भी पढ़ें: सीएम भूपेश ने की राज्य स्तरीय छत्तीसगढ़िया ओलंपिक की शुरुआत, डेढ़ हजार से ज्यादा खिलाड़ी दिखाएंगे दम


फसलों की कटाई के बाद होता है मेले का आयोजन: कांकेर मेला ऐसे समय में आयोजित की जाती रही है, जिस दौरान फसलों की कटाई हो चुकी होती है. अपने फसल की बिक्री करने से किसानों के पास पैसे भी होते हैं, जिससे वे मेला में खरीदारी कर सकते हैं. इस वर्ष ऐसा संजोग हुआ कि 1 जनवरी नए लास के दिन ही रविवार पड़ गया.

देव विग्रह लाकर कराई जाती है ढाई परिक्रमा: हालांकि मेले का स्वरूप पूरी तरह बदल चुका है, लेकिन आज भी रौनक बरकरार है. दूर दूर से व्यापारी आते हैं, झूले आते हैं, हर तरह के सामान यहां मिलते हैं. तरह तरह से परिक्रमा कराई जाती है. मेले में परंपराओं को निर्वाह किया जाता है. मेले में आसपास के देव विग्रह लाकर ढाई परिक्रमा कराई जाती है.

कांकेर मेले की हुई शुरुआत

कांकेर: बस्तर में रियासत कालीन कांकेर का मड़ई मेला रविवार से देवी देवताओं की पूजा अर्चना के साथ शुरु हो गया है. Princely period Kanker fair started शीतला माता देवी मंदिर से पारंपरिक बाजे-गाजे के साथ देवी-देवताओं को राजमहल लाया गया. Kanker fair started with circumambulation deities राजमहल में राजपरिवार के अश्विनी प्रताप देव ने आंगा देव और डांग देव की पूजा अर्चना कर लोगों के सुख शांति की कामना की.

देवी देवताओं को देव खूटा में लाया गया: राजमहल में पूजा के बाद देवी देवताओं को मड़ई मेला स्थल (देव खूटा) लाया गया. जहां पर देवी देवताओं की टोली के द्वारा ढाई परिक्रमा कर रियासत कालीन मेले की शुरुआत की गई. यह मेला रियासत काल की तरह ही चार दिनों के लिए आयोजित किया जा रहा है. इस दौरान बड़ी संख्या में स्थानीय लोग मड़ई पूजा में शामिल हुए.

कांकेर मेला का ऐतिहासिक महत्व: राजपरिवार के सदस्य अश्विनी प्रताप देव बताते है कि "ऐतिहासिक महत्व वाले कांकेर मेला की शुरुआत कांकेर रियासत में सबसे लंबे समय तक राजपाठ करने वाले राजा नरहरदेव (1853 से 1903) ने अपने शासनकाल में की थी. कांकेर मेला तब से लेकर आज तक शहर के बीचों बीच टिकरापारा के मैदान में लग रहा है. यही कारण है इस मैदान का नाम ही मेलाभाठा पड़ गया. कांकेर मेला हर साल नए साल के पहले महीने के पहले ही रविवार को लगता है.

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फसलों की कटाई के बाद होता है मेले का आयोजन: कांकेर मेला ऐसे समय में आयोजित की जाती रही है, जिस दौरान फसलों की कटाई हो चुकी होती है. अपने फसल की बिक्री करने से किसानों के पास पैसे भी होते हैं, जिससे वे मेला में खरीदारी कर सकते हैं. इस वर्ष ऐसा संजोग हुआ कि 1 जनवरी नए लास के दिन ही रविवार पड़ गया.

देव विग्रह लाकर कराई जाती है ढाई परिक्रमा: हालांकि मेले का स्वरूप पूरी तरह बदल चुका है, लेकिन आज भी रौनक बरकरार है. दूर दूर से व्यापारी आते हैं, झूले आते हैं, हर तरह के सामान यहां मिलते हैं. तरह तरह से परिक्रमा कराई जाती है. मेले में परंपराओं को निर्वाह किया जाता है. मेले में आसपास के देव विग्रह लाकर ढाई परिक्रमा कराई जाती है.

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