जशपुर: जशपुर विधानसभा सीट को भाजपा ने अपनी झोली में वापस पा लिया है. भाजपा प्रत्याशी रायमुनि भगत ने कांग्रेस के विनय कुमार भगत को हराया है. इस सीट पर 11 प्रत्याशी मैदान में थे. 70.47 प्रतिशत मतदान हुआ.
जशपुर का जातिगत समीकरण : इस सीट पर उरांव जाति के मतदाताओं की बहुलता है. उरांव के साथ यहां विशेष संरक्षित जनजाति पहाड़ी कोरवा भी निवास करते हैं.इनकी संख्या कम होने के बाद भी राजनीतिक माहौल बनाने और बिगाड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. उरांव मतदाताओं की बहुलता की वजह से कई पार्टियां उरांव समाज से उम्मीदवार को उतारने का काम करते हैं.
साल 2018 की चुनावी तस्वीर : 2018 के विधानसभा चुनाव में जशपुर विधानसभा क्षेत्र में 66.6 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया था. इसमें कांग्रेस के प्रत्याशी विनय भगत को 71 हजार 963 और बीजेपी के गोविंद राम भगत को 63 हजार 937 वोट मिले थे. इस तरह कांग्रेस के प्रत्याशी विनय भगत ने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा के गोविंद राम को 8 हजार 26 मतों से शिकस्त दी थी.बीजेपी की इस करारी शिकस्त में बागी प्रत्याशी प्रदीप नारायण ने अहम भूमिका निभाई थी. निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में 10 हजार 646 वोट लेकर प्रदीप नारायण ने बीजेपी की पराजय सुनिश्चित की थी.
जशपुर विधानसभा का सियासी समीकरण समझिए : इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में,पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले,राजनीतिक तस्वीर पूरी तरह से बदली हुई है. सत्तारूढ़ कांग्रेस ने साढ़े चार साल में अपनी जड़ें मजबूत की है. विधायक विनय भगत पूरे साढ़े चार साल जनसंपर्क में जुटे रहे. कांग्रेस का संगठन अब भी पूरी तरह से कमजोर है. वहीं भारतीय जनता पार्टी में चुनाव की बागडोर जूदेव परिवार के हाथ में होगी. उरांव,पहाड़ी कोरवा मतदाताओं को लुभाने के लिए दोनों पार्टियों में जोर आजमाइश शुरू हो गई है.बीजेपी धर्मांतरण के साथ केन्द्र सरकार की योजनाओं को लेकर चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी में जुटी हुई है.वहीं कांग्रेस भूपेश बघेल सरकार की उपलब्धियों को अपने जीत का आधार मान रही है.
जशपुर की समस्या और मुद्दे : अविभाजित मध्यप्रदेश के समय से इस विधानसभा सीट में राजनीति के केन्द्र में धर्मांतरण,आदिवासी और पहाड़ी कोरवा रहे हैं. रेल और उद्योग विहिन इस जिले में विकास की बुनियाद सड़कों पर टिकी हुई है. जो इस समय बेहद खस्ताहाल में है. कटनी गुमला राष्ट्रीय राजमार्ग सहित सड़कों की जर्जर स्थिति के कारण साढ़े तीन दशक के बाद इस मुद्दे ने बीजेपी को हार का स्वाद चखने पर मजबूर कर दिया. बावजूद इसके सत्तारूढ़ कांग्रेस,सड़क को लेकर गंभीर नजर नहीं आ रही है. इस विधानसभा क्षेत्र में जशपुर और सन्ना सड़क,दमेरा-चराईडांड़ सड़क को लेकर बीते साढ़े चार साल से राजनीति हो रही है.लेकिन,सड़क की स्थिति जस की तस है. भ्रष्टाचार को लेकर भी मुद्दा आरोप प्रत्यारोप तक ही सीमित है. पर्यटन के विकास को लेकर सरकारी शोर अधिक है. जिले में विकास कार्य नहीं दिख रहा है.
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