जगदलपुर: छत्तीसगढ़ में 'नक्सलगढ़' तौर पर पहचाने जाने वाले बस्तर की धरती पर अब बारूद की गंध नहीं, बल्कि कॉफी की खुशबू महकेगी. सालों की कड़ी मेहनत का फल है कि अब बस्तर में कॉफी की खेती जल्द ही बड़े पैमाने पर शुरू करने की तैयारी है. जगदलपुर मुख्यालय से करीब 50 किलोमीटर की दूरी पर है दरभा घाटी. जब-जब दरभा घाटी का जिक्र किया जाता है, तब-तब 25 मई 2013 को हुई नक्सली घटना को याद कर रूह कांप जाती है. लेकिन अब वही दरभा एक कप ताजगी के लिए जाना जाएगा. शहर के इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के हॉर्टिकल्चर कॉलेज के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी खेती का प्रयोग किया है, जिससे बस्तर में अब कॉफी की महक फैलेगी. अब छत्तीसगढ़ में 'बस्तर कॉफी' मिलेगी.
20 एकड़ जमीन में की जा रही है कॉफी की खेती
वैज्ञानिकों को लंबे समय से यह चिंता सता रही थी कि लगातार वनों और जंगलों का रकबा कम हो रहा है. घटते जंगलों को देखते हुए खाली जगहों पर वैज्ञानिकों ने कॉफी की खेती करने का मन बनाया. कॉफी की खेती के लिए पहले जमीन तलाशी गई फिर वर्षों से बंजर पड़ी जमीन को खेती के लिहाज से तैयार किया गया. दरभा इलाके के करीब 25 खेतिहर मजदूरों के जरिए लगभग 20 एकड़ की जमीन पर खेत को तैयार किया गया. इसके बाद कॉफी की खेती की शुरुआत की गई.
2017 में शुरू किया गया था कॉफी की खेती का प्रोजेक्ट
साल 2017 में हॉर्टिकल्चर के प्रोफेसर और अनुसंधानकर्ता डॉक्टर केपी सिंह ने कॉफी की खेती के प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया. एक छोटी सी उम्मीद के सहारे शुरू किया गया मिशन आज सफलता की सीढ़ी चढ़ रहा है. 3 सालों के अथक प्रयास से दरभा में कॉफी की खेती करीब 20 एकड़ में की गई. 3 साल में जो परिणाम आए उसे देखकर यह यकीन हो गया कि बस्तर की मिट्टी और आबोहवा ऐसी है कि वहां कॉफी की खेती की जा सकती है.
कॉफी के फलों से लदे पौधे
20 एकड़ जमीन में 3 किस्म की कॉफी के बीज डाले गए थे. धीरे-धीरे समय बढ़ता गया, पहले बीज ने पौधों का रूप लिया फिर पौधों में फूल आए. कॉफी के फूलों की महक ने उम्मीदों को बल दिया और कुछ समय बाद ये पौधे कॉफी के फलों से लद गए. कॉफी की खेती के पहले प्रयोग को करने के लिए जितनी मेहनत हार्टिकल्चर के वैज्ञानिकों ने की, उतनी ही मेहनत दरभा इलाके के किसानों और मजदूरों ने की. कॉफी की सफल खेती से अब न सिर्फ बस्तर की फिजा महकेगी, बल्कि किसानों को कॉफी की खेती से अच्छी आमदनी भी मिलेगी. इसके लिए किसानों को ट्रेनिंग भी दी जा रही है.
कॉफी की खेती के लायक है बस्तर की मिट्टी
कॉफी की प्लांटेशन करने के साथ ही कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने पौधों की देखभाल करने के साथ ही लगातार इस पर अनुसंधान किया. इसके साथ ही कॉफी की खेती में सबसे अहम होता है वहां की जलवायु और स्थान का चयन. बस्तर में कॉफी की खेती के लिहाज से यहां मौसम काफी अच्छा है. इसके अलावा जिस जगह पर कॉफी की खेती की गई, वह जगह समुद्र तल से एक निश्चित ऊंचाई पर है. यही वजह है कि बस्तर में कॉफी की खेती का प्रयोग पहली बार में ही सफल हो गया.
'बस्तर कॉफी' बने अरेबिका और रोबस्टा
कॉफी का पहला प्रयोग सफल होने के बाद खेती से उपजे करीब 16 किलो कॉफी के बीजों को प्रसंस्करण करने के लिए ओडिशा कोरापुट के कृषि विज्ञान केंद्र की मदद ली गई. कॉफी की दो किस्में जो पूरी दुनिया में प्रचलित है, उनमें अरेबिका और रोबस्टा (Arabica and Robusta Coffee) इन दोनों किस्म की खेती पूरी तरह से सफल रही. दोनों वैरायटी को तैयार कर कॉफी की ब्रांडिंग 'बस्तर कॉफी' के नाम से की गई. जिसके बाद मार्केट में पहुंची बस्तर कॉफी हाथों-हाथ बिक गई.
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40 किसान 130 एकड़ जमीन में करेंगे कॉफी की खेती
बस्तर की फिजा में महकने वाली कॉफी को लेकर अब कई तरह की संभावनाएं बन गई हैं, जिन पर काम भी शुरू किया जा रहा है. यही कारण है कि दरभा में कॉफी की खेती सफल होने के बाद अब बस्तर जिले के डिलमिली इलाके में लगभग 40 किसानों ने आगे आकर खेती की इच्छा जताई है. किसानों ने अपनी 130 एकड़ जमीन पर कॉफी की खेती के लिए हॉर्टिकल्चर के वैज्ञानिकों और रिसर्चर्स से संपर्क किया है. वहीं जल्द ही इस इलाके में भी कॉफी की खेती शुरू की जाएगी.