जांजगीर चांपा: गांव में रहने वाले गरीब और किसान आज भी देशी अंदाज का मनोरंजन पसंद करते हैं. चाहे वो आल्हा उदल की लोक कहानियां हों या फिर छत्तीसगढ़ का राउत नाचा या फिर नाचा पार्टी. लोक कलाकारों की इस कला को गांव के लोग आज भी उतना ही पसंद करते हैं जितना पहले किया करते थे. गांव में जब पहले नाचा पार्टी आती थी तो लोग शाम से ही आयोजन स्थल पर जाकर जम जाते थे, घंटों इंतजार करते थे. नाचा पार्टी को लेकर गांव वालों का ये क्रेज आज भी वैसे ही बरकरार है. मनोरंजन का ये शुद्ध और देशी साधन भले ही आज आपको पुराना नजर आए लेकिन गांव के लोग आज भी लोक कलाकारों की कला के दीवाने हैं, और खुद को उससे कनेक्ट भी करते हैं
देसी एक्शन का सियासी कनेक्शन: छत्तीसगढ़ का सियासी तापमान इन दिनों चरम पर है. कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियां जनता को अपने-अपने पाले में लाने की दिन रात जुगाड़ में जुटी है. कोई बैनर पोस्टरों की मदद ले रहा है तो कोई नेताओं की, लेकिन इन सबसे अलग एक प्रचार का ऐसा भी माध्यम इन दिनों मैदान में है जिसे कई लोग लंबे वक्त के बाद देख और सुन रहे हैं वो है नाचा पार्टी. कभी इन नाचा पार्टी का आयोजन गांव मे शादी और त्योहारों के मौकों पर मनोरंजन के लिए होता थाा. पर इस बार के विधानसभा चुनावों में एक नया प्रयोग भी सियासी पार्टियों ने किया है वो नाचा पार्टी. नाचा पार्टी के कलाकार गांव गलियों की भाषा के जरिए नेता और उनकी पार्टी का प्रचार ग्रामीण इलाके में धड़ल्ले से कर रहे हैं. इनके देशी अंदाज में किए जा रहे प्रचार को देखने और सुनने के लिए लोगों की भारी भीड़ भी जुट रही है. लिहाजा सभी पार्टियों ने गांव में प्रचार के लिए नाचा पार्टी को प्रमुख हथियार के तौर पर इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है.
कलाकार को मिला काम, बनी नई पहचान: नाचा पार्टी में काम करने वाले कलाकार भी इन दिनों खुद को धन्य मान रहे हैं. नाचा पार्टी के कलाकारों का कहना है कि पहले तो शादी विवाह में ही उनको काम मिलता था. पर अब चुनाव के मैदान में भी उनको काम मिल रहा है. पहले दो जून रोटी और काम मुश्किल से नसीब होता था, लेकिन अब काम और डिमांड इतना ज्यादा है कि आराम करने का वक्त तक नहीं मिल रहा. नाचा कलाकार इस बात से भी काफी खुश हैं कि उनको पार्टी के लोग खाना पीना और पैसा और सम्मान सब दे रहे हैं. समय पर पैसा और खाना मिलने से उनकी बंद गाड़ी जैसे चल निकली है
चौक चौराहों पर गांव के लोग भले ही चुनावी चर्चा करें लेकिन सियासी पार्टियों और नेताओं को ज्यादातर लोग पसंद नहीं करते. पर इस बार पार्टियों ने जो प्रचार का नया अंदाज इजाद किया है उससे गांव वाले जरूर खुश हैं. लाइट कैमरा और एक्शन गांव वालों की डिक्सनरी में जरूर नहीं होता लेकिन ये ठेठ अंदाज और प्रचार का देशी वर्जन जरूर गांव वालों को रास आ रहा है. लिहाजा वो वोट चाहे वो किसी को भी दें आनंद तो वो सौ फीसदी वसूल रहे हैं और नेताजी को थैंक्यू भी बोल रहे हैं