बस्तर: छत्तीसगढ़ के बस्तर का नाम सुनते ही नक्सलवाद की बात जेहन में आती है. लेकिन अब तस्वीर बदल रही है. यहां कॉफी की खेती भी हो रही है और महुआ के लड्डू भी तैयार किए जा रहे हैं. बस्तर की बेटी रजिया शेख महुआ की खुशबू देश के साथ ही विदेशों में भी फैला रही हैं. कुपोषण के खिलाफ अभियान चलाने में अपनी अहम भूमिका निभा रहीं बस्तर फूड फॉर्म एंड कंसलटेंसी सर्विसेस से जुड़ीं रजिया बस्तर की महिलाओं को रोजगार देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में भी मदद कर रही हैं.
इस काम के लिए रजिया का चयन नीति आयोग की जारी देश की तस्वीर बदलने वाली 30 महिलाओं की सूची में भी हुआ है. सेन फ्रांसिस्को में आयोजित स्टार्टअप राजीव सर्कल फेलोशिप में एशिया का प्रतिनिधित्व भी किया है.
महुआ पर शोध
रजिया ने जगदलपुर, हैदराबाद और विजयवाड़ा में पढ़ाई की है. MSc माइक्रोबायोलॉजी के बाद शोधकर्ता बनीं. रायपुर में एक कार्यक्रम के दौरान कुछ आदिवासी महिलाएं महुआ लड्डू लेकर आईं थी, जिसे देखकर उन्होंने इस पर रिसर्च शुरू किया.
बस्तर में महुआ आदिवासी संस्कृति का हिस्सा है. इसे भूनकर गुड़ के साथ खाया जाता है. इसके सेवन से ग्रामीणों को भरपूर ताकत मिलती है. इसे ही अब महुआ लड्डू नाम दिया गया है.
आसान नहीं थी राह
रजिया ने बताया कि महुआ से लड्डू बनाने का संघर्ष आसान नहीं था. लोगों की धारणा बन गई है कि महुआ से सिर्फ शराब बनाई जाती है. लिहाजा लोगों को महुआ का महत्व बताने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी. लेकिन जब लोगों ने महुआ लड्डू का स्वाद चखा तो धीरे-धीरे इसकी डिमांड बढ़ने लगी.
स्वादिष्ट बनाने की थी चुनौती
काफी रिसर्च के बाद उनकी टीम ने महुआ लड्डू को टेस्टी और हेल्दी बनाने का तरीका ढूंढा. बिना किसी केमिकल का उपयोग कर एक पैक्ड प्रोडक्ट के रूप में तैयार करने में कामयाबी मिली. 8 महिला स्व-सहायता समूह के जरिए काम शुरू किया. इनमें 80 महिलाएं और 5 पुरुष काम कर रहे हैं. जिन्हें महुआ लड्डू से आय भी हो रही है. बस्तर जिला ही नहीं बल्कि कोंडागांव, कांकेर और बीजापुर में भी यह स्वसहायता समूह महुआ से लड्डू बना रहे हैं.
गुणकारी है महुआ लड्डू
⦁ जीरा, सूखी अदरक(सोंठ), लौंग, घी का इस्तेमाल होता है.
⦁ केरोटीन, एस्कॉर्बिक एसिड, थाइमिन, रिबोफ्लेविन, नियासिन, फोलिक एसिड, बायोटिन और इनोसिटोल खनिज पाए जाते हैं.
⦁ प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और विटामिन भी पाए जाते हैं.
⦁ बच्चों और किशोरियों में कुपोषण, महिलाओं में खून की कमी दूर करने में सहायक.
⦁ रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है.
⦁ गर्भवती महिलाओं के लिए भी फायदेमंद
विदेशों तक है डिमांड
पहले बड़े-बड़े आयोजनों में स्टॉल लगाना शुरू किया. महानगरों में लोगों को समझाया और फिर धीरे-धीरे मांग बढ़ने लगी. एक NRI ने सेन फ्रांसिस्को में लगे स्टॉल में एक लड्डू को 450 रुपए में यह कहकर खरीद लिया कि इसकी महक से उन्हें अपनी मातृभूमि की याद आ गई.
कोरोना पेशेंट भी कर रहे सेवन
चंडीगढ़, गुजरात, गोवा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना से बड़ी मात्रा में अब महुआ लड्डू के ऑर्डर मिल रहे हैं. कोरोना मरीज भी लड्डू के ऑर्डर दे रहे हैं.
8 से ज्यादा प्रोडक्ट तैयार
महुआ से कैंडी, जेली, हनी नट्स, महुआ जूस बार और करीब 8 से ज्यादा प्रोडक्ट तैयार किए गए हैं. सभी प्रोडक्ट देश के अलग-अलग राज्यों में भी पसंद किए जा रहे हैं.
सरकार से मदद की आस
रजिया ने शासन से एक एकड़ जगह की मांग की है. एक इंस्टीट्यूट की भी उन्होंने मांग की है ताकि बेसिक पढ़ाई के साथ-साथ बस्तर के पढ़े-लिखे युवा बस्तर फूड में भी अपनी रुचि दिखा सकें और भविष्य बना सकें.
सोशल मीडिया में हुआ प्रचार
सोशल मीडिया के जरिए भी महुआ के बने प्रोडक्ट्स का खूब प्रचार-प्रसार किया गया. अब हर दिन बड़ी मात्रा में ऑर्डर मिलते हैं. लेकिन स्टाफ की कमी और शासन की बेरुखी की वजह से वे ऑर्डर की पूर्ति नहीं कर पा रहे हैं.
कलेक्टर का मदद का भरोसा
बस्तर कलेक्टर रजत बंसल ने ने कुपोषण मुक्त बस्तर बनाने के लिए सभी आंगनबाड़ी केंद्रों में महुआ लड्डू को भी शामिल किए जाने की बात कही है. उनका कहना है कि बस्तर फूड के लिए जमीन देने पर भी विचार किया जा रहा है.
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एक छोटे से आइडिया पर काम करने के बाद रजिया ने खुद का मुकाम बना लिया है. उन्होंने न सिर्फ आदिवासी महिलाओं के साथ युवाओं को रोजगार से जोड़ा बल्कि कुपोषण मुक्त बस्तर में भी अहम भूमिका निभा रहीं हैं.