जांजगीर चांपा: जिले में रक्षाबंधन और आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर राखियों से नवाचार का अंकुर फूट रहा है. परंपरागत तौर पर रेशमी और सूती धागों से बनी राखियां बाजार में सज गई है. लेकिन अब गाय के गोबर, मिट्टी और विभिन्न फल फूल के बीज मिलाकर रक्षासूत्र भी बनाए जा रहे हैं. इस राखी को त्योहार के बाद गमले में रख कर पानी देने से पौधा बन कर भाई बहन का स्नेह और भी लहलहाएगा.
परिवार का मिला पूरा सहयोग: जांजगीर चांपा की नेहा अविनाश अग्रवाल, मधु अग्रवाल और उनके नन्हें दोस्त नेहा श्रीवास, आरती श्रीवास और सोनल कुमारी ने ईको फ्रेंडली राखियां बनाने की अनोखी पहल शुरू की है. इन्होंने गाय के गोबर और मिट्टी में नींबू, अश्वगंधा, कालमेघ के साथ साथ गेंदा फूल के बीज मिलाकर रक्षासूत्र तैयार किया है. इसे फौजी भाइयों के साथ पुलिस जवानों की कलाई में सजाने के लिए तैयार किया गया है.
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15 दिन में 2 हजार राखियां: नेहा अविनाश अग्रवाल कहती है कि उन्होंने घर में फल, फूल और सब्जियों के बीज को फेंकने के बजाय एक डिब्बा में संभाल कर रखा है. उन बीजों को गोबर, मिट्टी और फूल के बीजों के साथ मिलाकर राखी तैयार किया है. इन राखियों को 24 घंटा सूखा कर तैयार किया जाता है. घर में कम जगह होने के कारण मधु छत पर राखियां तैयार कर रही है. कभी कड़ी धूप तो कभी बारिश का सामना करना पड़ता है. बारिश में राखी गिली न हो, इसके लिए बेड रूम में भी राखी सुखाया करती हैं.
राखी में तिरंगा का भी दिखता है सम्मान: नेहा अविनाश अग्रवाल और छोटे बच्चों के द्वारा बनाई गई इस राखी में जहां पर्यावरण संरक्षण का प्रयास है, वहीं देश भक्ति का जज्बा दिखाते हुए राखी को अलग अलग आकार दिया गया है. गोल और भारत के नक्शे के सामान तीन रंगों में ढाला गया है. फिर रस्सी के रूप में तिरंगा पट्टी का उपयोग कर मेरे भैया लिखा है. इस राखी को नेचुरल रंगों से रंग कर तैयार किया गया है. इस राखी को बनाने में सिर्फ गोबर, मिट्टी और मंदिरों से निकलने वाले सूखे फूल और फलों के बीज का उपयोग किया गया है. राखी को पहनने के बाद भाई इसे गमले में डाल दें तो कोई न कोई फूल, फल का पौधा जरूर निकलेगा, जो प्रकृति की शोभा बढ़ाएगा.