बस्तर : छत्तीसगढ़ का बस्तर पिछले 4 दशक से नक्सलवाद का दंश झेल रहा है.नक्सली समय-समय पर एक निश्चित तारीख को बंद का आह्वान करते हैं.इस दौरान नक्सल घटनाओं में बढ़ोतरी भी देखी जाती है. दरअसल नक्सली अपने कार्यक्रमों को कैलेंडर के हिसाब से करते हैं.जिसमें तीन नक्सल संघटन अलग-अलग तारीखों में अपने कार्यक्रम करते हैं.इन्हीं तारीखों में से एक हफ्ता पीएलजीए के नाम होता है.छत्तीसगढ़ में 2 दिसंबर से 8 दिसंबर तक यानी 7 दिन नक्सली पीएलजीए सप्ताह मना रहे हैं.इस दौरान नक्सली बस्तर के अंदरूनी इलाकों में बैनर पोस्टर लगाकर अपनी आवाज बुलंद करते हैं.इस बार नक्सली पीएलजीए सप्ताह की 23वीं वर्षगांठ मना रहे हैं.जिसे लेकर सुरक्षा जवान अलर्ट पर है.
क्या होता है नक्सलियों का PLGA ? : PLGA को लेकर कई लोगों के मन में सवाल उठते हैं कि इसका और नक्सलियों का क्या नाता है.इस बारे में बस्तर के वरिष्ठ पत्रकार और नक्सल मामलों के जानकार मनीष गुप्ता ने जानकारी दी है. मनीष गुप्ता ने बताया कि नक्सल संगठन की स्थापना 1968-69 में नक्सलबाड़ी से हुई.इसके बाद नक्सल संगठन की अलग-अलग शाखाएं बनी. साल 2000 में नक्सल संगठनों का विस्तार हुआ. इस दौरान नक्सल संगठन ने अपनी मिलिट्री विंग्स को अलग किया. जिसका नाम PLGA यानी पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी रखा. इसके बाद पीपुल्स लिबरेशन आर्मी बनी जो अधिक समय तक नहीं चला. जिसके कारण PLGA को बरकरार रखा गया जो मिलिट्री विंग्स है.
क्यों मनाया जाता है PLGA सप्ताह ? : नक्सलियों का PLGA संगठन मिलिट्री दल है. बस्तर में होने वाली बड़ी घटनाओं को PLGA ही अंजाम देती है. PLGA का गठन 2 दिसंबर 2000 को हुआ था. इसलिए हर साल स्थापना दिवस के रूप में दिसंबर के पहले सप्ताह में स्थापना दिवस मनाते हैं. इस दौरान नक्सली हिंसक घटनाओं को अंजाम देते हैं.ताकि वे अपने सैन्य संगठन की वीरता का प्रदर्शन कर सकें. PLGA सप्ताह के दौरान नक्सल संगठन के PLGA कैडर अपने सुरक्षित और कोर इलाके में एक अपना प्रदर्शन करते हैं. इस दौरान मार्च पास्ट होता हैं. इस दौरान शहीद साथियों को याद करके श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं. इसके बाद उनकी वीरता का बखान करते हैं. संगठन का गुणगान करते हैं. साथ ही इस दौरान किसी बड़ी घटना को अंजाम देकर अपने कैडरों के प्रति समर्पण भाव दिखाते हैं.
पीएलजीए में 2 बटालियन : PLGA में पहले 2 बटालियन हुआ करती थी. लेकिन अब केवल 1 ही बटालियन बची है. बटालियन नंबर एक का कमांडर हिड़मा है. इसका प्रभाव पूरे दंडकारण्य इलाके में हैं. इस बटालियन का मुख्यालय बस्तर है. जो खासकर सुकमा के अंदरूनी इलाके में है. नक्सलियों ने PLGA संगठन को अलग-अलग ढंग से विस्तार दिया. वो विस्तार आगे चलकर सेंट्रल मिलिट्री कमीशन बना. फिर स्टेट मिलिट्री कमीशन बना.
पहले और अब में कितना आया अंतर ? : वरिष्ठ पत्रकार मनीष गुप्ता ने बताया कि PLGA के गठन के पहले भी नक्सली हिंसक वारदातों को अंजाम दिया करते थे. उससे पहले नक्सली संगठन में दलम की व्यवस्था हुआ करती थी. इस दौरान दलम के लोग ही घटनाओं को अंजाम देते थे. लेकिन आगे चलकर नक्सलियों ने नीचे से लेकर ऊपर तक कैडर का पुनर्गठन किया. जिसमें नक्सलियों ने मिलिट्री विंग बनाई.नक्सली संगठन का निचला तबका एरिया कमेटी कहलाता है. जहां LOS यानी लोकल ऑर्गनाइजेशन स्क्वॉड और LGS यानी लोकल गुरिल्ला स्क्वॉड बना.
नक्सली संगठन में किसका क्या काम ? : नक्सल संगठन में जो भी गतिविधियां होती है,चाहे वो विस्तार की बात हो या फिर संगठन में नए लोगों को जोड़ने का काम ये सभी चीजें LOS से नक्सलियों के पोलित ब्यूरो तक यह मामला जाता है.इसके बाद पोलित ब्यूरो ये तय करता है कि किसी बड़ी घटना को कैसे अंजाम देना है.प्लान बनाने के बाद नक्सलियों के LGS और मिलिट्री विंग्स दोनों मिलकर घटनाओं को अंजाम देते हैं.
PLGA ने बढ़ाई नक्सलियों की ताकत : मनीष गुप्ता के मुताबिक PLGA के गठन के बाद नक्सलियों की सैन्य ताकत काफी मजबूत हो गई. बदलते वक्त के साथ नक्सलियों ने नए-नए हथियारों का इस्तेमाल करना शुरु किया. पाइप बम के साथ आईईडी तकनीक से ब्लास्ट करना सीखा. क्लेमोर माईन, प्रेशर आईईडी जैसी घातक चीजें नक्सली संगठन में डेवलेप की गईं. वहीं रिमोट एक्सप्लोसिव डिवाइस की ताकत PLGA ने बढ़ाई. कुल मिलाकर PLGA के गठन के बाद नक्सलियों की सैन्य ताकत काफी मजबूत हुई छत्तीसगढ़ की यदि बात करें तो PLGA के गठन के बाद कई बड़ी घटनाएं नक्सलियों ने अंजाम दी है. जिनमें ताड़मेटला कांड, बुर्कापाल नक्सल अटैक, मीनपा कांड, टेकलगुड़ा घटना, झीरम नरसंहार, टाहकवाड़ा घटना जैसी कई घटनाएं शामिल हैं.