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World Environment Day: आदिवासी किसान ने 400 एकड़ बंजर जमीन को विशाल जंगल में बदला - करमारी गांव

छत्तीसगढ़ के बस्तर में एक 74 वर्षीय आदिवासी किसान दामोदर कश्यप ने अपने गांव में 400 एकड़ जमीन को एक विशाल जंगल में बदल दिया है. Bastar Tribal green warrior

Bastar Tribal green warrior motivates community
बस्तर आदिवासी ग्रीन योद्धा दामोदर कश्यप
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Published : Jun 6, 2023, 2:01 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST

जगदलपुर: बस्तर के एक 74 साल के आदिवासी किसान ने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में अहम काम किया है. इस किसान ने गांव से लगी बंजर जमीन पर हरियाली फैला दी है. गांव की 400 एकड़ जमीन पर जंगल बसा दिया है. हालांकि इस काम के लिए इस किसान को 46 साल का संघर्ष करना पड़ा.

वन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने आदिवासी किसान दामोदर कश्यप की पहल की सराहना की है. उन्होंने कहा कि उनके प्रयासों से न केवल संघ करमारी गांव में वनीकरण हुआ, बल्कि आसपास के गांवों पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ा. कश्यप के लिए बकावंड ब्लॉक में उनके गांव संघ करमारी में जंगल एक अभयारण्य है, जिसे उन्होंने पूरे समुदाय को शामिल करके दशकों के निरंतर प्रयासों से विकसित किया है.

हरियाली बहाल करने की पहल: दामोदर कश्यप ने कहा, 'जब मैं 1970 में जगदलपुर से 12वीं कक्षा की पढ़ाई पूरी कर गांव लौटा. यहां मैं देखकर हैरान रह गया कि हमारे घर के पास के करीब 300 एकड़ जंगल को काफी नुकसान पहुंचा है. जो कभी हरा-भरा जंगल हुआ करता था, वह अब चंद पेड़ों में सिमट कर रह गया है.'' इस स्थिति से परेशान कश्यप ने जंगल को पुनर्जीवित करने और गांव में हरियाली बहाल करने का फैसला किया.

जंगलों को बचाने बनाए सख्त नियम: शुरुआत में दामोदर द्वारा ग्रामीणों को पेड़ों को काटने से रोकने के लिए राजी करने में कठिनाई हुई. क्योंकि वे अपने दैनिक जीवन में उन पर निर्भर थे. लेकिन लोग धीरे-धीरे जंगल के महत्व को समझने लगे. 1977 में गांव के सरपंच चुने जाने के बाद कश्यप ने जंगल को पुनर्जीवित करने के लिए सभी प्रयास किए. उनके बेटे तिलक राम ने कहा कि "अपने कार्यकाल के दौरान कश्यप ने सख्त नियम बनाए और जंगल के विनाश के लिए जुर्माना भी लगाया."

थेंगा पाली प्रणाली की शुरुआत: पंचायत ने 'थेंगा पाली' प्रणाली की शुरुआत की, जिसके तहत पेड़ों की अवैध कटाई को रोकने के लिए गांव के किन्हीं तीन लोगों को हर दिन गश्त और जंगल की रखवाली के लिए तैनात किया गया था. इसके अलावा, कश्यप ने जंगल की रक्षा के लिए स्थानीय मान्यताओं और प्रथाओं का भी इस्तेमाल किया.

"ग्राम देवता के 'लाट' (राजदंड) को गांव और जंगल में घुमाया गया. ताकि लोगों को यह विश्वास दिलाया जा सके कि ये पवित्र स्थान हैं, जिन्हें संरक्षित करने की आवश्यकता है. हमारे घर के पास 300 एकड़ के जंगल के अलावा, मेरे पिता ने ग्रामीणों की मदद से मौलिकोट इलाके में 100 एकड़ जमीन पर साल-दर-साल पौधे लगाकर जंगल भी उगाए." - तिलक राम, ग्रामीण

पॉल के फेयरबेंड फाउंडेशन पुरस्कार मिला: कठिन परिस्थितियों में सामुदायिक एकजुटता के लिए महत्वपूर्ण और स्थायी परिवर्तन लाने के लिए कश्यप को 2014 में पॉल के फेयरबेंड फाउंडेशन पुरस्कार मिला. संरक्षण के क्षेत्र में 70 वर्ष की आयु के इस कार्य की वजह से छत्तीसगढ़ बोर्ड की कक्षा 9 की सामाजिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तक में कश्यप का एक अध्याय भी है.

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जंगल बचाने के लिए हुए प्रेरित: वर्तमान में ग्रामीण विभिन्न किस्मों के पौधे उगाने के लिए नर्सरी स्थापित करने 10 एकड़ भूमि का उपयोग कर रहे हैं. स्थानीय निवासी परितोष मंडल ने बताया कश्यप के प्रयास से करमारी गांव के लोग जंगल बचाने के लिए प्रेरित हुए. उन्होंने कहा, "हम जंगल में बहुत शांति महसूस करते हैं. हरियाली ने यहां की जलवायु को वर्तमान चरम गर्मी के समय में भी ठंडा रखा है."

"जब मैं बस्तर के संभागीय वन अधिकारी (डीएफओ) था. तब मैने करमारी गांव के निवासियों द्वारा किए जा रहे वन संरक्षण प्रयासों के बारे में सुना. मैं जंगल देखने गया था और दामोदर कश्यप के नेतृत्व में ग्रामीणों द्वारा किए गए वृक्षारोपण को देखकर बहुत खुशी हुई." - शाहिद खान, मुख्य वन संरक्षक, बस्तर

ग्रामीणों ने सामूहिक रूप से 400 एकड़ भूमि को कवर किया. जिसमें उन्होंने हरे-भरे जंगल का निर्माण किया. करमारी गांव में ग्रामीणों द्वारा किए गए वनीकरण कार्य का आसपास के गांवों पर भी बहुत सकारात्मक प्रभाव देखने को मिल रहा है. आसपास के गांव वाले भी अपने इस अभियान से जुड़ रहे हैं. इसे जल, जंगल और जमीन के संरक्षण की दिशा में अहम माना जा रहा है.

Source- PTI

जगदलपुर: बस्तर के एक 74 साल के आदिवासी किसान ने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में अहम काम किया है. इस किसान ने गांव से लगी बंजर जमीन पर हरियाली फैला दी है. गांव की 400 एकड़ जमीन पर जंगल बसा दिया है. हालांकि इस काम के लिए इस किसान को 46 साल का संघर्ष करना पड़ा.

वन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने आदिवासी किसान दामोदर कश्यप की पहल की सराहना की है. उन्होंने कहा कि उनके प्रयासों से न केवल संघ करमारी गांव में वनीकरण हुआ, बल्कि आसपास के गांवों पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ा. कश्यप के लिए बकावंड ब्लॉक में उनके गांव संघ करमारी में जंगल एक अभयारण्य है, जिसे उन्होंने पूरे समुदाय को शामिल करके दशकों के निरंतर प्रयासों से विकसित किया है.

हरियाली बहाल करने की पहल: दामोदर कश्यप ने कहा, 'जब मैं 1970 में जगदलपुर से 12वीं कक्षा की पढ़ाई पूरी कर गांव लौटा. यहां मैं देखकर हैरान रह गया कि हमारे घर के पास के करीब 300 एकड़ जंगल को काफी नुकसान पहुंचा है. जो कभी हरा-भरा जंगल हुआ करता था, वह अब चंद पेड़ों में सिमट कर रह गया है.'' इस स्थिति से परेशान कश्यप ने जंगल को पुनर्जीवित करने और गांव में हरियाली बहाल करने का फैसला किया.

जंगलों को बचाने बनाए सख्त नियम: शुरुआत में दामोदर द्वारा ग्रामीणों को पेड़ों को काटने से रोकने के लिए राजी करने में कठिनाई हुई. क्योंकि वे अपने दैनिक जीवन में उन पर निर्भर थे. लेकिन लोग धीरे-धीरे जंगल के महत्व को समझने लगे. 1977 में गांव के सरपंच चुने जाने के बाद कश्यप ने जंगल को पुनर्जीवित करने के लिए सभी प्रयास किए. उनके बेटे तिलक राम ने कहा कि "अपने कार्यकाल के दौरान कश्यप ने सख्त नियम बनाए और जंगल के विनाश के लिए जुर्माना भी लगाया."

थेंगा पाली प्रणाली की शुरुआत: पंचायत ने 'थेंगा पाली' प्रणाली की शुरुआत की, जिसके तहत पेड़ों की अवैध कटाई को रोकने के लिए गांव के किन्हीं तीन लोगों को हर दिन गश्त और जंगल की रखवाली के लिए तैनात किया गया था. इसके अलावा, कश्यप ने जंगल की रक्षा के लिए स्थानीय मान्यताओं और प्रथाओं का भी इस्तेमाल किया.

"ग्राम देवता के 'लाट' (राजदंड) को गांव और जंगल में घुमाया गया. ताकि लोगों को यह विश्वास दिलाया जा सके कि ये पवित्र स्थान हैं, जिन्हें संरक्षित करने की आवश्यकता है. हमारे घर के पास 300 एकड़ के जंगल के अलावा, मेरे पिता ने ग्रामीणों की मदद से मौलिकोट इलाके में 100 एकड़ जमीन पर साल-दर-साल पौधे लगाकर जंगल भी उगाए." - तिलक राम, ग्रामीण

पॉल के फेयरबेंड फाउंडेशन पुरस्कार मिला: कठिन परिस्थितियों में सामुदायिक एकजुटता के लिए महत्वपूर्ण और स्थायी परिवर्तन लाने के लिए कश्यप को 2014 में पॉल के फेयरबेंड फाउंडेशन पुरस्कार मिला. संरक्षण के क्षेत्र में 70 वर्ष की आयु के इस कार्य की वजह से छत्तीसगढ़ बोर्ड की कक्षा 9 की सामाजिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तक में कश्यप का एक अध्याय भी है.

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जंगल बचाने के लिए हुए प्रेरित: वर्तमान में ग्रामीण विभिन्न किस्मों के पौधे उगाने के लिए नर्सरी स्थापित करने 10 एकड़ भूमि का उपयोग कर रहे हैं. स्थानीय निवासी परितोष मंडल ने बताया कश्यप के प्रयास से करमारी गांव के लोग जंगल बचाने के लिए प्रेरित हुए. उन्होंने कहा, "हम जंगल में बहुत शांति महसूस करते हैं. हरियाली ने यहां की जलवायु को वर्तमान चरम गर्मी के समय में भी ठंडा रखा है."

"जब मैं बस्तर के संभागीय वन अधिकारी (डीएफओ) था. तब मैने करमारी गांव के निवासियों द्वारा किए जा रहे वन संरक्षण प्रयासों के बारे में सुना. मैं जंगल देखने गया था और दामोदर कश्यप के नेतृत्व में ग्रामीणों द्वारा किए गए वृक्षारोपण को देखकर बहुत खुशी हुई." - शाहिद खान, मुख्य वन संरक्षक, बस्तर

ग्रामीणों ने सामूहिक रूप से 400 एकड़ भूमि को कवर किया. जिसमें उन्होंने हरे-भरे जंगल का निर्माण किया. करमारी गांव में ग्रामीणों द्वारा किए गए वनीकरण कार्य का आसपास के गांवों पर भी बहुत सकारात्मक प्रभाव देखने को मिल रहा है. आसपास के गांव वाले भी अपने इस अभियान से जुड़ रहे हैं. इसे जल, जंगल और जमीन के संरक्षण की दिशा में अहम माना जा रहा है.

Source- PTI

Last Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST
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