कांकेर: चारों तरफ घने जंगल, कमर तक पानी और हाथ में झोला. देखने में एक आम औरत. लेकिन ये आम औरत भविष्य गढ़ने का काम करती हैं. यानी ये एक टीचर हैं. वह कांकेर जिले के संवेदनशील क्षेत्र कोयलीबेड़ा के केसेकोडी गांव के स्कूल में पढ़ाती हैं, लेकिन स्कूल तक पहुंचने का रास्ता आसान नहीं है. खासकर बारिश के दिनों में काफी मुश्किल होती है.
15 साल पहले हुई थी केसेकोडी गांव में पोस्टिंग: इस महिला टीचर का नाम लक्ष्मी नेताम है. वह सरकारी स्कूल में टीचर हैं. अक्टूबर 2008 में उनकी सरकारी नौकरी लगी. पहली पोस्टिंग कांकेर जिले के नक्सल संवेदनशील कोयलीबेड़ा के केसेकोडी प्राथमिक स्कूल में हुई, तब से ये उसी स्कूल में हैं. यानी पिछले 15 साल से लक्ष्मी उसी स्कूल में पढ़ा रही हैं. स्कूल में 20 बच्चे हैं. जिन्हें पढ़ाने के लिए लक्ष्मी परेशानी के बावजूद हर रोज स्कूल पहुंचती है. ज्यादा दिक्कत बारिश के दिनों में होती है, बारिश के समय लक्ष्मी को नदी पार कर स्कूल जाना पड़ता है. बारिश में होने वाली परेशानी के बावजूद इस महिला टीचर के अपना ट्रांसफर शहर या उसके आसपास नहीं कराने के पीछे भी बड़ी वजह है. इस वजह को जानने ETV भारत ने लक्ष्मी से बात की.
मैं तो खुद आमाबेड़ा जैसे जंगल गांव की रहने वाली हूं. मैं बचपन से खुद समस्याओं के बीच रहकर पढ़ी हूं. इस वजह से इस क्षेत्र के बच्चों की परेशानी अच्छे से समझती हूं. मेरी नौकरी भी जंगल में ही लगी है. मैं बस अपनी ड्यूटी कर रही हूं- लक्ष्मी नेताम, महिला टीचर
बारिश के दिनों में हर साल नदी पार कर जाना पड़ता है स्कूल: आम दिनों में तो किसी तरह लक्ष्मी अपनी स्कूटी से ऊबड़ खाबड़ रास्ते को पार करते हुए स्कूल पहुंच जाती है. लेकिन बारिश के दिनों में स्कूल पहुंचना काफी मुश्किल होता है. कोयलीबेड़ा से नदी तक महिला टीचर अपनी गाड़ी से आती है. फिर नदी पार कर केसेकोडी स्कूल तक पैदल जाना पड़ता है. कई बार तेज बारिश से नदी का जलस्तर बढ़ जाता है. कई बार तो ऐसा हुआ है कि छाती व गले तक पानी को पार कर उसे स्कूल पहुंचना पड़ा है. Lakshmi Netam cross river to teach children
अनजान के घर रुकनी पड़ी रात: लक्ष्मी नेताम के सेवा काल में एक बार ऐसा भी समय आया जब वह किसी तरह से नदी पार कर कोयलीबेड़ा से केसेकोडी तक तो चली गई लेकिन वापस लौटते समय नदी में बाढ़ आ गई. ऐसे में उसे पास के गांव मरकानार लौटना पड़ा. शाम होते तक भी बाढ़ का पानी नहीं उतरने पर उस रात लक्ष्मी अनजान लोगों के घर ही रुकी.
गरीब बच्चों को करती है मदद: लक्ष्मी बताती हैं कि जिस स्कूल में वो पढ़ाती है. वहां 20 बच्चे हैं. कई बच्चे काफी गरीब है. जो पेन पेंसिल भी नहीं खरीद पातें. उन्हें वो अपनी सैलरी से पढ़ने लिखने के लिए पेन पेंसिल, कॉपी लेकर देती है. साथ ही किसी भी हालत में स्कूल नहीं छोड़ने की सलाह देती हैं.
दूसरे टीचर भी नदी पारकर पहुंचते हैं स्कूल: कोयलीबेड़ा से नदी पारकर स्कूल पहुंचने वाली लक्ष्मी नेताम अकेली शिक्षिका नहीं है. उनके साथ पांच पुरुष शिक्षक भी है, जो इसी तरह बारिश के मौसम में बाढ़ के पानी को पार कर स्कूल पहुंचते हैं. इसके अलावा अन्य विभागों में काम करने वाले कर्मचारियों को भी ऐसे ही नदी पार करनी पड़ती है.
ऐसे शिक्षकों को मोटिवेट करने की जरूरत: नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के बच्चों को सरकार फ्री कोचिंग दे रही है. इस कोचिंग के जरिए बच्चे नवोदय और सैनिक स्कूल की इंट्रेंस परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं. हाल ही में हुई बातचीत में बच्चों ने बड़े होकर टीचर और डॉक्टर बनने की इच्छा जाहिर की. कुछ बच्चों ने बताया कि वे टीचर बनकर अपने गांव में ही पढ़ाना चाहते हैं. वहीं कुछ बच्चों ने डॉक्टर बनकर गांव के लोगों का इलाज करने की बात कहीं. लक्ष्मी नेताम ने भी अपनी पढ़ाई के दौरान ऐसा ही कुछ सोचा होगा, जिसे आज वो पूरा कर रही हैं. जरूरत है ऐसे शिक्षकों को प्रेरित और सम्मानित करने की ताकि उन्हें कभी भी ये काम करने में खींज महसूस ना हो और वो दूसरे शिक्षकों के लिए प्रेरणा बने.