जगदलपुर: अपनी अनोखी और आकर्षक परंपराओं के लिए विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा की शुरुआत शनिवार रात से हो गई है. दशहरा पर्व शुरू करने की अनुमति लेने की यह परंपरा भी अपने आप में अनुठी है, काछनगादी नामक इस रस्म को एक नाबालिग कन्या कांटों के झूले पर लेटकर पर्व शुरू करने की अनुमति दी.
ऐसा मानना है कि करीब 600 साल से ये परंपरा चली आ रही हैं, जिसे काछनदेवी के रूप में अनुसूचित जाति के एक विशेष परिवार की कुंआरी कन्या अनुराधा ने बस्तर राजपरिवार को सदियों पुरानी परंपरा को निभाने की अनुमति दी.
महापर्व को निर्बाध सम्पन्न कराने की प्रार्थना
कार्यक्रम के दौरान ETV भारत ने बस्तर के राजकुमार कमलचंद भंजदेव से खास बातचीत की. उन्होंने बताया कि इस महापर्व को निर्बाध संपंन कराने के लिए काछनदेवी की अनुमति जरूरी है, जिसके लिए पनका जाति की कुंवारी कन्या को बेल के कांटों से बने झूले पर लेटाया जाता है और उसके अंदर खुद देवी आकर पर्व आरंभ करने की अनुमति देती है.
पितृमोक्ष अमावस्या को होती है शुरुआत
उन्होंने कहा कि हर साल पितृमोक्ष अमावस्या को इस प्रमुख विधान को निभा कर राज परिवार यह अनुमति प्राप्त करता है. बस्तर राजकुमार ने बताया कि अद्भुत रस्म बस्तर दशहरा के दौरान अदा की जाती है, जो अपने आप में अनूठी है. इसके अलावा राजकुमार ने ETV भारत के माध्यम से प्रशासन को भी इस पर्व में किसी तरह की कोई बाधा उत्पन्न हो और संसाधनों की कमी न हो इसके लिए भी गुजारिश की है.
देश-दुनिया के पर्यटकों को आंमंत्रण
वहीं बस्तर राजकुमार ने इस विश्व प्रसिद्ध दशहरा के लिए देश दुनिया के पर्यटकों को बस्तर आमंत्रित किया है. इधर इस रस्म के दौरान बस्तर के राजपरिवार और स्थानीय जनप्रतिनिधियों के साथ हजारों की संख्या में लोग इस अनुठी परंपरा को देखने काछनगुडी पहुंचे. काछनगादी रस्म अदायगी के साथ ही कल यानी रविवार को नवरात्रि के पहले दिन जोगी बिठाई की रस्म अदायगी की जाएगी.