जांजगीर चांपा : कलचुरी कालीन शासक जाज्वलय देव प्रथम ने जांजगीर में विष्णु मंदिर की स्थापना करने का संकल्प लिया था.लेकिन मंदिर निर्माण के बाद इस मंदिर में कोई प्रतिमा स्थापित नहीं की जा सकी.इस मंदिर के इसी अधूरे पन के कारण इसका पुरातात्विक महत्व और भी बढ़ गया है. मंदिर के निर्माण से जुड़ी कई प्राचीन किवदंतियां है. जिसमें शिवरीनारायण के नर नारायण मंदिर का निर्माण की कहानी जुड़ी है.
क्या है मंदिर के पीछे की किवदंति : कहावत के मुताबिक जांजगीर भीमा तालाब के पास जाज्वलय देव और शिवरीनारायण नर नारायण मंदिर निर्माण के लिए विश्वकर्मा को 6 मासी रात का समय मिला. जो मंदिर पूरा होता उस पर भगवान विष्णु की स्थापना होने की बात कही गई थी. कहते है दो मंदिरों को मिला कर जांजगीर का विष्णु मंदिर बनना था. जिसे मूर्तिकारों ने अलग अलग स्थानों में पूरा भी कर लिया. लेकिन मंदिर को एक स्थान से उठाने से पहले ही समय समाप्त हो गया. जिसकी वजह से शिवरीनारायण के मंदिर में नर नारायण भगवान की स्वयं भू मूर्ति स्थापित हुई और जांजगीर के मंदिर में मूर्ति स्थापित नहीं हो पाई.
साहित्यकार सतीश सिंह ने बताया कि '' इस मंदिर में मूर्ति नहीं होने के बाद भी विष्णु मंदिर कहे जाने का कारण यहां मंदिर का पूर्वाभिमुख होना है. इस तरह की प्राचीन मंदिर कोणार्क में है. जहां सूर्य की पहली किरण मंदिर के ऊपरी हिस्से से होकर विष्णु जी के नाभि तक पहुंचती है और नाभि से ही बम्हा जी की उत्पत्ति हुई है. इसके अलावा जांजगीर विष्णु मंदिर के बाहरी हिस्से में बने भगवान विष्णु के अवतारों का चित्रण इस मंदिर की विष्णु मंदिर के रूप में पहचान दिलाती है.''
दो हिस्सों में बना है मंदिर : विष्णु मंदिर के ऊपरी हिस्से में आज भी गुम्बद नहीं लगा है. इसका कारण यह माना जाता है कि इस मंदिर के ऊपर एक मंदिर और स्थापित होना था, जिसे भी लगभग पूरा कर लिया गया था. लेकिन किसी वजह से इसको ऊपर स्थापित नहीं कर पाए,और दोनों मंदिर आज भी अपने अपने स्थान पर सुरक्षित रखे हुए हैं..वहीं मंदिर के दीवालों में बनी मूर्ति तीनों संप्रदाय की मूर्ति देखने को मिलेगा. जिसमे शैव, वैष्णव और शाक्त तीनों संप्रदाय की कला कृतियों क्या समावेश हैं.कही तंत्र विद्या की देवी का चित्रण, तो कहीं राम अवतार के चित्रण हैं.
भीम ने बनाया था भीमा तालाब : साहित्यकार सतीश सिंह ने बताया कि'' जांजगीर के इस स्थान में एक विशाल काय तालाब है. जिसे भीमा तालाब कहते हैं. इसके पीछे भी कहानी प्रचलित है. जिसमें अज्ञात वास के दौरान पांडव ने कुछ समय इस क्षेत्र में बिताये और भीम ने इस तालाब की खुदाई की. इस तालाब की आकृति गोलाई में होने के बजाय चतुर्भुज के सामान हैं. कहते हैं भीम ने एक एक मुक्का मार कर इस तालाब की खुदाई की है.''
मंदिर को सुरक्षित रखने पुरातत्व विभाग सतर्क : 12वी शताब्दी के इस मंदिर को काल और समय के अनुसार उस तरह संरक्षित नहीं किया जा सका जिसके कारण मंदिर के आसपास की मूर्ति क्षतिग्रस्त हो गई. मंदिर में लगे मूर्तियों में भी क्षरण होने लगा. लेकिन अब इस पर पुरातत्व विभाग ने ध्यान दिया है. वहीं जिला प्रशासन इस मंदिर को पर्यटन के नक्शा में आगे बढ़ाने के लिए हर वर्ष जाज्वलय देव लोक कला महोत्सव का आयोजन करती है.
क्यों नहीं हो पा रही मूर्ति स्थापना : साहित्यकार सतीश सिंह ने बताया कि ''मंदिर को अधूरा रखने के बजाए इसमें मूर्ति स्थापित करने पर भी चर्चा हुई. लेकिन चर्चा के साथ ही बात यहां पर रुक जाती है कि पहले जब प्रयास किया गया तब कुछ अनिष्ट हो गया. इसलिए जैसा है वैसे ही इसको संजोकर रखना हमारी जिम्मेदारी है और पुरातत्व विभाग इसे संरक्षित रखी है.''