जगदलपुरः बस्तर की प्राचीन कला और परंपरा (ancient art and culture of bastar) में बांस अपना विशेष स्थान रखता है. यहां आदिवासी समाज के लोग बांस से विभिन्न प्रकार के बांस शिल्प तैयार करते हैं. साथ ही धार्मिक अनुष्ठानों में भी बांस का प्रयोग किया जाता है. इसी कारण बस्तर में बांस से बनी वस्तुएं देश-विदेशों में काफी मशहूर हैं. इसमें एक नया अध्याय जोड़ते हुए बस्तर की आदिवासी महिलाएं रक्षाबंधन त्यौहार (raksha bandhan) के लिए बांस (bamboo) की राखियां बनाने में जुटी हुई हैं. रेशम की डोरियों से तैयार हो रही बांस की राखियां लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं.
दरअसल बस्तर के आदिवासी महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने प्रशासन ने इन महिलाओं को बांस से राखी बनाने का प्रशिक्षण दिया है. इसके बाद अब ये महिलाएं एक दिन में 20 से 30 राखियां तैयार कर कर इससे अच्छी आमदनी भी कमा रही हैं. इसके साथ ही स्थानीय कला को बढ़ावा देने के उद्देश्य से प्रशासन खुद इसकी मार्केटिंग भी कर रहा है.
बांस से 7 प्रकार की रंग-बिरंगी राखी तैयार कर रहीं मधोता की महिलाएं
जगदलपुर से लगे बस्तर विकासखंड के मधोता गांव के स्वयं सहायता समूह की महिलाएं रक्षा बंधन के त्योहार को यादगार बनाने के लिए इन दिनों बांस की अनूठी राखियां बना रही हैं. ये महिलाएं बांस से 7 प्रकार की रंग-बिरंगी राखी तैयार कर रही हैं. ये राखियां लोगों को काफी आकर्षित कर रही हैं. इस राखी में खास यह है कि ये राखिया पूरी तरह से बांस और रेशम की धागे से तैयार की जा रही हैं. जल्द ही ये राखियां जगदलपुर के बाजार और पर्यटन स्थलों पर भी लोगों के लिए उपलब्ध होंगी.
ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर व स्थानीय कला को बढ़ावा देने का है प्रयास
दरअसल, प्रशासन की ओर से ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के साथ-साथ स्थानीय कला को बढ़ावा देने के लिए यह प्रयास किये जा रहे हैं. साथ ही इसका उद्देश्य लोगों को पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करना भी है. इसी उद्देश्य से बांस से राखी निर्मित करने के लिए महिलाओं को प्रशिक्षण दिया गया है. करीब 2 महीने तक प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद अब यह महिलाएं बांस की अनूठी राखियां तैयार कर रही हैं.
पहले बांस की ज्वेलरी तैयार कर रही थीं महिलाएं
मधोता ग्राम पंचायत के दो महिला स्वयं सहायता समूह की महिलाएं बांस की राखियां तैयार कर रही हैं. इसमें एक तिरंगा स्वयं सहायता समूह और दूसरा पवित्र स्वयं सहायता समूह है. इन दोनों समूह में 20 महिलाएं शामिल हैं और इनमें से 10 महिलाएं बांस की राखियां तैयार कर रही हैं. इन महिलाओं ने बताया कि वे लोग पहले बांस की ज्वेलरी तैयार कर रही थीं, जिसके बाद उन्हें जिला पंचायत के अधिकारियों और ट्रेनरों ने बांस की राखियां तैयार करने के लिए 2 महीने का प्रशिक्षण दिया. अब तक महिलाओं ने 300 से अधिक राखियां तैयार कर ली हैं.
एक दिन में 130 से 150 रुपये तक की कमाई
समूह से जुड़ी महिलाओं का कहना है कि उन्हें राखी बनाने के लिए सभी वस्तु जिला पंचायत की ओर से मुहैया कराए जाते हैं. महिलाओं को एक दिन में 130 से 150 रुपये तक की कमाई होती है. वे चाहती हैं कि इस साल बस्तर की बहनें बस्तर के इन बांसों से बनी आकर्षक राखियां बांधकर अपने भाइयों की कलाई को सजाएं और उनकी लंबी उम्र की कामना करें.
बाजार समेत ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर भी उपलब्ध होगी राखी
इसको लेकर जिला पंचायत की सीईओ ऋचा प्रकाश चौधरी का कहना है कि यह राखियां शहर के राखी बाजार में स्थित विभिन्न काउंटरों पर जल्द से जल्द उपलब्ध हो जाएंगे. साथ ही बांस से बनी यह राखियां ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर भी बिक्री के लिए उपलब्ध होंगी. इस राखी के निर्माण के पीछे शासन का उद्देश्य यह है कि ज्यादा से ज्यादा स्थानीय लोगों को आत्मनिर्भर बनाया जा सके. साथ ही स्थानीय कला को भी बढ़ावा मिल सके.