जांजगीर चांपा: छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल की सीएम पद की कुर्सी जाने के बाद कई तरह की बातों को सियासी गलियारों में हवा दी जा रही है. कहीं कोई मीम्स बना रहा है तो कही लोग शगुन-अपशगुन की बाते कह रहे हैं. इस बीच एक चर्चा जोरों पर है. ऐसा माना जा रहा है कि जांजगीर चांपा के अकलतरा विधानसभा क्षेत्र के सरहदी इलाके में दौरे के बाद सीएम पद की कुर्सी चली जाती है.
कहा जाता है कि चुनाव चाहे कोई भी हो. हर चुनाव में किसी की हार तो किसी की जीत होती है. लेकिन जांजगीर चाम्पा जिले में एक ऐसा विधानसभा क्षेत्र भी है, जहां जाने से मुख्यमंत्री भी डरते हैं. अगर मुख्यमंत्री अकलतरा विधानसभा के सरहद में भी आ गए तो उनका मुख्यमंत्री पद जाना तय माना जाता है. वहीं, विपक्षी नेता का दौरा उसे मुख्यमंत्री के पद तक पहुंचाता है. इस बारे में अधिक जानकारी के लिए ईटीवी भारत ने अकलतरा के राजनितिक जानकर रवि सिसोदिया से बातचीत की.
जानिए पॉलिटिकल एक्सपर्ट की राय: इस बारे में पॉलिटिकल एक्सपर्ट रवि सिसोदिया ने कहा कि, "अकलतरा विधानसभा सीट में इस बार भाजपा ने सौरभ सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया. कांग्रेस ने राघवेद्र सिंह, बसपा ने विनोद शर्मा, जेसीसीजे ने ऋचा जोगी और आप पार्टी ने आनंद मिरी को प्रत्याशी बनाया थे. इनके अलावा 11 प्रत्याशी चुनावी मैदान में थे. इन सभी राजनीतिक दल के प्रत्याशी चुनाव प्रचार के लिए पहुंचे थे. लेकिन भूपेश बघेल ना तो चुनाव प्रचार में आए और ना ही भरोसे का सम्मलेन अकलतरा में किया. अकलतरा में कांग्रेस के प्रत्याशी के चुनाव का प्रचार करने छत्तीसगढ़ के डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव नरियरा गांव पहुंचे. यहां की जनता से उन्होंने राघवेद्र सिंह को जिताने का आग्रह किया था. चुनाव परिणाम भी राघवेन्द्र सिंह के पक्ष में आया. कांग्रेस के राघवेन्द्र सिंह ने बीजेपी प्रत्याशी सौरभ सिंह को 22 हजार मतों से हराया. लेकिन दूसरी ओर डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव हार गए और प्रदेश में कांग्रेस सत्ता से बेदखल हो गई."
अकलतरा विधानसभा और अपशगुन का मिथ ?: जांजगीर चाम्पा जिला के इतिहास पर अगर हम गौर करें तो भारत की आजादी के बाद से अकलतरा विधानसभा सीट कांग्रेस का गढ़ रहा है. यहां स्वतंत्रता संग्राम के नायक और संविधान परिषद के सदस्य ठाकुर छेदी लाल बैरिस्टर की जन्म भूमि रही है. इसके कारण अकलतरा स्वतंत्रता संग्राम में प्रमुख केंद्र रहा. भारत की आजादी के बाद अविभाजित मध्य प्रदेश से ठाकुर छेदी लाल बैरिस्टर को मुख्यमंत्री बनना तय था. ठाकुर छेदी लाल बैरिस्टर सरदार बल्ल्भ भाई पटेल के करीबी माने जाते थे. कांग्रेस की अंदरूनी कारणों से इन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया. इसके बाद बैरिस्टर साहब कांग्रेस छोड़ कर अलग पार्टी से चुनाव लड़े और उनकी हार हुई. समय बीतता गया और अकलतरा से आर के सिंह, धीरेन्द्र सिंह और राकेश सिंह कांग्रेस से विधायक बने. साल 1990 के बाद अकलतरा की तस्वीर बदली और बीजेपी के साथ बसपा ने भी जीत हासिल की और अब 23 में फिर से कांग्रेस की जीत हुई.
यहां कब-कब किस सीएम ने किया दौरा: साल 1959 में कैलाश नाथ काटजू अकलतरा रेलवे स्टेशन में अपने साथियों से मिलने आए और चाय पी थी. अकलतरा स्टेशन में चाय की चुस्की उनके मुख्यमंत्री कार्य की आखिरी चुस्की थी. उसके बाद उनकी सीएम की कुर्सी चली गई. फिर साल 1973 में मुख्यमंत्री प्रकाश चंद सेठी भी अकलतरा आए और यहां से जाने के बाद मुख्यमंत्री पद से हाथ धो बैठे. इतना ही नहीं साल 2003 में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री अजित जोगी भी अकलतरा में सभा किए और उन्हें भी मुख्यमंत्री पद नहीं मिला. 15 साल तक मुख्यमंत्री रहने के बाद डाक्टर रमन सिंह भी साल 2018 में अकलतरा विधानसभा के कार्यक्रम शामिल हुए थे. इसके बाद उन्हें भी सीएम पद से हाथ धोना पड़ा.
संकल्प शिविर में नहीं पहुचे थे भूपेश, सिंहदेव ने किया था दौरा: छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने सभी 90 सीटों में संकल्प शिविर का आयोजन किया गया था. अकलतरा भी उसमें शामिल था. सभी विधानसभा सीटों पर भूपेश बघेल पहुंचे, लेकिन अकलतरा विधानसभा में आयोजित संकल्प शिविर से भूपेश बघेल ने दूरी बनाई, जो चर्चा का विषय रहा. लेकिन विधानसभा चुनाव के दौरान उप मुख्यमंत्री टी एस सिंह देव ने अकलतरा विधानसभा के नरियरा गांव में चुनावी सभा को सम्बोधित किया. इसके बाद सिंहदेव खुद अपने विधानसभा क्षेत्र में हार गए. इतना ही नहीं कांग्रेस को भी सत्ता से बेदखल होना पड़ा.