कांकेर: जिले में खोला गया गढ़कलेवा लोगों को नहीं भा रहा है. शायद इसी वजह से लोग वहां नहीं पहुंच रहे हैं. लोगों को छत्तीसगढ़ी व्यंजन का स्वाद चखाने की सरकार की मंशा पर पलीता लग रहा है.
कांकेर में नहीं चल रहा गढ़ कलेवा
छत्तीसगढ़ी व्यंजनों को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने 15 अगस्त से राज्य के सभी जिला कलेक्ट्रेट परिसर में गढ़ कलेवा शुरू किया था. प्रदेशवासियों को सस्ते दर पर छत्तीसगढ़ी व्यंजन उपलब्ध कराने गढ़ कलेवा की शुरुआत की गई थी. इसकी कमान महिला समूह के हाथों में दी गई थी ताकि महिलाएं आर्थिक सशक्तिकरण की ओर बढ़ सके. लेकिन कांकेर में गढ़ कलेवा दम तोड़ती नजर आ रही है. जोर-शोर से शुरू की गई गढ़ कलेवा 2 महीने में ही दम निकलने लगा है.
नए बस स्टैंड का मेन गेट बंद होना बनी मुसीबत
नए बस स्टैंड में स्थित गार्डन में गढ़ कलेवा खोला गया था. बस स्टैंड में गढ़ कलेवा खोलने का मकसद ही यही था कि यहां आने वाले यात्रियों को आसानी से अच्छे और सस्ते छत्तीसगढ़ी व्यंजन मिलेंगे. इसके अलावा महिला समूहों की आमदनी भी अच्छी होगी. लेकिन गढ़ कलेवा बस स्टैंड के पीछे स्थित होने के कारण ज्यादातर लोगों को इसकी जानकारी ही नहीं है. जिन्हें इसके बारे में पता भी है तो वे घूमकर आने की वजह से आना नहीं चाहते हैं. वहीं कई लोग बस स्टैंड के अंदर ही गढ़ कलेवा ढूंढते रह जाते हैं. इसके साथ ही इसे चारों तरफ से ढक दिया गया है. जिससे भी लोगों को इसके बारे में पता नहीं चल पा रहा है. गढ़ कलेवा चलाने वाली महिलाओं ने कई बार कलेक्टर को बस स्टैंड के मुख्य द्वार के आस-पास इसे खोलने का आवेदन भी दिया लेकिन आश्वासन के बाद भी इस पर काम नहीं हुआ. महिलाओं के कहना है कि जब तक गढ़ कलेवा को शिफ्ट नहीं किया जाएगा तब तक हालात ऐसे ही रहेंगे.
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सिर्फ 2 महीने ही हुई आमदनी
कांकेर में गढ़ कलेवा चला रही महिला संचालिका लक्ष्मी सहारे ने बताया कि शुरुआती 2 महीनो में अच्छी आमदनी हुई. 2 महीने तक जिला कलेक्टर कार्यालय, विधायक निवास, जिला पंचायत में होने वाली मीटिंग में गढ़ कलेवा से ही छत्तीसगढ़ी व्यंजन और खाना जाता था. लेकिन धीरे-धीरे ये बंद हो गया. शुरू में लोग भी आते थे पर अब ग्राहकी नहीं के बराबर हो गई है.
लागत भी नहीं निकल रही
लक्ष्मी बताती है कि शुरुआती दिनों में पांच से सात हजार रुपये आमदनी होती थी. लेकिन अब हजार रुपये भी मिलना मुश्किल हो गया है. इससे महिला समूह कर्ज के तले दबे जा रहे हैं. उनकी लागत भी नहीं निकल रही है. जिससे महिलाएं परेशान है. अब देखना होगा कि महिला समूह के आवेदन पर कलेक्टर महोदय कब संज्ञान लेते है और कब गढ़कलेवा में रौनक आती है.