जांजगीर चांपा: हलषष्ठी व्रत का अपना अलग ही महत्व है. छत्तीसगढ़ में हलषष्ठी (hal sashti vrat) को कमरछठ कहा जाता है. भादो माह के कृष्ण पक्ष में होने वाले इस व्रत को भगवान कृष्ण के जन्म से जोड़ कर देखा जाता है. मान्यता है कि कंस ने अपनी बहन देवकी और उसके पति वासुदेव को कारागार में बंद कर दिया था और उसके 6 संतानों को मार दिया था. जिससे दुखी देवकी माता को नारद जी ने हलषष्ठी देवी की पूजा की विधि बताई और देवकी ने इस व्रत को करने के बाद अपने पुत्र के रूप में भगवान कृष्ण को पाया था.
हल चले बिना उपजे फल फूल से बनाता है प्रसाद: आचार्य नंद कुमार मिश्रा ने बताया कि "इस पूजा को करने के लिए महिलाएं अपने घर के आंगन में छोटा सा तालाब बनाती हैं और बच्चों के खेलने का सामान भी वहां रखती हैं. आज भी इसी प्रकार पूजा की गई. माताओं ने हलषष्ठी देवी की पूजा की और पूजा के बाद अपने बच्चों को लंबी उम्र का आशीर्वाद भी दिया. हलषष्ठी माता की पूजा में बिना हल जोते उगने वाले पसहर चावल का उपयोग किया जाता है. भैंस के दूध, दही और घी का उपयोग कर पसहर चावल के अवाला 6 प्रकार की भाजी मिला कर प्रसाद बनाई और उसे ग्रहण किया."
जन्माष्टमी की तैयारी शुरू: हलषष्ठी व्रत रखने के बाद अभी से कान्हा के स्वागत की तैयारी शुरू हो गई है. 19 अगस्त को घर घर कृष्ण जन्माष्टमी मानने की तैयारी की जा रही है. इस बार जन्माष्टमी 18 अगस्त और 19 अगस्त दोनों दिन मनाई जाएगी.