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बस्तर दशहरा: सुख, शांति और कोरोना से निजात दिलाने माता से प्रार्थना, देर रात जोगी उठाई की रस्म पूरी

25 अक्टूबर की रात बस्तर दशहरा की रस्म जोगी उठाई पूरी की गई. पिछले 12 सालों से बड़े आमाबाल गांव के भगतराम जोगी बिठाई की रस्म अदा करते आ रहे हैं. 9 दिनों तक एक गड्ढे में बैठकर निर्जल उपवास रखकर माता की आराधना करते हुए बस्तर में कोरोना महामारी से मुक्ति और शांतिपूर्ण ढंग से दशहरा संपन्न होने के लिए भगतराम ने प्रार्थना की.

bastar dussehra celebration
बस्तर दशहरा की जोगी उठाई की रस्म
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Published : Oct 26, 2020, 12:18 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST

जगदलपुर: ऐतिहासिक बस्तर दशहरा में शारदीय नवरात्र के नवमी की रात जोगी उठाई रस्म अदा की गई. दशहरा पर्व के निर्विघ्न आयोजन के लिए सिरहासार भवन के अंदर एक गड्ढे में साधना में बैठे योग पुरूष को ससम्मान उठाकर जोगी उठाई की रस्म पूरी की गई.

bastar dussehra jogi uthayi rasm
बस्तर दशहरा की जोगी उठाई की रस्म

दरअसल नवरात्रि के पहले दिन जोगी बिठाई की रस्म पूरी की जाती है. जिसके तहत पनका जाति का एक युवक एक गड्ढे में बैठकर निर्जल उपवास रख माता की आराधना करता है और दशहरा पर्व शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न होने की कामना करता है. नवरात्रि के नौवें दिन गाजे-बाजे के साथ जोगी उठाई की रस्म संपन्न की गई.

पढ़ें-SPECIAL: बस्तर दशहरा में अद्भुत है फूल रथ परिक्रमा, 600 साल पुरानी परंपरा आज भी है जीवित

पिछले 12 सालों से बड़े आमाबाल गांव के भगतराम जोगी बिठाई की रस्म अदा करते आ रहे हैं. 9 दिनों तक एक गड्ढे में बैठकर निर्जल उपवास रखकर माता की आराधना करते हुए बस्तर में कोरोना महामारी से मुक्ति और शांतिपूर्ण ढंग से दशहरा संपन्न होने के लिए भगतराम ने प्रार्थना की. रविवार रात को पूरे विधि विधान के साथ जोगी उठाई की रस्म अदा की गई. जिसके बाद देर रात मावली परघाव की रस्म अदा की गई. 26 अक्टूबर को बस्तर दशहरा की एक और महत्वपूर्ण भीतर रैनी रस्म अदा की जाएगी.

मावली परघाव रस्म

विश्व प्रसिध्द बस्तर दशहरा का खास एक रस्म मावली परघाव है. इस रस्म को दो देवियों के मिलन की रस्म कही जाती है. इस रस्म को जगदलपुर दंतेश्वरी मंदिर के प्रांगन में अदा की जाती है. इस रस्म में शक्तिपीठ दंतेवाड़ा से मावली देवी की छत्र डोली को जगदलपुर के दंतेश्वरी मंदिर लाया जाता है, जिसका स्वागत बस्तर के राजकुमार और बस्तरवासियों की तरफ से किया जाता है. नवमी मे मनाए जाने वाले इस रस्म को देखने के लिए बड़ी संख्या में लोगो का जन सैलाब उमड़ पड़ता है. बस्तर के महाराजा रूद्र प्रताप सिंह माई के डोली का भव्य स्वागत करते थे, वो परम्परा आज भी बखूभी निभाई जाती है.

भीतर रैनी बाहर रैनी रस्म

भीतर रैनी रस्म में रथ परिक्रमा पूरी होने पर आधी रात को इसे चुराकर माड़िया जाति के लोग शहर से लगे कुम्हड़ाकोट ले जाते हैं. कहा जाता है कि राजशाही युग में राजा से असंतुष्ट लोगों ने रथ को चुराकर एक जगह छिपा दिया था, जिसके बाद राजा उसके अगले दिन बाहर रैनी रस्म के दौरान कुम्हड़ाकोट पहुंचकर ग्रामीणों को मनाकर उनके साथ भोजन किया था. इसके बाद रथ को वापस जगदलपुर लाया गया था. बस्तर के राजा पुरषोत्तम देव ने जगन्नाथपुरी से रथपति की उपाधि ग्रहण करने के बाद बस्तर में दशहरे के अवसर पर रथ परिक्रमा की प्रथा शुरू की गई, जो कि अब तक चली आ रही है. इसी के साथ बस्तर में विजयादशमी के दिन रथ परिक्रमा समाप्त हो जाती है.

जगदलपुर: ऐतिहासिक बस्तर दशहरा में शारदीय नवरात्र के नवमी की रात जोगी उठाई रस्म अदा की गई. दशहरा पर्व के निर्विघ्न आयोजन के लिए सिरहासार भवन के अंदर एक गड्ढे में साधना में बैठे योग पुरूष को ससम्मान उठाकर जोगी उठाई की रस्म पूरी की गई.

bastar dussehra jogi uthayi rasm
बस्तर दशहरा की जोगी उठाई की रस्म

दरअसल नवरात्रि के पहले दिन जोगी बिठाई की रस्म पूरी की जाती है. जिसके तहत पनका जाति का एक युवक एक गड्ढे में बैठकर निर्जल उपवास रख माता की आराधना करता है और दशहरा पर्व शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न होने की कामना करता है. नवरात्रि के नौवें दिन गाजे-बाजे के साथ जोगी उठाई की रस्म संपन्न की गई.

पढ़ें-SPECIAL: बस्तर दशहरा में अद्भुत है फूल रथ परिक्रमा, 600 साल पुरानी परंपरा आज भी है जीवित

पिछले 12 सालों से बड़े आमाबाल गांव के भगतराम जोगी बिठाई की रस्म अदा करते आ रहे हैं. 9 दिनों तक एक गड्ढे में बैठकर निर्जल उपवास रखकर माता की आराधना करते हुए बस्तर में कोरोना महामारी से मुक्ति और शांतिपूर्ण ढंग से दशहरा संपन्न होने के लिए भगतराम ने प्रार्थना की. रविवार रात को पूरे विधि विधान के साथ जोगी उठाई की रस्म अदा की गई. जिसके बाद देर रात मावली परघाव की रस्म अदा की गई. 26 अक्टूबर को बस्तर दशहरा की एक और महत्वपूर्ण भीतर रैनी रस्म अदा की जाएगी.

मावली परघाव रस्म

विश्व प्रसिध्द बस्तर दशहरा का खास एक रस्म मावली परघाव है. इस रस्म को दो देवियों के मिलन की रस्म कही जाती है. इस रस्म को जगदलपुर दंतेश्वरी मंदिर के प्रांगन में अदा की जाती है. इस रस्म में शक्तिपीठ दंतेवाड़ा से मावली देवी की छत्र डोली को जगदलपुर के दंतेश्वरी मंदिर लाया जाता है, जिसका स्वागत बस्तर के राजकुमार और बस्तरवासियों की तरफ से किया जाता है. नवमी मे मनाए जाने वाले इस रस्म को देखने के लिए बड़ी संख्या में लोगो का जन सैलाब उमड़ पड़ता है. बस्तर के महाराजा रूद्र प्रताप सिंह माई के डोली का भव्य स्वागत करते थे, वो परम्परा आज भी बखूभी निभाई जाती है.

भीतर रैनी बाहर रैनी रस्म

भीतर रैनी रस्म में रथ परिक्रमा पूरी होने पर आधी रात को इसे चुराकर माड़िया जाति के लोग शहर से लगे कुम्हड़ाकोट ले जाते हैं. कहा जाता है कि राजशाही युग में राजा से असंतुष्ट लोगों ने रथ को चुराकर एक जगह छिपा दिया था, जिसके बाद राजा उसके अगले दिन बाहर रैनी रस्म के दौरान कुम्हड़ाकोट पहुंचकर ग्रामीणों को मनाकर उनके साथ भोजन किया था. इसके बाद रथ को वापस जगदलपुर लाया गया था. बस्तर के राजा पुरषोत्तम देव ने जगन्नाथपुरी से रथपति की उपाधि ग्रहण करने के बाद बस्तर में दशहरे के अवसर पर रथ परिक्रमा की प्रथा शुरू की गई, जो कि अब तक चली आ रही है. इसी के साथ बस्तर में विजयादशमी के दिन रथ परिक्रमा समाप्त हो जाती है.

Last Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST
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