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EXCLUSIVE: नहीं बदली झीरम की तस्वीर, पोखर का पानी पी रहे ग्रामीण

जगदलपुर मुख्यालय से 50 किलोमीटर की दूरी पर झीरम गांव स्थित है. 25 मई 2013 को हुए झीरम घाटी के हमले के बाद यहां शासन-प्रशासन ने विकास के तमाम दावे किए, लेकिन गांव की जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है.

झीरम से EXCLUSIVE रिपोर्ट
झीरम से EXCLUSIVE रिपोर्ट
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Published : Apr 27, 2020, 5:17 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST

जगदलपुर: 25 मई 2013 को 7 साल पहले झीरम घाटी में कांग्रेस के कद्दावर नेताओं समेत 31 लोगों की नक्सलियों ने निर्ममता से हत्या कर दी थी. जनप्रतिनिधियों पर हुए देश के सबसे बड़े नक्सली हमले की वजह से झीरम गांव सुर्खियों में तो आ गया, लेकिन यहां के लोगों को आज तक बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल पाईं. पिछली सरकार ने यहां विकास के बड़े-बड़े वादे किए थे, लेकिन हकीकत यह है कि झीरम घाटी को पार कर विकास गांव तक पहुंचा ही नहीं. प्रदेश में सरकार बदली तो ग्रामीणों को उम्मीद जगी कि अब उनके गांव की तस्वीर बदलेगी, पर समस्या जस की तस बनी हुई है.

झीरम गांव से EXCLUSIVE रिपोर्ट

आज भी झीरम गांव और उसके आसपास के गांव के लोग पोखर और सुआ का पानी पीने को मजबूर हैं, पेड़ की जड़ से रिसने वाले पानी को ग्रामीण पी रहे हैं. गांव में 30 से 40 परिवार हैं, जो पोखर के पानी पर आश्रित हैं.

EXCLUSIVE REPROT OF ETV BHARAT FROM JHIRAM OF BASTAR
झीरम गांव

हैंडपंप को खराब हुए महीनों बीत गए

ग्रामीण बुधराम नाग बताते हैं कि यहां विकास के नाम पर एक हैंडपंप लगाया गया, लेकिन वह भी कुछ दिनों तक चला और खराब हो गया. हैंडपंप से भी लाल पानी निकलता था. हैंडपंप को खराब हुए महीनों बीत गए हैं, लेकिन अब तक उसे ठीक करने कोई नहीं पहुंचा. ग्रामीण ने बताया कि पिछले कई सालों से गांव के लोग इसी पोखर का पानी पीने को मजबूर हैं. सोलर प्लेट के माध्यम से सभी घरों तक लाइट तो पहुंचाई गई, लेकिन वह भी किसी काम की नहीं.

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इसी पोखर का पानी पीते हैं ग्रामीण

पढे़ं-कोरोना फैलने का खतरा ! बिना मेडिकल जांच के छत्तीसगढ़ में आ रहे प्रवासी मजदूर

2 महीने का चावल दिया गया

ना ही ग्रामीणों को प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ मिल पाया है और ना ही इस संकट की घड़ी में ग्रामीणों तक कोई मदद पहुंचाई गई है. ग्रामीण ने बताया कि 'सरकार की ओर से उन्हें 2 महीने का चावल तो मुफ्त मिला, लेकिन जरूरी साग सब्जी और सामानों के लिए उन्हें आज भी जूझना पड़ रहा है'.

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ग्रामीण

लॉकडाउन ने बढ़ाई परेशानियां

लॉकडाउन के बाद से एक भी जनप्रतिनिधि या सरकारी अधिकारी ग्रामीणों की सुध लेने नहीं पहुंचा, हालांकि पंचायत की ओर से उन्हें मास्क तो दिया गया है और जंगलों में नहीं घूमने की सख्त हिदायत दी गई है, जिसके चलते उनकी रोजी-रोटी पर बन आई है. लॉकडाउन के बाद से ग्रामीणों के स्वास्थ्य परीक्षण के लिए भी विभाग का अमला नहीं पहुंचा है. स्वास्थ्य खराब होने पर झीरम गांव से 10 किलोमीटर दूर तोंगपाल स्वास्थ्य केंद्र में इलाज कराने जाना पड़ता है.

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पोखर का पानी

पढ़ें-कोरोना संकट के बीच 'हरा सोना' बनेगा ग्रामीणों के लिए वरदान

विधायक का नाम भी नहीं जानते ग्रामीण

कोरोना संकट के दौर में लोग अपना पेट पालने के लिए घर के आसपास उगने वाली भाजी पर निर्भर हैं. इसे यह मुख्य मार्ग पर बेचने के लिए लाते हैं और दिनभर में मात्र 30 से 40 रुपए ही कमाई हो पाती है. गांव वालों को न ही कोरोना बीमारी के बारे में पता है और न ही अपने विधायक का नाम पता है.

सचिव ने संबंधित विभाग को दी जानकारी

सचिव ने कहा कि गांव में पीएचई विभाग ने 2 हैंडपंप लगाए, लेकिन काफी महीनों से वह हैंडपंप खराब ही पड़े हैं. हैंडपंप खराब हुए महीनों बीत गए हैं और इसकी जानकारी भी संबंधित विभाग को ग्राम के सचिव ने लिखित में दे दी है, लेकिन अब तक हैंडपंप नहीं बन पाया. लिहाजा झीरम और उसके आसपास के ग्रामीण यहां तक कि सचिव भी उसी पोखर का पानी पीने को मजबूर हैं.

प्रदेश में सरकार बदली, नेता बदल गए, लेकिन नहीं बदली है तो झीरम घाटी गांव की तकदीर. जगदलपुर मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूरी पर स्थित है बस्तर का ऐसा गांव जिसका नाम सुनते ही लोग कांप जाते हैं. 25 मई 2013 को नक्सलियों के हमले में कांग्रेस के बड़े नेता सहित कुल 31 लोगों की हत्या कर दी गई थी. तब से यह नाम सुर्खियों में रहा और आज भी है. हमले के बाद पिछली बीजेपी सरकार ने यहां विकास के बड़े-बड़े वादे किए थे, लेकिन वादे बस वादे ही बनकर रह गए.

जगदलपुर: 25 मई 2013 को 7 साल पहले झीरम घाटी में कांग्रेस के कद्दावर नेताओं समेत 31 लोगों की नक्सलियों ने निर्ममता से हत्या कर दी थी. जनप्रतिनिधियों पर हुए देश के सबसे बड़े नक्सली हमले की वजह से झीरम गांव सुर्खियों में तो आ गया, लेकिन यहां के लोगों को आज तक बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल पाईं. पिछली सरकार ने यहां विकास के बड़े-बड़े वादे किए थे, लेकिन हकीकत यह है कि झीरम घाटी को पार कर विकास गांव तक पहुंचा ही नहीं. प्रदेश में सरकार बदली तो ग्रामीणों को उम्मीद जगी कि अब उनके गांव की तस्वीर बदलेगी, पर समस्या जस की तस बनी हुई है.

झीरम गांव से EXCLUSIVE रिपोर्ट

आज भी झीरम गांव और उसके आसपास के गांव के लोग पोखर और सुआ का पानी पीने को मजबूर हैं, पेड़ की जड़ से रिसने वाले पानी को ग्रामीण पी रहे हैं. गांव में 30 से 40 परिवार हैं, जो पोखर के पानी पर आश्रित हैं.

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झीरम गांव

हैंडपंप को खराब हुए महीनों बीत गए

ग्रामीण बुधराम नाग बताते हैं कि यहां विकास के नाम पर एक हैंडपंप लगाया गया, लेकिन वह भी कुछ दिनों तक चला और खराब हो गया. हैंडपंप से भी लाल पानी निकलता था. हैंडपंप को खराब हुए महीनों बीत गए हैं, लेकिन अब तक उसे ठीक करने कोई नहीं पहुंचा. ग्रामीण ने बताया कि पिछले कई सालों से गांव के लोग इसी पोखर का पानी पीने को मजबूर हैं. सोलर प्लेट के माध्यम से सभी घरों तक लाइट तो पहुंचाई गई, लेकिन वह भी किसी काम की नहीं.

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इसी पोखर का पानी पीते हैं ग्रामीण

पढे़ं-कोरोना फैलने का खतरा ! बिना मेडिकल जांच के छत्तीसगढ़ में आ रहे प्रवासी मजदूर

2 महीने का चावल दिया गया

ना ही ग्रामीणों को प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ मिल पाया है और ना ही इस संकट की घड़ी में ग्रामीणों तक कोई मदद पहुंचाई गई है. ग्रामीण ने बताया कि 'सरकार की ओर से उन्हें 2 महीने का चावल तो मुफ्त मिला, लेकिन जरूरी साग सब्जी और सामानों के लिए उन्हें आज भी जूझना पड़ रहा है'.

EXCLUSIVE REPROT OF ETV BHARAT FROM JHIRAM OF BASTAR
ग्रामीण

लॉकडाउन ने बढ़ाई परेशानियां

लॉकडाउन के बाद से एक भी जनप्रतिनिधि या सरकारी अधिकारी ग्रामीणों की सुध लेने नहीं पहुंचा, हालांकि पंचायत की ओर से उन्हें मास्क तो दिया गया है और जंगलों में नहीं घूमने की सख्त हिदायत दी गई है, जिसके चलते उनकी रोजी-रोटी पर बन आई है. लॉकडाउन के बाद से ग्रामीणों के स्वास्थ्य परीक्षण के लिए भी विभाग का अमला नहीं पहुंचा है. स्वास्थ्य खराब होने पर झीरम गांव से 10 किलोमीटर दूर तोंगपाल स्वास्थ्य केंद्र में इलाज कराने जाना पड़ता है.

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पोखर का पानी

पढ़ें-कोरोना संकट के बीच 'हरा सोना' बनेगा ग्रामीणों के लिए वरदान

विधायक का नाम भी नहीं जानते ग्रामीण

कोरोना संकट के दौर में लोग अपना पेट पालने के लिए घर के आसपास उगने वाली भाजी पर निर्भर हैं. इसे यह मुख्य मार्ग पर बेचने के लिए लाते हैं और दिनभर में मात्र 30 से 40 रुपए ही कमाई हो पाती है. गांव वालों को न ही कोरोना बीमारी के बारे में पता है और न ही अपने विधायक का नाम पता है.

सचिव ने संबंधित विभाग को दी जानकारी

सचिव ने कहा कि गांव में पीएचई विभाग ने 2 हैंडपंप लगाए, लेकिन काफी महीनों से वह हैंडपंप खराब ही पड़े हैं. हैंडपंप खराब हुए महीनों बीत गए हैं और इसकी जानकारी भी संबंधित विभाग को ग्राम के सचिव ने लिखित में दे दी है, लेकिन अब तक हैंडपंप नहीं बन पाया. लिहाजा झीरम और उसके आसपास के ग्रामीण यहां तक कि सचिव भी उसी पोखर का पानी पीने को मजबूर हैं.

प्रदेश में सरकार बदली, नेता बदल गए, लेकिन नहीं बदली है तो झीरम घाटी गांव की तकदीर. जगदलपुर मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूरी पर स्थित है बस्तर का ऐसा गांव जिसका नाम सुनते ही लोग कांप जाते हैं. 25 मई 2013 को नक्सलियों के हमले में कांग्रेस के बड़े नेता सहित कुल 31 लोगों की हत्या कर दी गई थी. तब से यह नाम सुर्खियों में रहा और आज भी है. हमले के बाद पिछली बीजेपी सरकार ने यहां विकास के बड़े-बड़े वादे किए थे, लेकिन वादे बस वादे ही बनकर रह गए.

Last Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST
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