कांकेर: कांकेर शहर में इन दिनों भालू का आतंक लगातार जारी है. आये दिन रहवासी इलाकों में भालू पहुंच रहे है. भालुओं की आमद से लोग दहशत में है. जिसे देखते हुए वन विभाग की टीम अब रात में चिन्हाकित इलाकों की निगरानी कर रही है. लेकिन नगर में भालुओं का घुसने का मुख्य कारण भोजन पानी है. जिसे विभाग दरकिनार कर रहा है.
"विभागीय टीम लगातार रात्रि में गश्त कर रही है. चिन्हांकित स्थानों पर भी नजर रखी जा रही है. लोगों को भालू और अन्य वन्य प्राणी दिखाई देने या पहुंचने पर तत्काल सूचना देने पाम्पलेट चस्पा किया जा रहा है. साथ ही लोगों से अपील भी की जा रही है कि लोग रात्रि बचने वाले भोजन को घर के बाहर ना डाले.जिसकी सुगंध से भालू उस इलाके में न पहुंचे." - संदीप सिंह, कांकेर रेंजर
भोजन-पानी की तलाश में भटक रहे भालू: गर्मी का मौसम आते ही फिर एक बार भोजन-पानी की तलाश में भालू नगर के गलियों में घूमते देखा जा रहा है. कांकेर नगर चारों तरफ से पहाड़ियों और जंगलों से घिरा हुआ है. नगर के आस-पास के जंगलों में भालू की बहुतायत संख्या है. अक्सर भोजन पानी की तालाश में भालू जंगल से नगर की ओर रुख कर जाते हैं. जंगलो में छोटे-छोटे डबरी जानवरों के लिए बनाए गए हैं, वह गर्मी के शुरुआत में ही सूखे पड़े हैं. फलदार पेड़ों की संख्या भी जंगलों में घट रही है, जिसके चलते भालू नगर की ओर आ जाते हैं. भालुओं के इस तरह शहर में घूमने लसे लोगों में दहशत का माहौल रहता है.
"नगर में भालूओं के आने का मुख्य कारण भोजन है. जंगल में फलदार वृक्षों की कमी के चलते भालू नगर की ओर आते हैं. अगर फलदार वृक्षों को जंगलों में लगाए जाएं, तो भालूओं को वहीं अपना भोजन पानी मिल जाएगा. एक तरह से वन्य प्राणियों के बचाने के नाम पर वन विभग गश्त का ढोंग कर रहा है." - अजय मोटवानी, पर्यावरण प्रेमी
जामवंत परियोजना फेल साबित हुई: कांकेर नगर के 2014-2015 में 30 हजार हेक्टेयर भूमि में वन विभाग ने भालू विचरण और रहवास क्षेत्र बनाया था. जो कांकेर के शिवनगर-ठेलकाबोड के पहाड़ियों पर बनाया गया. जिसका नाम जामवंत परियोजना दिया गया था. इस परियोजना के तहत अमरूद, बेर, जामुन जैसे फलदार वृक्ष लगाना था. वन विभाग ने फलदार पौधे तो लगाए, लेकिन कोई भी फल देने लायक नहीं बन पाया. जिसके कारण अब जंगली भालुओं को शहर की तरफ भोजन के लिए आना पड़ता है. रिहायशी क्षेत्रों में भालुओं के आने से लोगों मे अक्सर दहशत का माहौल रहता है.