नई दिल्ली/रायपुर: छत्तीसगढ़ के नक्सलगढ़ जिले नारायणपुर के पंडी राम मंडावी को पद्म पुरस्कार के लिए चुना गया है. उन्होंने अबूझमाड़ के आदिवासियों की जीवन शैली को अपने कला के जरिए आगे बढ़ाने का काम किया है. अपनी कला के जरिए पंडी राम मंडावी ने आदिवासी संस्कृति खासकर अबूझमाड़ की संस्कृति को आगे बढ़ाने का काम किया है. उन्होंने इस कला को भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में पहचान दिलाई है. पंडी राम मंडावी को यह कला उन्हें अपने पिता से मिली थी. इसमें उन्होंने एक नई दिशा देने की कोशिश की है.
सीएम साय ने पंडी राम मंडावी को दी बधाई: सीएम विष्णु देव साय ने आदिवासी कलाकार पंडी राम मंडावी को पद्मश्री पुरस्कार के लिए चुने जाने पर बधाई दी है. मंडावी को पारंपरिक संगीत वाद्ययंत्र बनाने और लकड़ी की शिल्पकला के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए यह प्रतिष्ठित पुरस्कार दिया जाएगा. वह नारायणपुर के अबूझमाड़ के रहने वाले हैं.
पंडी राम मंडावी की खासियत जानिए: पंडी राम मंडावी की खासियत बांस की काष्ठ कला भी है. वह ड मुरिया जनजाति से हैं. वे बांस की सीटी बनाने के लिए जाने जाते हैं, जिसे 'सुलूर' या 'बस्तर बांसुरी' कहा जाता है. मंडावी ने लकड़ी के पैनलों पर उभरी हुई पेंटिंग, मूर्तियों और अन्य कलाकृतियों के माध्यम से अपनी कला को वैश्विक स्तर पर पहुंचाया है.
पंडी राम मंडावी ने पिछले पांच दशकों से न केवल बस्तर की सांस्कृतिक विरासत को संजोया है, बल्कि इसे एक नई पहचान भी दी है. मैं पद्म पुरस्कार के लिए चयनित होने पर उन्हें बधाई देता हूं- विष्णुदेव साय, सीएम छत्तीसगढ़
मंडावी ने 12 साल की उम्र में अपने पूर्वजों से यह कला सीखी. उसके बाद उन्होंने अपनी लगन और कौशल से छत्तीसगढ़ की कला और संस्कृति को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया. एक सांस्कृतिक राजदूत के रूप में उन्होंने 8 से अधिक देशों में अपनी कला का प्रदर्शन किया है. कार्यशालाओं के माध्यम से उन्होंने एक हजार से अधिक कलाकारों को प्रशिक्षित किया है. वह अपनी कला को आने वाली पीढ़ी को पहुंचा रहे हैं.
सोर्स: पीटीआई