जगदलपुर: इंसानों की तरह हुबहू बोली की नकल करने वाली राजकीय पक्षी पहाड़ी मैना की मौत हो गई है. शहर के वन विद्यालय में बनाये गए विशालकाय पिंजरे में पहाड़ी मैना को रखा गया था. यह मैना लगभग 5 साल से पिंजरे में रह रही थी. वन विभाग के अधिकारियों ने पहाड़ी मैना की मौत को स्वाभाविक मौत बताया है.
मैना का नामकरण भी किया गया था
दरअसल बस्तर में तेजी से लुप्त हो रही पहाड़ी मैना के संरक्षण और संवर्धन के लिए कई वर्षों से प्रयास किए जा रहे हैं. साल 1995 में वन विभाग ने 4 पहाड़ी मैना को जंगल से पकड़कर इस विद्यालय में रखा था. वन विद्यालय के परिसर में इनके लिए वृहद रूप से पिंजरा भी बनाया गया था. जहां इन्हें रखकर इनके नामकरण भी किए गए थे.
देख-रेख के अभाव में हुई मौत
लेकिन देखरेख के अभाव में एक-एक कर दो पहाड़ी मैना की मौत हो गई. जबकि 1 मैना को जहरीले सांप ने कांट लिया और पायल नाम की मैना बीते 5 सालों से अकेली पिंजरे में थी. देश के कोने-कोने से आए पक्षी विशेषज्ञों ने भी इसके संवर्धन के लिए कई प्रयास किए गए हैं. बावजूद इसके बस्तर में लुप्त होती मैना को बचाने में सफल नहीं हो पाए. लिहाजा प्रदेश की शान पहाड़ी मैना पायल की भी 3 दिन पहले मौत हो गई.
राज्य के बंटवारें में मिली थी मैना
दरअसल मध्यप्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ राज्य बनने के साथ ही पहाड़ी मैना को राजकीय पक्षी का दर्जा दिया गया था. यह मैना किसी भी आवाज की हुबहू नकल कर लेती है. यह कांगेर घाटी, गंगालूर, बारसूर, बैलाडिला की पहाड़ियों के अलावा छत्तीसगढ़ और ओडिशा के गुप्तेश्वर क्षेत्र में ही पाई जाती थी.
2 और नई मैना को किया गया शिफ्ट
इधर इस पहाड़ी मैना की मौत के बाद अब बड़े पिंजरे में दो नई मैना को शिफ्ट करने की कवायद चल रही है, जो अब तक छोटे पिंजरे में पल रही थीं. 2 साल पहले ही वन विभाग की टीम कांगेर वैली के जंगलों पकड़कर इन्हें लाई है.