जगदलपुर: राज्य सरकार की ओर से राम वनगमन पथ में बस्तर के 3 स्थलों का चयन किया गया है. पौराणिक कथाओं के अनुसार वनवास के दौरान भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता बस्तर के इन स्थलों से गुजरते हुए दक्षिण भारत पहुंचे थे. यहीं वजह है कि राज्य सरकार ने इन तीन स्थलों को पर्यटन के दृष्टिकोण से और ज्यादा विकसित करने का फैसला लिया है. इसके लिए काम भी शुरू कर दिया है. इन तीन स्थलों में चित्रकोट जलप्रपात, तीरथगढ़ जलप्रपात और बस्तर की ऐतिहासिक धरोहर दलपत सागर शामिल है. ETV भारत बताने जा रहा है कि भगवान श्रीराम अपने 14 साल के वनवास के दौरान बस्तर के इन स्थलों में, किस तरह अपना समय व्यतीत किया था.
दरअसल वनवास के दौरान भगवान श्रीराम लंबे समय तक बस्तर में रहे. श्रीराम अपने वनवास के चौथे चरण में बस्तर के दंडकारण्य पहुंचे थे. भगवान राम धमतरी से कांकेर, कांकेर से रामपुर, जुनवानी, केशकाल घाटी शिव मंदिर, राकसहाड़ा, नारायणपुर, चित्रकोट शिव मंदिर, तीरथगढ़ जलप्रपात, सीताकुंड, रामपाल मंदिर, कोटी माहेश्वरी, कुटुंबसर गुफा और ओडिशा के मलकानगिरी गुप्तेश्वर और सुकमा जिले के रामाराम मंदिर समेत कोंटा में श्रीराम ने वनवास के दिनों में यहां से होकर दक्षिण भारत के लिए प्रस्थान किया था.
दंडकारण्य में बिताया ज्यादातर समय
बस्तर में राम वनगमन पथ को लेकर शोध कर रहे हैं शोधकर्ता विजय भारत ने बताया कि, भगवान श्रीराम ने अपने 14 साल के वनवास के दौरान दंडकारण्य में अपना ज्यादा समय बिताया था. भगवान ने राम वनवास के तीसरे पड़ाव में अत्रि ऋषि के आश्रम में कुछ दिन रुकने के बाद, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के घने जंगलों को अपना आश्रय बनाया. यह जंगल क्षेत्र था दंडकारण्य. कांकेर से होते हुए भगवान राम, लक्ष्मण और सीता मईया चित्रकोट जलप्रपात पहुंचे. जब चित्रकोट पहुंचे तो यहां ऋषि मुनियों के आश्रम में राम भगवान, सीता माता और लक्ष्मण ने अपना कुछ समय बिताया. इस दौरान एक शिवलिंग की स्थापना की, जहां अब एक भव्य मंदिर बन गया है. हर साल शिवरात्रि के समय चित्रकोट में एक मेला भी लगता है. जिसमें दूर दूर से लोग पहुंचते हैं.
आज भी मौजूद हैं भगवान के पद चिन्ह
चित्रकोट के बाद भगवान राम माता सीता और लक्ष्मण के साथ बस्तर के ही पर्यटन स्थल तीरथगढ़ पहुंचे. यहां के पुजारी ने बताया कि तीरथगढ़ में 3 कुंड है. जिसका नाम मछली कुंड, सीताकुंड और रामकुंड है. इसी कुंड में भगवान राम और माता सीता ने स्नान किया था. जिसके बाद वे कुटुंबसर गुफा की ओर बढ़ गए. तीरथगढ़ के शिव मंदिर में राम भगवान के पद चिन्ह आज भी मौजूद हैं. कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 1000 साल पहले किया गया था. इस पौराणिक मंदिर में राम भगवान और सीता माता से जुड़ी कई कलाकृतियां बनाई गई हैं. जो इस बात का प्रमाण है कि श्रीराम यहां आए थे.
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आदिवासियों में श्रीराम के प्रति गहरी आस्था
इसके अलावा उन्होंने कुटुंबसर गुफा में भी अपना डेरा डाला था. कुटुंबसर गुफा में भी ऐसी कई कलाकृतियां बनी हुई दिखाई देती हैं, जो इस बात की पुष्टि करती है. ऐसा मानना है कि कुटुंबसर गुफा के अंतिम छोर में भगवान राम ने शिवलिंग की स्थापना कर पूजा भी की थी. लेकिन अभी के समय में वहां तक पहुंचने का मार्ग बंद है. शोधकर्ता बताते हैं कि बस्तरवासियों की भगवान राम से काफी गहरी आस्था जुड़ी हुई है. ऐसी मान्यता है कि उस समय में आदिवासी समुदाय भी भगवान राम के साथ युद्ध में शामिल हुए थे. शायद यहीं वजह है कि बस्तर के आदिवासी आज भी तीर धनुष चलाते हैं. इसके अलावा आज भी आदिवासी ग्रामीणों के नाम के पीछे राम का जिक्र होता है.
रामपाल गांव में ठहरे थे भगवान राम
शोधकर्ता ने बताया कि भगवान राम वनवास के दौरान बस्तर के रामपाल गांव में भी अपना समय बिताया था. यहां शिवलिंग की पूजा की थी. यही वजह है कि इस रामपाल मंदिर में 1000 साल पुरानी शिवलिंग है. शोधकर्ता विजय भारत ने बताया कि उनकी टीम पिछले 15 सालों से राम वनगमन पथ पर शोध कर रही है. इस दौरान उन्हें कई प्रमाण भी मिले हैं. वहीं राज्य सरकार की ओर से रामवन गमन पथ में बस्तर के इन स्थलों को शामिल किए जाने से, शोधकर्ताओं की टीम में काफी खुशी है. शोधकर्ताओं की टीम की ओर से ही पर्यटन विभाग के सचिव को आग्रह कर ऐतिहासिक धरोहर दलपत सागर को भी राम वनगमन पथ में शामिल किया गया है. जल्द ही इन स्थलों को छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल में शामिल करने के साथ ही, इसे विकसित किया जा रहा है.
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बस्तर के जंगलों में नहीं हैं काटेदार पेड़
दलपत सागर बचाओ मंच के अध्यक्ष और इतिहासकार संजीव शर्मा बताते हैं कि अपने वनवास के दौरान जब भगवान राम बस्तर से होते हुए दक्षिण भारत की ओर प्रस्थान किए थे, तब उन्होंने नंगे पैर ही बस्तर के पूरे घने जंगलों, पहाड़ों को पार किया था. इस दौरान बस्तर में कहीं भी कांटों के पौधे या पेड़ नहीं मिले. आज भी बस्तर के आदिवासी भगवान राम के प्रति अपनी गहरी आस्था रखते हुए नंगे पांव ही कटीले पहाड़, घने जंगल को पार करते हैं.
बस्तर के लोगों में खुशी
संजीव शर्मा ने बताया कि राज्य सरकार की ओर से दलपत सागर को भी राम वनगमन पथ में शामिल किए जाने से शहरवासियों में काफी खुशी है. उन्होंने शासन से आग्रह किया है कि लगभग विलुप्त होते दलपत सागर के अस्तित्व को बचाने के लिए सही तरीके से विकास कार्य किया जाए. इससे बस्तर के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाए.
जल्द शुरू किया जाएगा काम: रेखचंद
जगदलपुर विधायक और संसदीय सचिव रेखचंद जैन ने कहा कि राज्य सरकार की और से राम वनगमन पथ में बस्तर के इन तीन स्थलों को शामिल किए जाने से, बस्तरवासियों में काफी खुशी है. राज्य सरकार ने जो वादा बस्तरवासियों से किया था, उसे पूरा कर दिखाया है. जल्द ही इन तीनों स्थलों को भव्य रूप से विकसित करने के लिए काम शुरू कर दिया जाएगा. नगर निगम आयुक्त ने बताया कि लगभग 8 करोड़ की लागत से दलपत सागर का सौंदर्यीकरण किया जाएगा.