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झंडे और बैनर पर पड़ी सोशल मीडिया की मार, प्रिंटिंग प्रेस संचालक हुए 'कंगाल'

चुनावी सरगर्मी बढ़ती जा रही है, लेकिन झंडा और बैनर बनाने वाले प्रिंटिंग प्रेस संचालकों की आर्थिक हालत दिन ब दिन बिगड़ रही है.

फ्लेक्स और पम्पलेट की मांग घटी
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Published : Mar 27, 2019, 8:50 PM IST

कांकेर: एक वक्त था जब बड़े-बड़े फ्लेक्स और चुनावी वादों के पम्पलेट के जरिए राजनीतिक दल अपना गुणगान कर जनता का मन जीतने का प्रयास करते थे, लेकिन आज के आधुनिक युग में फ्लैक्स और पम्पलेट बहुत कम या ये कहें कि नजर ही नहीं आते हैं.


सोशल नेटवर्किंग बना आसान और सस्ता माध्यम
इसका सबसे बड़ा कारण अगर किसी को माना जाए तो वो सोशल नेटवर्किंग साइट्स हैं, जो कि आज के दौर में प्रचार का सबसे आसान और सस्ता माध्यम बन चुका है.

फ्लेक्स और पम्पलेट की मांग घटी


सोशल नेटर्किंग से हो रहा प्रचार
सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक, वाट्सएप्प, ट्विटर आज के वक्त में हर व्यक्ति तक पहुंचने का सबसे आसान जरिया बन चुके हैं और यही वजह है कि राजनीतिक पार्टियां हों या प्रत्याशी इनका धडल्ले से इस्तेमाल कर रहे हैं.


50 फीसदी तक गिरा व्यापार
इसका सबसे बुरा प्रभाव अगर किसी पर पड़ा है तो वो प्रिटिंग प्रेस के संचालक है. इनका व्यापार आज के दौर में पहले से 50 फीसदी तक गिर चुका है. प्रिंटिंग प्रेस के संचालक बताते है कि 'आज से 10 साल पहले के चुनाव और आज के चुनाव में कमाई के मामले में जमीन और आसमान का अंतर आ गया है.


सोशल मीडिया का ले रहे सहारा
पहले के दौर में चुनाव का समय आते ही फ्लैक्स और पम्पलेट ही प्रचार का माध्यम थे, लेकिन आज के समय में सोशल नेटवर्किंग साइट ने इसकी जगह ले ली है. इसके कारण राजनीतिक पार्टियां भी अब फ्लैक्स और पम्पलेट से ज्यादा सोशल नेटवर्क का सहारा प्रचार के लिए ले रहे हैं.


50 प्रतिशत तक घटी कमाई
प्रिंटिंग प्रेस संचालक बताते है कि 'फ्लैक्स और पम्पलेट की मांग बहुत कम हो गई है, जिसका कारण सोशल नेटवर्क और चुनाव आयोग के कड़े नियम हैं'. उन्होंने बताया कि 'आज से पहले की तुलना में कमाई 50 प्रतिशत तक घट गई है. फ्लैक्स के लिए महंगी मशीनें ली हुई हैं लेकिन अब उसका उपयोग बहुत कम होने से आर्थिक दिक्कतें भी आ रही हैं.


महंगा पड़ा रहा कपड़े का फ्लैक्स
निर्वाचन आयोग की ओर से फ्लैक्स के लिए नियम कड़े कर दिए हैं. प्लास्टिक में अब फ्लैक्स बनाने में मनाही है और कपड़े में फ्लैक्स तैयार करना पड़ता है, जिससे खर्च भी ज्यादा आ रहा है.

कांकेर: एक वक्त था जब बड़े-बड़े फ्लेक्स और चुनावी वादों के पम्पलेट के जरिए राजनीतिक दल अपना गुणगान कर जनता का मन जीतने का प्रयास करते थे, लेकिन आज के आधुनिक युग में फ्लैक्स और पम्पलेट बहुत कम या ये कहें कि नजर ही नहीं आते हैं.


सोशल नेटवर्किंग बना आसान और सस्ता माध्यम
इसका सबसे बड़ा कारण अगर किसी को माना जाए तो वो सोशल नेटवर्किंग साइट्स हैं, जो कि आज के दौर में प्रचार का सबसे आसान और सस्ता माध्यम बन चुका है.

फ्लेक्स और पम्पलेट की मांग घटी


सोशल नेटर्किंग से हो रहा प्रचार
सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक, वाट्सएप्प, ट्विटर आज के वक्त में हर व्यक्ति तक पहुंचने का सबसे आसान जरिया बन चुके हैं और यही वजह है कि राजनीतिक पार्टियां हों या प्रत्याशी इनका धडल्ले से इस्तेमाल कर रहे हैं.


50 फीसदी तक गिरा व्यापार
इसका सबसे बुरा प्रभाव अगर किसी पर पड़ा है तो वो प्रिटिंग प्रेस के संचालक है. इनका व्यापार आज के दौर में पहले से 50 फीसदी तक गिर चुका है. प्रिंटिंग प्रेस के संचालक बताते है कि 'आज से 10 साल पहले के चुनाव और आज के चुनाव में कमाई के मामले में जमीन और आसमान का अंतर आ गया है.


सोशल मीडिया का ले रहे सहारा
पहले के दौर में चुनाव का समय आते ही फ्लैक्स और पम्पलेट ही प्रचार का माध्यम थे, लेकिन आज के समय में सोशल नेटवर्किंग साइट ने इसकी जगह ले ली है. इसके कारण राजनीतिक पार्टियां भी अब फ्लैक्स और पम्पलेट से ज्यादा सोशल नेटवर्क का सहारा प्रचार के लिए ले रहे हैं.


50 प्रतिशत तक घटी कमाई
प्रिंटिंग प्रेस संचालक बताते है कि 'फ्लैक्स और पम्पलेट की मांग बहुत कम हो गई है, जिसका कारण सोशल नेटवर्क और चुनाव आयोग के कड़े नियम हैं'. उन्होंने बताया कि 'आज से पहले की तुलना में कमाई 50 प्रतिशत तक घट गई है. फ्लैक्स के लिए महंगी मशीनें ली हुई हैं लेकिन अब उसका उपयोग बहुत कम होने से आर्थिक दिक्कतें भी आ रही हैं.


महंगा पड़ा रहा कपड़े का फ्लैक्स
निर्वाचन आयोग की ओर से फ्लैक्स के लिए नियम कड़े कर दिए हैं. प्लास्टिक में अब फ्लैक्स बनाने में मनाही है और कपड़े में फ्लैक्स तैयार करना पड़ता है, जिससे खर्च भी ज्यादा आ रहा है.

Intro:कांकेर - इस समय चुनावी सरगर्मी पूरे सबाब पर है और लोकसभा चुनाव को लेकर हर तरफ चर्चा है ,राजनीतिक पार्टियां अपने प्रत्यशियो की घोषणा के बाद जनता को रिझाने में जुटी हुई है जिसका एक समय मे सबसे बड़ा माध्यम था बड़े बड़े फ्लेक्स और चुनावी वादे के पाम्पलेट जिसके माध्यम से पार्टियां अपना गुणगान कर जनता का मन जीतने का प्रयास करती थी लेकिन आज के आधुनिक युग मे फ्लैक्स और पाम्पलेट बहुत कम नज़र आते है जिसका सबसे बड़ा कारण अगर किसी को माना जाए तो वो सोशल नेटवर्किंग साइट्स है जो कि आज कल प्रचार का सबसे आसान और सस्ता माध्यम बन चुका है ।


Body:सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक , वाट्सएप्प आज के समय मे हर व्यक्ति तक पहुचने का सबसे आसान माध्यम बन चुका है जिसके चलते चुनाव प्रचार में भी इसका जमकर उपयोग किया जाता है । इसका सबसे बुरा प्रभाव किसी पर पड़ा है तो वो प्रिटिंग प्रेस के संचालक है , जिनका व्यापार अब पहले से 50 प्रतिशत तक गिर चुका है । प्रिंटिंग प्रेस के संचालक बताते है कि आज से 10 साल पहले के चुनाव और आज के चुनाव में कमाई के मामले में जमीन आसमान का अंतर आ गया है । पहले चुनाव का समय आते ही फ्लैक्स और पाम्पलेट ही प्रचार का माध्यम थे लेकिन आज के समय मे सोशल नेटवर्किंग साइट ने इसकी जगह ले ली है। जिससे राजनीतिक पार्टियां भी अब फ्लैक्स और पाम्पलेट से ज्यादा सोशल नेटवर्क का सहारा प्रचार के लिए लेते है ।

50 प्रतिशत तक घटी कमाई
प्रिंटिंग प्रेस संचालक विनय गोस्वामी , अपूर्व शर्मा बताते है कि पहले चुनाव का समय आता था तो फ्लैक्स और पाम्पलेट से अच्छी कमाई हो जाती थी लेकिन अब ऐसा नही है फ्लैक्स और पाम्पलेट की मांग बहुत कम हो गई है। जिसका कारण सोशल नेटवर्क और चुनाव आयोग के कड़े नियम है । उन्होंने बताया कि आज पहले की तुलना में कमाई 50 प्रतिशत तक घट गई है । फ्लैक्स के लिए महंगी मशीनें ली हुई है लेकिन अब उसका उपयोग बहुत कम होने से आर्थिक दिक्कते भी उत्पन्न हो गई है ।


Conclusion:निर्वाचन आयोग के नियम भी बन रहे मुसीबत
निर्वाचन आयोग के द्वारा भी फ्लैक्स के लिए नियम कड़े कर दिए है , प्लास्टिक में अब फ़्लेक्स बनाने में मनाही है और कपड़े में फ़्लेक्स तैयार करना पड़ता है , जिससे खर्च भी ज्यादा आता है ।

बाइट- 1 विनय गोस्वामी लाल शर्ट में ,
2 . अपूर्व शर्मा सफेद शर्ट में। दोनों ही प्रिंटिंग प्रेस संचालक
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