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इस बस्तरिया डिश से दूर होती है कई बीमारियां, जानिए क्यों आदिवासियों को प्रिय है लाल चीटियों को चटनी

बस्तर के आदिवासी लाल रंग की चीटियों को पेड़ों से इकट्ठा करके इसकी चटनी बनाते हैं. जिसे स्थानीय बोलचाल में चापड़ा चटनी कहा जाता है. बस्तर के किसी पारंपरिक साप्ताहिक बाजार में आदिवासी महिलाएं पत्तों के दोने में लाल चीटियां बेचती आसानी से देखी जा सकती हैं. आदिवासी अपने खानपान में इस चटनी का इस्तेमाल सदियों से करते आ रहे हैं. कहा जाता है कि ये चटनी मेडिसिन का भी काम करती है.

चीटी की चटनी
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Published : Mar 26, 2019, 5:24 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 7:56 AM IST

जगदलपुर : आपने धनिया, पुदीना या टमाटर की चटनी के बारे में तो काफी सुना होगा. लेकिन लाल चीटियों की चटनी के बारे में सुनकर थोड़ा अटपटा लग सकता है. आपको जानकर बेहद हैरानी भी होगी की इस चटनी को बस्तर के आदिवासी बड़े चाव से खाते हैं.

बस्तर के आदिवासी लाल रंग की चीटियों को पेड़ों से इकट्ठा करके इसकी चटनी बनाते हैं. जिसे स्थानीय बोलचाल में चापड़ा चटनी कहा जाता है. बस्तर के किसी पारंपरिक साप्ताहिक बाजार में आदिवासी महिलाएं पत्तों के दोने में लाल चीटियां बेचती आसानी से देखी जा सकती हैं. आदिवासी अपने खानपान में इस चटनी का इस्तेमाल सदियों से करते आ रहे हैं. कहा जाता है कि ये चटनी मेडिसिन का भी काम करती है.

वीडियो

ऐसे बनाते हैं चटनी
ग्रामीणों का कहना है कि मार्च, अप्रैल और मई का महीना आते ही लाल चीटियां जंगलों में सरगी, साल, आम और कुसुम के पेड़ों के पत्तों में बड़े पैमाने पर छत्ता बनाती हैं. ग्रामीण इन पेड़ों पर चढ़कर इन चीटियों को जमा कर लेते हैं. उन्होंने बताया कि अगर इसकी चटनी बनानी हो तो इसे पीसकर उसमें स्वाद अनुसार नमक और मिर्च मिलाते हैं. जिससे स्वाद काफी चटपटा हो जाता है. फिर इसे बड़े चाव से खाते हैं. वर्तमान में अब लोग इसमें अदरक और लहसुन भी मिलाने लगे हैं. जिससे इसका स्वाद और दोगुना बढ़ जाता है.

इन बिमारियों में मिलता है आराम
आदिवासी समुदाय में ऐसी मान्यता है कि चापड़ा चटनी स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होती है. इन चीटियों में भारी मात्रा में प्रोटीन और कैल्शियम पाया जाता है. इसके सेवन से मलेरिया और पीलिया जैसी बीमारियों से आराम मिलता है. साथ ही प्रतिरक्षा प्रणाली भी मजबूत होती है. जो बीमारियों से बचाने में काफी मददगार साबित होती है.

खुद को चीटियों से कटवाते आदिवासी
माना जाता है कि जब भी किसी आदिवासी को साधारण बुखार होता है तो वह पेड़ के नीचे बैठकर लाल चीटियों से खुद को कटवाते हैं. कहा जाता है कि इस प्रक्रिया से बुखार का असर कम हो जाता है. चीटियों में फार्मिक एसिड होने के कारण इनमें मेडिसिन के गुण पाए जाते हैं.

पर्यटकों को आ रही पसंद
इस चटनी को बस्तरिया डिश के नाम से देश-विदेशों से आए पर्यटकों को भोजन के साथ परोसा जाता है. साथ ही अब जगदलपुर शहर के रेस्टोरेंट्स और होटलों में भी डिमांड पर ये चटनी पर्यटकों को खिलाया जाता है.


जगदलपुर : आपने धनिया, पुदीना या टमाटर की चटनी के बारे में तो काफी सुना होगा. लेकिन लाल चीटियों की चटनी के बारे में सुनकर थोड़ा अटपटा लग सकता है. आपको जानकर बेहद हैरानी भी होगी की इस चटनी को बस्तर के आदिवासी बड़े चाव से खाते हैं.

बस्तर के आदिवासी लाल रंग की चीटियों को पेड़ों से इकट्ठा करके इसकी चटनी बनाते हैं. जिसे स्थानीय बोलचाल में चापड़ा चटनी कहा जाता है. बस्तर के किसी पारंपरिक साप्ताहिक बाजार में आदिवासी महिलाएं पत्तों के दोने में लाल चीटियां बेचती आसानी से देखी जा सकती हैं. आदिवासी अपने खानपान में इस चटनी का इस्तेमाल सदियों से करते आ रहे हैं. कहा जाता है कि ये चटनी मेडिसिन का भी काम करती है.

वीडियो

ऐसे बनाते हैं चटनी
ग्रामीणों का कहना है कि मार्च, अप्रैल और मई का महीना आते ही लाल चीटियां जंगलों में सरगी, साल, आम और कुसुम के पेड़ों के पत्तों में बड़े पैमाने पर छत्ता बनाती हैं. ग्रामीण इन पेड़ों पर चढ़कर इन चीटियों को जमा कर लेते हैं. उन्होंने बताया कि अगर इसकी चटनी बनानी हो तो इसे पीसकर उसमें स्वाद अनुसार नमक और मिर्च मिलाते हैं. जिससे स्वाद काफी चटपटा हो जाता है. फिर इसे बड़े चाव से खाते हैं. वर्तमान में अब लोग इसमें अदरक और लहसुन भी मिलाने लगे हैं. जिससे इसका स्वाद और दोगुना बढ़ जाता है.

इन बिमारियों में मिलता है आराम
आदिवासी समुदाय में ऐसी मान्यता है कि चापड़ा चटनी स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होती है. इन चीटियों में भारी मात्रा में प्रोटीन और कैल्शियम पाया जाता है. इसके सेवन से मलेरिया और पीलिया जैसी बीमारियों से आराम मिलता है. साथ ही प्रतिरक्षा प्रणाली भी मजबूत होती है. जो बीमारियों से बचाने में काफी मददगार साबित होती है.

खुद को चीटियों से कटवाते आदिवासी
माना जाता है कि जब भी किसी आदिवासी को साधारण बुखार होता है तो वह पेड़ के नीचे बैठकर लाल चीटियों से खुद को कटवाते हैं. कहा जाता है कि इस प्रक्रिया से बुखार का असर कम हो जाता है. चीटियों में फार्मिक एसिड होने के कारण इनमें मेडिसिन के गुण पाए जाते हैं.

पर्यटकों को आ रही पसंद
इस चटनी को बस्तरिया डिश के नाम से देश-विदेशों से आए पर्यटकों को भोजन के साथ परोसा जाता है. साथ ही अब जगदलपुर शहर के रेस्टोरेंट्स और होटलों में भी डिमांड पर ये चटनी पर्यटकों को खिलाया जाता है.


Intro:जगदलपुर। आपने धनिया पुदीना या टमाटर की चटनी का स्वाद चखा होगा। लेकिन क्या लाल चीटियों की चटनी के बारे में सुना है यह आपको अटपटी लग सकती है। लेकिन यह सच है यह चटनी आपको और कहीं नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ के बस्तर में मिलेगी यहां लाल चीटियों की चटनी को आदिवासी बड़े चाव से खाते हैं ।बस्तर में रहने वाले आदिवासी लाल रंग की चीटियों को पेड़ों से इकट्ठा करके चटनी बनाते हैं ।इसे स्थानीय बोलचाल में चापड़ा चटनी कहते हैं आप बस्तर के किसी पारंपरिक हॉट साप्ताहिक बाजार में है तो पत्तों के दोने में लाल चीटियां बेचती आदिवासी महिला आसानी से आपको दिख जाएंगे ।आदिवासी अपने खानपान में इस चटनी का इस्तेमाल सदियों से करते आ रहे हैं यह चटनी मेडिसिन का भी काम करती है।


Body:वो1- अगर आप बस्तर जाते हैं तो आपको वहां के साप्ताहिक बजार में हरे पत्तों के दोने में लाल चीटियों की चटनी दिख जाएगी वहीं आदिवासी अपने खानपान में इस चटनी का इस्तेमाल सदियों से करते आ रहे हैं। साथ ही इसे बेचकर पैसे भी कमाते हैं।

बाईट1- सुलोचना , विक्रेता महिला

वो 2 ग्रामीणों का कहना है कि मार्च, अप्रैल और मई माह का महीना आते ही यह लाल चीटियां जंगलों में सरगी, साल और आम के पेड़ व कुसुम के पेड़ों के पत्तों में बड़े पैमाने पर छत्ता बनाते हैं। फिर ग्रामीण इन पेड़ों पर चढ़कर इन चीटियों को जमा कर लेते हैं अगर इसकी चटनी बनानी हो तो उसे सिल बट्टे पर पीसकर उसमें स्वाद के अनुसार नमक और मिर्च मिलाते हैं इससे स्वाद चटपटा हो जाता है ।और फिर बड़े चाव से खाते हैं वर्तमान में अब लोग इस चटनी में अदरक और लहसुन भी मिलाने लगे हैं जिससे इसकी स्वाद दोगुनी बढ़ जाती है।

बाईट2- मोहन कश्यप, ग्रामीण
बाईट3- विजय पचौरी, स्थानीय
बाईट4- लखन पूरी, स्थानीय

वो3- इतिहासकार बताते हैं कि आदिवासी समुदाय में ऐसी मान्यता है कि चापड़ा चटनी स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है वही चीटियों में भारी मात्रा में प्रोटीन के साथ ही कैल्शियम पाया जाता है ।इसके सेवन से मलेरिया और पीलिया जैसी बीमारियों से आराम मिलता है। साथ ही प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होती है जो बीमारियों से बचाने में काफी मददगार होती है ।इसके अलावा ऐसा माना जाता है कि जब भी किसी आदिवासी को साधारण बुखार होता है तो वह पेड़ के नीचे बैठकर लाल चीटियों से खुद को कटवाते हैं ।चीटियों के काटने से बुखार का असर कम हो जाता है। इन चीटियों में फार्मिक एसिड होने से मेडिसिन के गुण होते हैं।इसके अलावा इतिहासकारों का कहना है कि चापड़ा चटनी को बस्तरिया डिश के नाम से देश विदेशों से आए पर्यटकों को भोजन के साथ परोसा जाता है। साथ ही अब जगदलपुर शहर के रेस्टोरेंट्स और होटलों में भी चापड़ा चटनी पर्यटकों को उनके डिमांड पर खिलाया जाता है।

बाईट5- सुधीर जैन, विशेष जानकार


Conclusion:
Last Updated : Jul 25, 2023, 7:56 AM IST
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