कांकेर: भारत जहां की 80 फीसदी आबादी खेती पर निर्भर है. देश के एक बड़े हिस्से में पंपसेट से सिंचाई होती है. किसानों को खाद-बीज खरीदने से लेकर फसल बेचने के लिए वाहन की जरूरत होती है. खेतों में जुताई से लेकर सिंचाई तक वाहन या पंपसेट की जरूरत होती है. इन सबको चलाने के लिए डीजल की जरूरत होती है. जिसकी कीमत हर दिन बढ़ती जा रही है. बीते एक साल में 18 से 20 रुपये तक डीजल की कीमतों में वृद्धि हुई है.
खेती को लेकर असमंजस में किसान
पेट्रोल-डीजल की कीमतों ने वैसे तो हर वर्ग को काफी परेशान कर रखा है, लेकिन आज हम किसानों की बात करेंगे. जिनका हर काम डीजल-पेट्रोल की बिना असंभव है. सिंचाई, जुताई, निराई से लेकर किटनाशकों के छिड़काव तक के लिए पेट्रोल-डीजल की जरूरत पड़ती है. ऐसे पहले से ही घाटे में खेती कर किसानों के सामने मुसिबत और बड़ी हो गई है. देश के एक बड़े हिस्से में किसानों के पास सिंचाई की दूसरी कोई सुविधा नहीं होने के कारण डीजल की बढ़ती कीमतों ने किसानों की मुश्किलें बढ़ा दी है. पेट्रोल और डीजल की बढ़ रही कीमत से हर तबके के लोग प्रभावित हैं. खासकर आर्थिक रूप से कमजोर किसान बढ़ती डीजल की कीमत से चितित हैं. किसानों की एक बड़ी आबादी को आलू, मक्का और गेहूं की पटवन के लिए पंपसेट का सहारा लेना पड़ रहा है. ऐसे में आप सोच सकते हैं कि 100 रुपये प्रति लीटर डीजल की कीमतों से उन्हें क्या फायदा होगा.
लागत तक नहीं निकल रहा
लागत के अनुपात में पैदावार नहीं होने का डर भी किसानों को इन दिनों सता रहा है. डीजल का दाम लगातार बढ़ने से खेती में लागत और अधिक बढ़ गया है. किसानों के मुताबिक पिछले साल की तुलना में इस साल की खेती में डेढ़ गुना का अंतर आ गया है. किसान बताते हैं, एक खेत में एक साल में कम से कम पांच बार ट्रैक्टर से जुताई करना पड़ा है. छत्तीसगढ़ के लगभग सभी जिलों में अभी डीजल का भाव 97 रुपये प्रति लीटर से ज्यादा है. ये दाम पिछले साल जुलाई में 79.19 रुपये प्रति लीटर था. एक साल में करीब 20 रुपये प्रति लीटर की वृद्धि हुई है. किसानों कहते हैं, बैंक और साहूकारों के कर्ज के बोझ से दबे उनके लिए महंगे डीजल के साथ खेती करना आसान नहीं होगा. ऊपर से बेमौसम बारिश, ओलावृष्टि, सूखा, पाला जैसे प्राकृतिक आपदा भी किसानों को कर्जदार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ता है.
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खाद-बीज के बाद डीजल की मार
खाद-बीज की महंगाई और बिजली की समस्या के बाद डीजल की बढ़ती कीमतों ने किसानों को परेशान कर रखा है. डीजल के दाम बढ़ने का सीधा असर आटा, दाल और चावल के साथ तेल-मसाला पर भी पड़ेगा. डीजल की कीमत में बढ़ोतरी से जुताई महंगी हो गई है. पिछले साल की अपेक्षा इस साल बुआई और मताई के लिए ट्रैक्टर संचालक ज्यादा पैसे ले रहे हैं. किसान योगेश नरेटी कहते हैं, 'पिछले साल प्रति घंटा जुताई की दर 700 से 800 रुपये था, इस साल यह सीधे 1000 से 1200 रुपए हो गया है. डीजल के बढ़े हुए दाम के कारण प्रति घंटा खेतों की जुताई में किसानों को 300 अतिरिक्त खर्च करना पड़ रहा है'.
एक साल में 18.63 रुपये की वृद्धि
पेट्रोल पंप संचालक हिमांशु कोठारी बताते हैं, 'पिछले साल जून-जुलाई 2020 में डीजल का दाम 79.19 पैसे था. इस साल 27 जून से 6 जुलाई तक को दाम बढ़कर 97.82 पैसे प्रति लीटर हो गया है. डीजल के दाम में प्रति लीटर साल भर में 18.63 रुपये की वृद्धि हुई है. इसका खामियाजा वाहन चालकों के साथ किसानों को भुगतना पड़ रहा है.
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किसानों पर पड़ आर्थिक बोझ
कांकेर जिले के ही एक किसान सुभाष नरेटी कहते हैं, 'खाद एवं बीज की महंगाई के अलावा बिजली की समस्या के चलते किसान वैसे ही परेशान हैं. ऐसे में डीजल के दाम बढ़ाकर सरकार ने किसानों पर और आर्थिक बोझ डाल दिया है.'
एक एकड़ जुताई का खर्च 2700 रुपये
कांकेर जिले के दशपुर गांव के किसान मौसम साहू कहते हैं, 'डीजल के दाम बढ़ने से कृषि लागत पहले ही बढ़ गई है. अभी तेल के दाम और बढ़ने से जुताई का रेट 40% तक बढ़ गया है. पिछले साल 1 एकड़ खेत की जुताई का खर्च 1800 से 1900 रुपये आता था जो इस साल बढ़कर 2700 रुपये हो गया है.