ETV Bharat / state

SPECIAL: आजादी के 7 दशक बाद भी सड़क को तरस रहा ये गांव, खाट पर जाते हैं मरीज - सुदूर ग्रामीण इलाकों लोगों की जिंदगी

सिस्टम की मार ने सुदूर ग्रामीण इलाकों के लोगों की जिंदगी मुश्किलों से भर दी है, बिरहनी गांव के लोग अच्छी सड़क के लिए तरस रहे हैं.

खाट में लेटी जिंदगी
author img

By

Published : Aug 30, 2019, 10:01 PM IST

Updated : Aug 30, 2019, 11:56 PM IST

जांजगीर चांपा: बुनियादी सुविधाएं मिलना हर किसी का अधिकार है, लेकिन जिले में ऐसे कई गांव हैं, जहां आजादी के 72 साल बाद भी बस पगडंडियों का सहारा है. लोग कीचड़ से भरे रास्तों पर चलने को मजबूर हैं. जहां की सड़कों पर डामर गिट्टी नहीं कीचड़ भरा है.

आजादी के बाद से ही सड़क नसीब नहीं हुई

जिले में सिस्टम की मार ने सुदूर ग्रामीण इलाकों के लोगों की जिंदगी मुश्किलों से भर दी है. तस्वीरों में दिख रहे इस गांव में कहने को सड़क तो है, लेकिन उस सड़क पर घुटने भर के गड्ढे हैं, जिसे देखकर ये पता करना मुश्किल है, कि गड्ढे में सड़क है या सड़क में गड्ढे, बस चारों तरफ कीचड़ पसरा है. यहां के लोग कीचड़ से भरी पगडंडियों पर चलने को मजबूर हैं, ये कहानी बिरहनी गांव की है.

जान जोखिम में डालकर स्कूल जा रहे बच्चे
बिरहनी गांव में सड़कों से गुजरना दूभर है. नन्हें-मुन्हें बच्चे जान जोखिम में डालकर स्कूल जाते हैं. इतना ही नहीं ग्रामीण बताते हैं कि गांव में एंबुलेंस तक नहीं पहुंच पाती. मरीजों को 5 किलोमीटर खाट से ले जाया जाता है, कई मर्तबा मरीज अस्पताल पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देते हैं.

रसूखदारों से कई मर्तबा गुहार
ग्रामीण बताते हैं कि ऐसा कोई प्रशासनिक दफ्तर नहीं जहां इनकी अर्जियां न पहुंची हो, ऐसा कोई अधिकारी नहीं जिसके सामने ये गिड़गिडाए न हों, इतना ही नहीं सरपंच से लेकर विधायक जी तक गुहार लगाया, लेकिन रसूखदारों को इससे क्या, 5 रुपये के कलम से इनका दर्द ही तो लिखा था, जिसको कागज का टुकड़ा समझ मोड़कर दफ्तर की डस्टबीन में डाल दिए.

चमचमाती सड़कों की आस
आजादी के 72 साल, पूर्व सरकार के 15 साल और वर्तमान सरकार के 8 महीने, जिससे एक मर्तबा फिर ग्रामीणों के सीने में चाह उभरी है. फिलहाल देखना ये होगा कि बिरहनी गांव के ग्रामीणों को कब चमचमाती सड़कें नसीब होगी, कब बच्चे साफ-सुथरी सड़कों से होकर स्कूल जाएंगे, ये तो आने वाला समय बताएगा.

जांजगीर चांपा: बुनियादी सुविधाएं मिलना हर किसी का अधिकार है, लेकिन जिले में ऐसे कई गांव हैं, जहां आजादी के 72 साल बाद भी बस पगडंडियों का सहारा है. लोग कीचड़ से भरे रास्तों पर चलने को मजबूर हैं. जहां की सड़कों पर डामर गिट्टी नहीं कीचड़ भरा है.

आजादी के बाद से ही सड़क नसीब नहीं हुई

जिले में सिस्टम की मार ने सुदूर ग्रामीण इलाकों के लोगों की जिंदगी मुश्किलों से भर दी है. तस्वीरों में दिख रहे इस गांव में कहने को सड़क तो है, लेकिन उस सड़क पर घुटने भर के गड्ढे हैं, जिसे देखकर ये पता करना मुश्किल है, कि गड्ढे में सड़क है या सड़क में गड्ढे, बस चारों तरफ कीचड़ पसरा है. यहां के लोग कीचड़ से भरी पगडंडियों पर चलने को मजबूर हैं, ये कहानी बिरहनी गांव की है.

जान जोखिम में डालकर स्कूल जा रहे बच्चे
बिरहनी गांव में सड़कों से गुजरना दूभर है. नन्हें-मुन्हें बच्चे जान जोखिम में डालकर स्कूल जाते हैं. इतना ही नहीं ग्रामीण बताते हैं कि गांव में एंबुलेंस तक नहीं पहुंच पाती. मरीजों को 5 किलोमीटर खाट से ले जाया जाता है, कई मर्तबा मरीज अस्पताल पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देते हैं.

रसूखदारों से कई मर्तबा गुहार
ग्रामीण बताते हैं कि ऐसा कोई प्रशासनिक दफ्तर नहीं जहां इनकी अर्जियां न पहुंची हो, ऐसा कोई अधिकारी नहीं जिसके सामने ये गिड़गिडाए न हों, इतना ही नहीं सरपंच से लेकर विधायक जी तक गुहार लगाया, लेकिन रसूखदारों को इससे क्या, 5 रुपये के कलम से इनका दर्द ही तो लिखा था, जिसको कागज का टुकड़ा समझ मोड़कर दफ्तर की डस्टबीन में डाल दिए.

चमचमाती सड़कों की आस
आजादी के 72 साल, पूर्व सरकार के 15 साल और वर्तमान सरकार के 8 महीने, जिससे एक मर्तबा फिर ग्रामीणों के सीने में चाह उभरी है. फिलहाल देखना ये होगा कि बिरहनी गांव के ग्रामीणों को कब चमचमाती सड़कें नसीब होगी, कब बच्चे साफ-सुथरी सड़कों से होकर स्कूल जाएंगे, ये तो आने वाला समय बताएगा.

Intro:जांजगीर चाम्पा/29-08-19
0एम्बुलेंस वाला कहता है मरीज को मेन रोड तक लाओ नही तो गाड़ी फंस जाएगी
0पुलिस गाड़ी भी जाने से कतराती है, ऐसा भी है एक गांव
0आजादी के बाद से ही सड़क नसीब नही हुई
0बलौदा ब्लाक के बिरगहनी गांव में शासन प्रशासन के दावों की खोखली तस्वीर का नजारा
Intro
- जांजगीर-चांपा जिले में ऐसे कई गांव हैं, जहां आजादी से आज तक सड़क मौजूद नहीं है लोग कीचड़ से भरे रास्तों पर चलने के लिए मजबूर है। ऐसा ही एक गांव है बलौदा ब्लॉक का बिरहनी पंचायत इस गांव में सड़क की दुर्दशा देखकर आपको लालटेन युग की याद आ जाएगी।
Body:बलौदा ब्लॉक का बिरहनी पंचायत में ऐसा प्रतीत होगा मानो आप 30-40 साल की पहले की स्थिति में हो।ऐसा लगता है, प्रशासन आंखें मूंदे बैठा है और जनप्रतिनिधि भी इस गांव से मुंह मोड़ चुके हैं। क्योंकि यहां की तस्वीर अपनी कहनी खुद कहती है।
ऐसा लगता है प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से इस गांव से मुंह मोड़ लिया है जिसका जीता जागता उदाहरण है ये सड़क।
इस गांव में सड़क की वजह से एम्बुलेंस नही आती है, कोई शादी ब्याह हो तो परिजन गांव के बाहर भवन लेने की गुजारिश करते हैं। यहां तक की पुलिस वाहन भी गांव में आने से कतराता है। जब कोई बीमार हो तो एम्बुलेंस वाला कहता है मरीजे को मेन रोड तक लाओ नही तो गाड़ी फंस जाएगी।
इस मामले मे ग्रामिणों का कहना है कि गांव की सड़क कभी बनाई ही नही गई, सरपंच ध्यान नही देता। प्रशासनिक अधिकारी और जनप्रतिनिधि विकास की मुख्यधारा में जोड़ने इस गांव पर नजर ही नहीं फेरा।
इस मामले मे जब हमने ग्रामिणों के सामने ही सरपंच चंद्रप्रकाश जोशी से बात करना चाहा तो पहले तो वह नदारद हो गये। ज्यादा दिन नहीं हुए हैं जब बाराद्वारा क्षेत्र में केवल सड़क नहीं होने के कारण एम्बुलेंस नहीं पहुंचने पर एक मरीज दम तोड़ दिया था। इस मामले में जिला प्रशासन को अवगत कराया गया तब जनपद सीईओ के माध्यम से समस्या का हल निकालने का आश्वासन दिया गया है।
बाईट-1 हरिओम दिनदयाल ओगे्र ग्रामीण
बाईट-2 रामेश्वरी बाई ग्रामीण
बाईट-3 लीना कोसम एडीएम जांजगीर-चांपा
Conclusion:सीधी भाषा में कहें तो शासन प्रशासन के सारे दावे- वादे इस गांव में झूठे साबित हो रहे हैं। जिसकी गवाही इस गांव की बदहाल गलियों की तस्वीर चीख-चीख कर दे रही है। इस गांव की दुर्दशा देख कर ऐसा लगता है कि कलेक्टर की टाइम लिमिट मीटिंग जो कि, हर सप्ताह बुलायी जाती है,जहां अधिकारी केवल झूठ का पुलिन्दा लेकर पहुँचते हैं और रटा रटाया जवाब देकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते हैं।
Last Updated : Aug 30, 2019, 11:56 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.