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National Cashew Day 2023 नक्सलगढ़ के काजू का अद्भुत स्वाद, राष्ट्रीय काजू दिवस पर जानिए बस्तर का औषधियुक्त काजू क्यों है खास - National Cashew Day on 23rd November

National Cashew Day 2023 छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के प्राकर्तिक सौंदर्य व शुध्द वातावरण से भरे घने जंगलों में कई तरह के जंगली उत्पाद और औषधियां मिलती हैं. लेकिन अब यहां जंगली उपज के साथ ड्राई फ्रूट्स भी मिलने लगे हैं. वो भी पूरी तरह ऑर्गेनिक... Cashew Production Of Bastar

cashew production of bastar
बस्तर में काजू उत्पादन
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Nov 23, 2023, 6:05 AM IST

Updated : Nov 23, 2023, 2:36 PM IST

बस्तर में काजू उत्पादन

बस्तर: काजू की पैदावार अब तक तटीय और समंदर किनारे के क्षेत्रों में ही होती आई है. लेकिन अब छत्तीसगढ़ के बस्तर में भी काजू की अच्छी खासी खेती होने लगी है. काजू उत्पादन के लिए बस्तर का वातावरण काफी अनुकूल है. जिसे देखते हुए लगभग 20 से 25 साल पहले वन विभाग और उद्यानिकी विभाग ने मिलकर बस्तर में काजू के पौधे लगाए. अच्छे और अनुकूल वातावरण से काजू के पौधे बढ़कर पेड़ बन गए. अब उन पेड़ों से अच्छी मात्रा में काजू मिलने लगा है. अच्छी मात्रा में काजू के उत्पादन से नक्सलगढ़ की महिलाओं को भी आय का नया जरिया मिला है.

बस्तर में काजू की अच्छी पैदावार को देखते हुए जगदलपुर के तुरेनार में बनाए गए औद्योगिक पार्क रीपा में काजू प्रसंस्करण यूनिट बनाया गया है. इस यूनिट में महिलाओं को रोजगार दिया गया है. यशोदा महिला स्वसहायता समूह की महिलाएं इस केंद्र में काजू की पैकिंग कर बेचती है.

बस्तर की महिलाओं के लिए आय का जरिया बना काजू: समूह की महिलाएं बताती हैं कि पहले आसपास के इलाकों से काजू के बीज खरीदती है. इसके बाद काजू के बीज को उबाला जाता है. उसे मशीन में डालकर काटा जाता है. इसके बाद कटे हुए बीजों को लगभग 8 घंटे तक ड्रायर में सुखाया जाता है. काजू के बीच सूखने के बाद महिलाएं उन बीजों से काजू को अलग करती है उसके बाद उनके छिलके निकाले जाते हैं. ऊपर का छिलका निकालने के बाद काजू बिल्कुल साफ और सफेद रंग का हो जाता है. इन काजुओं को दोबारा ड्रायर में सूखने के लिए 1 घंटे रखा जाता है. इसके बाद काजू की पैकिंग की जाती है. महिलाएं 1 किलो काजू 800 रुपये किलो की कीमत से अलग अलग जगह बेचती है. सी मार्ट में भी बस्तर का काजू बेचा जाता है.

पहले दूसरे के खेतों में करती थी काम अब आत्मनिर्भर: समहू की महिलाएं बताती है कि समूह से जुड़ने से पहले वे गांव में दूसरों के खेतों में काम करके जीवन यापन करती थी. लेकिन अब रीपा केंद्र खुलने से और काजू का काम करने से उन्हें रोजगार मिल गया है और अच्छी आमदनी हो रही है. पिछले कुछ महीनों में 90 किलो काजू की बिक्री महिलाओं ने की है.

बस्तर के काजू का स्वाद दूसरे काजू से खास: पर्यावरण प्रेमी अनिल लुक्कड़ ने बताया कि बस्तर का काजू पूरी तरह से ऑर्गेनिक है. क्योंकि इन पौधों को जंगल के क्षेत्रों में लगाया गया है और उसमें जो फल आता है वह प्राकृतिक औषधियुक्त रहता है. इस कारण काजू में प्राकृतिक मिठास मिलती है.

यदि कोई बस्तर के काजू का स्वाद लेगा तो दूसरे काजू का स्वाद पूरी तरह से भूल जाएगा.- अनिल लुक्कड़, पर्यावरण प्रेमी

पर्यावरण प्रेमी अनिल लुक्कड़ ने बस्तर में काजू का बहुतायत उत्पादन पर खुशी जाहिर की है तो काजू का प्रसंस्करण केंद्र बस्तर में नहीं होने पर दुख भी जताया है. उन्होंने कहा कि बस्तर से लगे पड़ोसी राज्य ओडिशा के कोरापुट में काफी संख्या में काजू के लिए प्रसंस्करण केंद्र लगाया गया है. इस कारण बस्तर का काजू ओडिशा भेजा जाता है जिससे बस्तर के लोगों को ज्यादा लाभ नहीं मिल पाता है. उन्होंने कहा कि बस्तर में प्रोसेसिंग यूनिट लग जाने से बस्तर के लोगों को इससे काफी लाभ होगा.

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बस्तर में काजू उत्पादन

बस्तर: काजू की पैदावार अब तक तटीय और समंदर किनारे के क्षेत्रों में ही होती आई है. लेकिन अब छत्तीसगढ़ के बस्तर में भी काजू की अच्छी खासी खेती होने लगी है. काजू उत्पादन के लिए बस्तर का वातावरण काफी अनुकूल है. जिसे देखते हुए लगभग 20 से 25 साल पहले वन विभाग और उद्यानिकी विभाग ने मिलकर बस्तर में काजू के पौधे लगाए. अच्छे और अनुकूल वातावरण से काजू के पौधे बढ़कर पेड़ बन गए. अब उन पेड़ों से अच्छी मात्रा में काजू मिलने लगा है. अच्छी मात्रा में काजू के उत्पादन से नक्सलगढ़ की महिलाओं को भी आय का नया जरिया मिला है.

बस्तर में काजू की अच्छी पैदावार को देखते हुए जगदलपुर के तुरेनार में बनाए गए औद्योगिक पार्क रीपा में काजू प्रसंस्करण यूनिट बनाया गया है. इस यूनिट में महिलाओं को रोजगार दिया गया है. यशोदा महिला स्वसहायता समूह की महिलाएं इस केंद्र में काजू की पैकिंग कर बेचती है.

बस्तर की महिलाओं के लिए आय का जरिया बना काजू: समूह की महिलाएं बताती हैं कि पहले आसपास के इलाकों से काजू के बीज खरीदती है. इसके बाद काजू के बीज को उबाला जाता है. उसे मशीन में डालकर काटा जाता है. इसके बाद कटे हुए बीजों को लगभग 8 घंटे तक ड्रायर में सुखाया जाता है. काजू के बीच सूखने के बाद महिलाएं उन बीजों से काजू को अलग करती है उसके बाद उनके छिलके निकाले जाते हैं. ऊपर का छिलका निकालने के बाद काजू बिल्कुल साफ और सफेद रंग का हो जाता है. इन काजुओं को दोबारा ड्रायर में सूखने के लिए 1 घंटे रखा जाता है. इसके बाद काजू की पैकिंग की जाती है. महिलाएं 1 किलो काजू 800 रुपये किलो की कीमत से अलग अलग जगह बेचती है. सी मार्ट में भी बस्तर का काजू बेचा जाता है.

पहले दूसरे के खेतों में करती थी काम अब आत्मनिर्भर: समहू की महिलाएं बताती है कि समूह से जुड़ने से पहले वे गांव में दूसरों के खेतों में काम करके जीवन यापन करती थी. लेकिन अब रीपा केंद्र खुलने से और काजू का काम करने से उन्हें रोजगार मिल गया है और अच्छी आमदनी हो रही है. पिछले कुछ महीनों में 90 किलो काजू की बिक्री महिलाओं ने की है.

बस्तर के काजू का स्वाद दूसरे काजू से खास: पर्यावरण प्रेमी अनिल लुक्कड़ ने बताया कि बस्तर का काजू पूरी तरह से ऑर्गेनिक है. क्योंकि इन पौधों को जंगल के क्षेत्रों में लगाया गया है और उसमें जो फल आता है वह प्राकृतिक औषधियुक्त रहता है. इस कारण काजू में प्राकृतिक मिठास मिलती है.

यदि कोई बस्तर के काजू का स्वाद लेगा तो दूसरे काजू का स्वाद पूरी तरह से भूल जाएगा.- अनिल लुक्कड़, पर्यावरण प्रेमी

पर्यावरण प्रेमी अनिल लुक्कड़ ने बस्तर में काजू का बहुतायत उत्पादन पर खुशी जाहिर की है तो काजू का प्रसंस्करण केंद्र बस्तर में नहीं होने पर दुख भी जताया है. उन्होंने कहा कि बस्तर से लगे पड़ोसी राज्य ओडिशा के कोरापुट में काफी संख्या में काजू के लिए प्रसंस्करण केंद्र लगाया गया है. इस कारण बस्तर का काजू ओडिशा भेजा जाता है जिससे बस्तर के लोगों को ज्यादा लाभ नहीं मिल पाता है. उन्होंने कहा कि बस्तर में प्रोसेसिंग यूनिट लग जाने से बस्तर के लोगों को इससे काफी लाभ होगा.

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Last Updated : Nov 23, 2023, 2:36 PM IST
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