जगदलपुर : रस्म की शुरूआत 1301 ईसवीं में की गई थी. इस तांत्रिक रस्म को राजा महाराजा बुरी प्रेत आत्माओं से राज्य की रक्षा के लिए अदा करते थे. इस रस्म में बलि चढ़ाकर देवी को प्रसन्न किया जाता है. जिससे देवी राज्य की रक्षा बुरी प्रेत आत्माओं से करे. निशा जात्रा की यह रस्म बस्तर के इतिहास में बहुत ह़ी महत्वपूर्ण स्थान रखती है.
बस्तर के राजकुमार कमलचंद भंजदेव का कहना है कि ''समय के साथ इस रस्म में बदलाव आया है. पहले इस रस्म में कई हजार भैंसों की बलि के साथ-साथ नर बलि भी दी जाती थी. इस रस्म को बुरी आत्माओं से राज्य कि रक्षा के लिए अदा किया जाता (Black magic ritual Nisha Jatra concluded in jagdalpur ) था. अब इस रस्म को राज्य में शान्ति बनाए रखने के लिए निभाया जाता है. निशा जात्रा के विषय में शास्त्र में लिखा गया है यह जातरा रात के समय में ही पूरा किया जाता है. इस जात्रा को प्रेत आत्माओं से बचाने के लिए निभाया जाता है. लगभग 600 साल से यह परंपरा अनवरत चली आ रही है. जिसे आज पूरा किया गया है.''
राज परिवार के सदस्य कमल चंद भंजदेव ने बताया कि ''बीते वर्ष इसी स्थान पर चावल और उड़द की दाल को मिट्टी के बर्तन में डालकर गाड़ दिया गया था. जिसे आज निकाला गया है. 1 साल बाद भी यह गाड़ा हुआ चावल और दाल फ्रेश है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां कितनी शक्ति है.''
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बस्तर सांसद दीपक बैज ने बताया कि ''विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा की रस्में महत्वपूर्ण होती है. ख़ासकर निशा जात्रा सबसे अनोखी रस्म होती है.जिसे आज विधि-विधान के साथ निभाई गयी है. bastar Dussehra 2022