जगदलपुर : जगदलपुर शहर के सिरहासार भवन में मुरिया दरबार लगाई गई. जिसमें बस्तर राजपरिवार के सदस्य कमलचंद्र भंजदेव और प्रशासनिक अधिकारी मौजूद रहे.आचार संहिता होने की वजह से जनप्रतिनिधि इस कार्यक्रम में नहीं पहुंच सके.लिहाजा किसी भी तरह की कोई बड़ी घोषणा नहीं हो सकी.
आचार संहिता के कारण नहीं हुईं बड़ी घोषणा : इस दौरान बस्तर राजपरिवार के सदस्य कमलचंद्र भंजदेव ने बताया कि इस बार आचार संहिता लगा है. यदि आचार संहिता नहीं होती तो इस सभा में शासन प्रशासन के सामने बस्तर संभाग की समस्याएं रखी जाती. इसके अलावा कई चीजें ऐसी है जिसे दशहरे पर्व के दौरान ध्यान देकर उसके लिए गाइडलाइंस जारी करना होता है. जैसे इस साल रथ में काफी लोग चढ़े हुए थे. यदि रथ कहीं टकराता तो हादसे का शिकार लोग हो जाते. मुरिया दरबार में सभी समस्याओं और चीजों पर फैसले लिए जाते हैं. यह काफी बड़ा मंच है.
'' 12 साल की उम्र से लगातार बस्तर दशहरे को देखते आ रहे हैं. और उनके इतिहास में पहली बार साल 2023 के दशहरे पर्व में ऐतिहासिक भीड़ थी.पहले रथ को वापस लाने जाने के दौरान कम संख्या में लोग रहते थे. इस साल सबसे अधिक भीड़ मौजूद थी. यही बस्तर दशहरे की चाहत है जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है. इसके लिए बस्तर दशहरे के प्रमुख लोग स्थानीय आदिवासी धन्यवाद के पात्र हैं.'' कमलचंद्र भंजदेव, सदस्य राजपरिवार
साधारण कपड़ों में आते थे राजा : बस्तर मुड़िया के मंच में 12 विधानसभा और 7 जिलों के लोगों के साथ ही पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र, तेलंगाना और ओडिसा के लोग भी मौजूद रहते हैं. उनकी समस्या और देवी देवताओं को देखने का संगम भारत देश में और कहीं नहीं मिलेगा. मुरिया दरबार में राजा साधारण कपड़े में आते थे. ताकि बिना हिचकिचाहट से ग्रामीण अपनी समस्या को उनके समक्ष रखें. यही मुख्य उद्देश्य था.
'' मुरिया दरबार का कार्यक्रम संपन्न किया गया है. इस दरबार में दशहरा पर्व से जुड़ी बहुत सी बातें निकलकर सामने आई है. जिसको नोट किया गया है.आगामी सालों में इस चीजों पर विशेष फोकस करके इनको सुधारा जाएगा.'' विजय दयाराम, बस्तर कलेक्टर
दंतेश्वरी देवी के सम्मान में मनाया जाता है पर्व :आपको बता दें कि बस्तर दशहरा 600 वर्षों से सामान्य और वनवासी समाज मनाता आ रहा है. यह पर्व बस्तर की आराध्य दंतेश्वरी देवी के सम्मान में मनाया जाता है. इसमें हजारों की संख्या में आदिवासी शामिल होते हैं. बस्तर दशहरा के रस्मों में से एक मुरिया दरबार कार्यक्रम में बस्तर संभाग से आए गांव के माझी और मुखिया अपनी समस्याओं को शासन प्रशासन के बीच रखते हैं.दरबार में ही समस्याओं के निदान के लिए पहल की जाती है. रियासतकाल में ग्रामीण राजा के सामने अपनी समस्याएं रखते थे. जो ग्रामीणों की समस्या का निराकरण करते थे.