कांकेर: बस्तर के आदिवासी प्रकृति की तरह पूजते हैं. यहां दिसबंर से ही देव मेला की शुरुआत हो जाती है. किसान अपने अन्न की अच्छी पैदावार के लिए मड़ई का आयोजन करते हैं. लोगों का मानना है कि मड़ई के आयोजन से भगवान खुश होते हैं. देवी-देवताओं को इकट्ठा कर गांव, शहर और विकास के किए मनोकामना की जाती है. लेकिन इस बार मड़ई मेले की रौनक आपको देखने के लिए नहीं मिलेगी. कोरोना संक्रमण की वजह से मेले का आयोजन नहीं होगा.
साल के पहले रविवार को लगता था मेला
कांकेर में साल के पहले रविवार को मेला का आयोजन किया जाता है. इस बार कोरोना संक्रमण के कारण मड़ई मेले का आयोजन नहीं हो रहा है. पहली बार ऐसा होगा कि मड़ई मेला नहीं लगेगा. राज परिवार के अश्वनी प्रताप देव ने बताया कि इस बार रजमहल में कोई भी देवी-देवता इकट्ठा नहीं होंगे. प्रशासन ने सिर्फ पूजा-पाठ की छूट दी है. कोरोना के नियमों को ध्यान में रखते हुए आयोजन की छूट दूी गई है.
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देवी-देवताओं को धन्यवाद
राजमहल से असित दुबे ने बताया कि कांकेर ही नहीं पूरे बस्तर में मेले की परंपरा सालों से चली आ रही है. लोग अपने देवी-देवताओं को धन्यवाद देते हैं. मेले में अपने क्षेत्र के देवी-देवताओं को बुला के उनकी पूजा-अर्चना की जाती है. आशीर्वाद के रूप में देवी-देवता मेला स्थल का ढाई चक्कर लगाते हैं.
मीना बाजार व्यापारियों को नुकसान
मड़ई में देव, आंगा और डांग आदि की पूजा के लिए निर्धारित संख्या में गायता, पुजारी और कुछ लोग जुटेंगे. मेला स्थल में दुकानें और मनोरंजन के लिए लगने वाले झूले नहीं लगाए जाएंगे. 29 दिसंबर को नरहरपुर में मेले का आयोजन होगा. समिति ने सिर्फ पूजा-पाठ करने की जानकारी प्रशासन को दी है. कांकेर में मीना बाजार व झूला लगाने वालों को अबतक 12 से 15 लाख रुपए का नुकसान हुआ है. मीना बाजार संचालक सजन सिन्हा ने बताया अन्य जगहों से जो नुकसान होता है उसकी भरपाई मेले से होती थी. इस बार काफी नुकसान हुआ है.