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दाने-दाने को मोहताज है परिवार, 'आत्महत्या के अलावा कोई रास्ता नहीं'

जांजगीर-चांपा जिला मुख्यालय से महज 3 किलोमीटर दूर पेंड्री गांव के रहने वाले दुर्गा प्रसाद पहले से दो दिव्यांग बच्चों का दर्द झेल रहे थे कि, भाग्य ने उनकी पत्नी को कैंसर जैसी बीमारी दे दिया.

story of poor family
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Published : Apr 2, 2019, 1:09 PM IST

Updated : Apr 3, 2019, 3:12 PM IST

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जांजगीर चांपा: पहले दुर्गा प्रसाद यादव के दो बच्चों को भाग्य ने दिव्यांग बना दिया, उस पर गरीबी की मार और पत्नी के कैंसर ने दुर्गा प्रसाद को और लाचार कर दिया. दुर्गा प्रसाद पहले दूसरे के घरों में बर्तन-कपड़े साफ कर गुजारा कर रहे थे, लेकिन दोनों बच्चों की 50 फीसदी से ज्यादा दिव्यांगता और पत्नी के कैंसर ने उन्हें घर से निकलना भी मुश्किल कर दिया. दुर्गा प्रसाद के लिए हालात ऐसे बन गए कि, पत्नी की दवा तो दूर दो दिव्यांग बच्चों के लिए दो वक्त का रोटी जुगाड़ना भी मुश्किल हो गया है.

सरकारी सुविधा के नाम पर एक रुपये की भी मदद नहीं

दुर्गा प्रसाद के लिए सरकारी दावे और वादे बस कहने-सुनने के लिए रह गए हैं. दुर्गा प्रसाद को सरकारी सुविधा के नाम पर एक रुपये की भी मदद नहीं मिल पा रही है. मामला जांजगीर-चांपा जिला मुख्यालय से महज 3 किलोमीटर दूर पेंड्री गांव का है. जहां के रहने वाले दुर्गा प्रसाद पहले से दो दिव्यांग बच्चों का दर्द झेल रहे थे कि, भाग्य ने उनकी पत्नी को कैंसर जैसी बीमारी दे दिया. सुकून से जिंदगी जी रहे परिवार को हालात ने साहूकारों के दरवाजे तक पहुंचा दिया, लेकिन सरकारी मदद और सिस्टम को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा.

कलेक्टर जनदर्शन में कई बार दे चुके हैं आवेदन

दुर्गा प्रसाद प्रशासन से मदद के लिए कलेक्टर जनदर्शन में कई बार आवेदन दे चुके हैं, लेकिन आज तक प्रशासन ने इनकी सुध नहीं ली. प्रशासन की अनदेखी से दुर्गा प्रसाद के परिवार की हालत बद से बदतर होते जा रहा हैं. दुर्गा प्रसाद के पास अपनी जमीन नहीं है, लिहाजा अब धीरे-धीरे रिश्तेदार और साहूकार भी दूर जाने लगे हैं. ऐसी स्थिति में वो आत्महत्या करने की बात तक कह रहा है, लेकिन सरकार को इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ रहा है.

दम तोड़ने लगा है स्मार्ट कार्ड

फिलहाल सरकारी मदद के नाम पर दुर्गा प्रसाद को खाने के लिए सिर्फ 35 किलो चावल मिल रहा है. थोड़ी मदद सरकार के दिए स्मार्ट कार्ड से मिल रहा है, लेकिन कैंसर जैसे बीमारी के लिए स्मार्ट कार्ड भी दम तोड़ने लगा है.

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जांजगीर चांपा: पहले दुर्गा प्रसाद यादव के दो बच्चों को भाग्य ने दिव्यांग बना दिया, उस पर गरीबी की मार और पत्नी के कैंसर ने दुर्गा प्रसाद को और लाचार कर दिया. दुर्गा प्रसाद पहले दूसरे के घरों में बर्तन-कपड़े साफ कर गुजारा कर रहे थे, लेकिन दोनों बच्चों की 50 फीसदी से ज्यादा दिव्यांगता और पत्नी के कैंसर ने उन्हें घर से निकलना भी मुश्किल कर दिया. दुर्गा प्रसाद के लिए हालात ऐसे बन गए कि, पत्नी की दवा तो दूर दो दिव्यांग बच्चों के लिए दो वक्त का रोटी जुगाड़ना भी मुश्किल हो गया है.

सरकारी सुविधा के नाम पर एक रुपये की भी मदद नहीं

दुर्गा प्रसाद के लिए सरकारी दावे और वादे बस कहने-सुनने के लिए रह गए हैं. दुर्गा प्रसाद को सरकारी सुविधा के नाम पर एक रुपये की भी मदद नहीं मिल पा रही है. मामला जांजगीर-चांपा जिला मुख्यालय से महज 3 किलोमीटर दूर पेंड्री गांव का है. जहां के रहने वाले दुर्गा प्रसाद पहले से दो दिव्यांग बच्चों का दर्द झेल रहे थे कि, भाग्य ने उनकी पत्नी को कैंसर जैसी बीमारी दे दिया. सुकून से जिंदगी जी रहे परिवार को हालात ने साहूकारों के दरवाजे तक पहुंचा दिया, लेकिन सरकारी मदद और सिस्टम को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा.

कलेक्टर जनदर्शन में कई बार दे चुके हैं आवेदन

दुर्गा प्रसाद प्रशासन से मदद के लिए कलेक्टर जनदर्शन में कई बार आवेदन दे चुके हैं, लेकिन आज तक प्रशासन ने इनकी सुध नहीं ली. प्रशासन की अनदेखी से दुर्गा प्रसाद के परिवार की हालत बद से बदतर होते जा रहा हैं. दुर्गा प्रसाद के पास अपनी जमीन नहीं है, लिहाजा अब धीरे-धीरे रिश्तेदार और साहूकार भी दूर जाने लगे हैं. ऐसी स्थिति में वो आत्महत्या करने की बात तक कह रहा है, लेकिन सरकार को इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ रहा है.

दम तोड़ने लगा है स्मार्ट कार्ड

फिलहाल सरकारी मदद के नाम पर दुर्गा प्रसाद को खाने के लिए सिर्फ 35 किलो चावल मिल रहा है. थोड़ी मदद सरकार के दिए स्मार्ट कार्ड से मिल रहा है, लेकिन कैंसर जैसे बीमारी के लिए स्मार्ट कार्ड भी दम तोड़ने लगा है.

Intro:जांजगीर चांपा:- भले ही सरकार विकास के लाख दावे करें चाहे वह बीजेपी हो या कांग्रेस मगर विकास की क्या हकीकत है आप इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि जांजगीर-चांपा जिला मुख्यालय से महज 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पेंड्री में कुदरत का कहर और प्रशासन अनदेखी झेलता । दरअसल में दुर्गा प्रसाद यादव की पत्नी श्याम भाई पिछले 2 साल से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से पीड़ित है तो वही दुर्गा प्रसाद के दो बच्चे जो कि 50% से भी अधिक दिव्यांग । पहले तो दुर्गा प्रसाद अपने परिवार को चलाने के लिए दूसरे के घर पर बर्तन और कपड़ा साफ करके घर को चला लेता था मगर वर्तमान में उसी घर की स्थिति देखते हुए वह अब काम भी नहीं कर सकता क्योंकि दोनों बच्चे दिव्यांग और पत्नी कैंसर जैसे गंभीर बीमारी से पीड़ित है ऐसे में उसको परिवार चलाने के लिए उसके पास पैसे तक नहीं फिलहाल वो रिश्तेदारों से उधारी और साहूकारों से ब्याज लेकर अब तक काम चला रहा है । दुर्गा प्रसाद ने प्रशासन से मदद के लिए कलेक्टर जनदर्शन में कई बार आवेदन तक दिए हैं मगर अब तक प्रशासन की अनदेखी की वजह से उसके हालात बद से बदतर हैं उसके पास न तो पत्नी के इलाज के लिए पैसे हैं ना ही दिव्यांग बच्चों की परवरिश के लिए पैसे घर की माली हालत तो आप इन तस्वीरों को देख कर ही समझ सकते हैं ना तो दुर्गा के पास जमीन है नाही बैंक में पैसे दूसरों से उधारी और साहूकारों से ब्याज लेकर दुर्गा अपनी पत्नी का इलाज करा रहा है। दुर्गा प्रसाद की स्थिति अब ऐसी हो गई है कि वह आत्महत्या जैसे जोखिम कदम उठाने की बात कर रहा है। दुर्गा प्रसाद ने बताया कि सरकार से मदद मिल रहे हो तो सिर्फ खाने के लिए 35 किलो चावल बस मिल रहा है। और थोड़ा मदद स्मार्ट कार्ड से मिल पा रहा है लेकिन कैंसर जैसे बड़ी बीमारी के लिए स्मार्ट कार्ड भी क्या काम का। जिले में सरकार के तमाम उन बड़े बड़े योजनाओं के हालात क्या हैं आप इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि दुर्गा प्रसाद गरीब परिवार से तो है ही लेकिन अब तक ना तो उसे समाज कल्याण विभाग की ओर से उसके दोनों दिव्यांग बच्चों को व्हीलचेयर तक नहीं मिल पाया नहीं रहने के लिए पीएम आवास योजना के तहत उसे पक्की मकान मिल पाया किचन की बात करें तो उज्जवला गैस योजना के तहत उसे अब तक गैस सिलेंडर भी नहीं मिल पाया। मिला है तो केवल स्वच्छ भारत मिशन के तहत एक शौचालय उसके भी हालात ऐसे हैं कि दरवाजे टूट चुके हैं शौचालय की हालात बद से बदतर हो रही है। शायद प्रशासन से उसे किसी भी प्रकार की मदद मिलती तो दुर्गा प्रसाद के जख्मों पर मरहम लगाने जैसा होता। लेकिन अब तक ना तो प्रशासन या कोई जनप्रतिनिधि उनकी मदद के लिए सामने नहीं आए हैं। अब दुर्गा प्रसाद एवं उसके परिवार वालों को उम्मीद है की प्रशासन की ओर से उन्हें कोई सरकारी मदद मिल जाए इसी उम्मीद पर वो अब जी रहे हैं।


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Last Updated : Apr 3, 2019, 3:12 PM IST
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