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SPECIAL: बस्तर का फ्रेंडशिप डे, जिसमें फ्रेंड बनाकर अनफ्रेंड नहीं कर सकते

गोंचा त्यौहार के दौरान कई रस्मों रिवाज भी होते हैं. इन्हीं रिवाजों में एक है मीत बांधना. मीत यानी दोस्त. बस्तर में गोंचा पर्व करीब 611 साल पहले से मनाया जा रहा है.

स्पेशल स्टोरी
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Published : Jul 11, 2019, 5:02 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 7:56 AM IST

जगदलपुर: आज हमारी फ्रेंडलिस्ट सोशल साइट पर बहुत लंबी भले हो लेकिन रियल लाइफ में स्कूल, कॉलेज और काम के दौरान बनाए दोस्त ही काम आते हैं. किस्से तो हमने भगवान कृष्ण और सुदामा के भी खूब सुने हैं. फेसबुक, इंस्टाग्राम की दोस्ती छोड़िए आज आप छत्तीसगढ़ की 611 साल पुरानी एक ऐसी परंपरा के बारे में जानिए, जिसमें एक खास दिन भगवान के सामने लोग दोस्त बनाते हैं और जिंदगी भर दोस्ती निभाते हैं. और इनकी दोस्ती में अनफ्रेंड करने का ऑप्शन भी नहीं होता.

स्पेशल स्टोरी

छत्तीसगढ़ का आदिवासी क्षेत्र बस्तर की पहचान उनकी संस्कृत और परंपराओं की वजह से भी है. वैसे तो भगवान जगन्नाथ की पूरी की रथ यात्रा विश्व भर में प्रसिद्ध है, लेकिन यहां के लोग भी भगवान जगन्नाथ को मानते हैं और धूमधाम से उनकी यात्रा निकालते हैं. छत्तीसगढ़ में भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा के दिन से ही 11 दिवसीय गोंचा पर्व की भी शुरुआत हो जाती है. यहां गोंचा पर्व हर क्षेत्र के लोग अपने-अपने तरीके से मनाते हैं. बस्तर में गोंचा पर्व करीब 611 साल पहले से मनाया जा रहा है. गोंचा त्यौहार के दौरान कई रस्मों रिवाज भी होते हैं. इन्हीं रिवाजों में एक है मीत बांधना. मीत यानी दोस्त.

  • मीत बांधने के बाद एक दोस्त दूसरे दोस्त को धान की बाली, चंपाफूल, भौजली और कमल का फूल भेंट करते हैं. इसके बाद दोनों में दोस्ती की शुरुआत होती है.
  • मीत बांधने की रस्म से शुरू हुई दोस्ती कई पीढ़ियों तक निभाई जाती है.

25 साल से निभा रही हैं दोस्ती

इसी परंपरा से 25 साल पहले दोस्त बनी राधिका पांडेय और तमासी खंबारी बताती हैं, वे स्कूल लाइफ से एक दूसरे की दोस्त बनी थी, और आज तक उनकी दोस्ती कायम है. खंबारी कहती हैं, इन 25 साल में वे सभी सुख-दुख में एक का साथ निभाती आ रही हैं और आगे भी निभाती रहेंगी.

सालों से चली आ रही है परंपरा

तमासी खंबारी जैसी ही उनकी दोस्त राधिका पांडेय भी 25 साल से बखूबी अपनी दोस्ती निभा रही हैं और अपने दोस्त की हर सुख-दुख में साथ निभाने का वादा कर रही है. बस्तर में मीत बांधने की पंरपरा सदियों से चली आ रही है. हांलाकि आधुनिक युग में यह पंरपरा लगभग विलुप्त होने के कगार पर है, हालांकि राधिका और तमासी जैसी मीत ने इस परंपरा को आज भी जिंदा रखा है.

इस दोस्ती में अनफ्रेंड करने का ऑप्शन नहीं

जहां एक ओर आधुनिकता ने नई पीढ़ियों को भारत की परंपरा से दूर कर रहा है, वहीं राधिका और तमासी की दोस्ती ने ऐसी पंरपरा को 611 साल बाद भी जिंदा रखा है. सोशल साइट्स पर बने दोस्त कब किस बात से नाराज होकर आपकी दोस्ती ठुकरा दे पता नहीं, लेकिन मीत बांधने का मतलब हैं दो लोगों के बीच हुई दोस्ती जो पीढ़ी दर पीढ़ी निभाई जाएगी. और इनकी दोस्ती कभी अनफ्रैंड नहीं होगी.

जगदलपुर: आज हमारी फ्रेंडलिस्ट सोशल साइट पर बहुत लंबी भले हो लेकिन रियल लाइफ में स्कूल, कॉलेज और काम के दौरान बनाए दोस्त ही काम आते हैं. किस्से तो हमने भगवान कृष्ण और सुदामा के भी खूब सुने हैं. फेसबुक, इंस्टाग्राम की दोस्ती छोड़िए आज आप छत्तीसगढ़ की 611 साल पुरानी एक ऐसी परंपरा के बारे में जानिए, जिसमें एक खास दिन भगवान के सामने लोग दोस्त बनाते हैं और जिंदगी भर दोस्ती निभाते हैं. और इनकी दोस्ती में अनफ्रेंड करने का ऑप्शन भी नहीं होता.

स्पेशल स्टोरी

छत्तीसगढ़ का आदिवासी क्षेत्र बस्तर की पहचान उनकी संस्कृत और परंपराओं की वजह से भी है. वैसे तो भगवान जगन्नाथ की पूरी की रथ यात्रा विश्व भर में प्रसिद्ध है, लेकिन यहां के लोग भी भगवान जगन्नाथ को मानते हैं और धूमधाम से उनकी यात्रा निकालते हैं. छत्तीसगढ़ में भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा के दिन से ही 11 दिवसीय गोंचा पर्व की भी शुरुआत हो जाती है. यहां गोंचा पर्व हर क्षेत्र के लोग अपने-अपने तरीके से मनाते हैं. बस्तर में गोंचा पर्व करीब 611 साल पहले से मनाया जा रहा है. गोंचा त्यौहार के दौरान कई रस्मों रिवाज भी होते हैं. इन्हीं रिवाजों में एक है मीत बांधना. मीत यानी दोस्त.

  • मीत बांधने के बाद एक दोस्त दूसरे दोस्त को धान की बाली, चंपाफूल, भौजली और कमल का फूल भेंट करते हैं. इसके बाद दोनों में दोस्ती की शुरुआत होती है.
  • मीत बांधने की रस्म से शुरू हुई दोस्ती कई पीढ़ियों तक निभाई जाती है.

25 साल से निभा रही हैं दोस्ती

इसी परंपरा से 25 साल पहले दोस्त बनी राधिका पांडेय और तमासी खंबारी बताती हैं, वे स्कूल लाइफ से एक दूसरे की दोस्त बनी थी, और आज तक उनकी दोस्ती कायम है. खंबारी कहती हैं, इन 25 साल में वे सभी सुख-दुख में एक का साथ निभाती आ रही हैं और आगे भी निभाती रहेंगी.

सालों से चली आ रही है परंपरा

तमासी खंबारी जैसी ही उनकी दोस्त राधिका पांडेय भी 25 साल से बखूबी अपनी दोस्ती निभा रही हैं और अपने दोस्त की हर सुख-दुख में साथ निभाने का वादा कर रही है. बस्तर में मीत बांधने की पंरपरा सदियों से चली आ रही है. हांलाकि आधुनिक युग में यह पंरपरा लगभग विलुप्त होने के कगार पर है, हालांकि राधिका और तमासी जैसी मीत ने इस परंपरा को आज भी जिंदा रखा है.

इस दोस्ती में अनफ्रेंड करने का ऑप्शन नहीं

जहां एक ओर आधुनिकता ने नई पीढ़ियों को भारत की परंपरा से दूर कर रहा है, वहीं राधिका और तमासी की दोस्ती ने ऐसी पंरपरा को 611 साल बाद भी जिंदा रखा है. सोशल साइट्स पर बने दोस्त कब किस बात से नाराज होकर आपकी दोस्ती ठुकरा दे पता नहीं, लेकिन मीत बांधने का मतलब हैं दो लोगों के बीच हुई दोस्ती जो पीढ़ी दर पीढ़ी निभाई जाएगी. और इनकी दोस्ती कभी अनफ्रैंड नहीं होगी.

Intro:जगदलपुर। दोस्ती करने के लिए फेसबुक, इस्टाग्राम, मैसेंजर जैसे सोशल मीडिया मे दोस्त बनाने फ्रैंड रिक्वेस्ट भेजे जाने की शुरूआत भले ही कुछ समय  से है पर बस्तर मे इसका चलन 611 साल से जारी है। आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर मे गोंचा पर्व पर दोस्ती या मीत बनाने पहले रिक्वेस्ट या आमंत्रण भेजा जाता है और इसके लिए भगवान को साक्षी मानकर दो लोगो मे  धान की बाली , चंपाफूल , भौजली और कमल का फूल देकर रिक्वेस्ट के तौर पर अदान प्रदान होता है और उनकी दोस्ती कायम हो जाती है। बस्तर मे दोस्ती निभाने की यह अनुठी पंरपरा गोंचा पर्व के रस्मो के साथ ही शुरू होती है।





Body:बस्तर मे मीत बंधना या दोस्ती करने के लिए रिक्वेस्ट भेजने गोंचा पर्व जैसे शुभ मुहूर्त का इंतजार सालभर पहले से ही किया जाता है। इस पर्व के दौरान कई लोग मीत बंधते है, ऐसे ही 25 साल पहले  मीत बंधे राधिका पाण्डे और तामसी खंबारी ने बताया कि वे 25 साल  पूर्व अपने स्कूल लाईफ के दौरान भगवान को साक्षी मानकर मीत बंधे (दोस्ती की) और उस दौरान उन्होने एक दुसरे को धान की बाली दी। आज 25 साल बाद भी उनकी दोस्ती कायम है।  


Conclusion:खंबारी ने बताया कि  बस्तर मे मीत बंधने की पंरपरा सदियो से चली आ रही है, इसमे दो दोस्तो के साथ साथ उनके परिवार मे भी संबध जुडते है।  और पीढी दर पीढी यह दोस्ती निभाई जाती है, सू:ख दू:ख मे दोनो के परिवार एक दूसरे के साथ रहते है, हांलाकि आधुनिक युग मे यह पंरपरा विलुप्त होती जा रही है।
और सोशल मीडिया ने नई पीढियो को इस पंरपरा से कोसो दूर कर दिया है।
वहीं गोंचा महापर्व के अध्यक्ष बताते है कि बस्तर मे मीत बंधने की परंपरा 611 साल से चली आ रही है, भगवान जगन्नाथ को साक्षी मानते हुए कई लोग मीत बंधते है, और विभीन्न तरह के धान की बाली, भोजली , चंपाफू, मोंगरा फूर, गंगाजल, तुलसी के पत्ते जैसे चीजों को एक दूसरे को देकर मीत बंधते है। , औऱ यह दोस्ती पारिवारिक संबध मे बदल जाती है, और दोनो परिवार एक दूसरे के हर खुशी और गम के मौके पर शामिल होते है। अध्यक्ष का कहना है कि गोंचा पर्व के साथ ही तीज पर्व और अन्य पर्वो मे भी मीत बंधा जाता है, सोशल मीडिया के जरिये फैंड रिक्वेस्ट भेजकर कई दोस्त बनते तो है और बिछड भी जाते है लेकिन मीत बंधने का मतलब दो लोगो के बीच हुई दोस्ती पीढी दर पीढी निभाई जाती है। और दो दोस्तो के परिवारो के बीच भी संबध हो जाते है।

बाईट1-तमालकेसी खंबारी , मीत
बाईट2- राधिका पाण्डे, मीत
बाईट3- वेदप्रकाश पाण्डे, अध्यक्ष गोंचा पर्व समिति
Last Updated : Jul 25, 2023, 7:56 AM IST
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