कांकेर: धान खरीदी के लिए परेशान किसानों की तस्वीरों के बीच ऐसी तस्वीर सामने आई है, जिसे देख कर आपका कलेजा भी मुंह को आ जाएगा. जिले के सहकारी बैंक के सामने हर रोज अन्नदाता अपनी राशि के लिए लाइन लगाते हैं. भूखे-प्यासे किसानों को घंटों बैंक की मेहरबानी का इंतजार करना पड़ता है. सुबह से आए किसानों को न पीने के लिए पानी मिलता है और न शौचालय की सुविधा है.
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ETV भारत की टीम जब सहकारी बैंक पहुंची तो एक किसान बेहोशी की हालत में मिला. बैंक में सिलतरा गांव से आए 70 वर्षीय बुजुर्ग जीतू राम मंडावी तेज धूप के चलते वहीं बेहोश हो गए थे. बैंक के सामने ऐसी कोई जगह नहीं थी, जहां धूप से बचने के लिए बैठा जा सके. जीतू राम मंडावी बताते हैं कि वे सुबह 8 बजे से वो बैंक आए है लेकिन उनका काम घंटों नहीं हुआ. किसानों का कहना है कि सहकारी बैंक में आए दिन लिंक फेल हो जाने से किसानों की लंबी लाइने लग रही हैं. वक्त पर किसानों का काम नहीं हो रहा है.
महिलाओं के लिए टॉयलेट की व्यवस्था नहीं
महिला किसान फुलमा कहती हैं कि बैंक में महिलाओं के प्रसाधन की कोई सुविधा नहीं है. यहीं जमीन पर बैठना पड़ता है. धान बेचने गए थे तब भी परेशानी हुई थी और अब रुपये निकालने आए हैं, तब भी परेशानी हो रही है.
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लिंक फेल होने से नहीं हो रहा भुगतान
ETV भारत ने सहकारी बैंक पहुंचे किसानों से बात की तो किसान दशरथ कुमार पटेल ने कहा कि हम मेहनत कर फसल उपजाते हैं, सरकार कहती है फसल सही दाम में खरीदेगी. लेकिन यहां तो धान बेचने से लेकर रुपये निकालने के लिए ठोकर खानी पड़ रही है. दशरथ कहते हैं कि धान बेचने में बारदाने की समस्या के कारण वे देरी से धान बेच पाया. धान बेचने के लिए वे चार बार बैंक के चक्कर काट चुके हैं. हर बार बैंक का लिंक फेल है बोल कर 4 बजे तक बैठा देते हैं.
सुबह 8 बजे से पहुंचते हैं किसान
बैंक आए कोदागांव निवासी डोमर साहू बताते हैं कि बैंक में पीने का पानी तक नहीं है. शौचालय में पूरा पानी भरा है, बैठने की भी सुविधा नहीं है. वे कहते हैं कि क्या करेंगे रुपये तो निकालना है ही, इसीलिए सुबह 8 बजे से आ कर बैठे हैं.
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जिला मुख्यालय में एक मात्र काउंटर
बता दें कि जिला सहकारी बैंक में धान खरीदी शुरू होने के बाद से ही रुपये निकालने को लेकर समस्या लगातार बढ़ती जा रही है. जिला मुख्यालय की शाखा में धान का भुगतान करने के लिए एक मात्र काउंटर बनाया गया है. जहां सुबह से किसानों की लाइन लगनी शुरू हो जाती है. आलम यह है कि किसानों को दो तीन घंटे खड़े होने के बाद भुगतान हो रहा है. जबकि भीड़ अधिक होने के कारण कई किसानों को बिना रुपये लिए निराश होकर वापस लौटना पड़ रहा है.