जगदलपुर: उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से नहीं सीखा, बिहार के चमकी बुखार ने अलर्ट नहीं किया, राजस्थान के कोटा में मासूमों की अर्थी भी नहीं चेता रही है. छत्तीसगढ़ में भी लापरवाही बच्चों पर भारी पड़ रही है. आंकड़े चेतावनी दे रहे हैं. नक्सल प्रभावित बस्तर में साल 2019 में 822 बच्चों ने इलाज के अभाव में दम तोड़ दिया है. ये सिर्फ जगदलपुर मेडिकल कॉलेज के आंकड़े हैं.
822 बच्चों में ज्यादातर नवजात हैं. खासतौर पर इसमें अन्य जिलों से रेफर होकर आए बच्चों की संख्या ज्यादा है. आंकड़े कहते हैं कि नवजातों की मौत के मामले में बस्तर देश में दूसरे नंबर पर है. डाटा के मुताबिक मेडिकल कॉलेज अस्पताल में हर दिन 2 नवजात दम तोड़ रहे हैं, जो वाकई चिंता करने की बात है.
ज्यादातर नवजातों ने तोड़ा दम
डीमरापाल अस्पताल के शिशु विशेषज्ञ ने जो बताया, उसे सुनकर रोंगटे खड़े हो गए. डॉक्टर ने बताया कि सालभर में जितने बच्चों की मौत हुई, उनमें से 576 बच्चों की उम्र एक दिन से लेकर 30 दिन है. वहीं 236 बच्चे ऐसे थे, जिनकी उम्र 30 दिन से लेकर 9 साल है.
6 जिलों में न अस्पताल और न डॉक्टर
डॉक्टर कहना है कि बस्तर संभाग के 6 जिलों में किसी भी सरकारी अस्पताल में नवजात बच्चों के इलाज की पूरी व्यवस्था नहीं है. ऐसे में कई बार बच्चों को गंभीर हालत में असुरक्षित सफर करवाकर जगदलपुर मेडिकल कॉलेज लाया जाता है. यहां लाए जाने वाले बच्चों की हालत ऐसी होती है कि वे दम तोड़ देते हैं.
स्टाफ की कमी भी बड़ी वजह
डॉक्टर ने मेडीकल कॉलेज में स्टाफ की कमी भी बच्चों के मौत के पीछे एक बड़ी वजह बताई है. उनका कहना है कि 400 करोड़ रूपए की लागत से डीमरापाल अस्पताल व मेडीकल कॉलेज तो बना दिया गया है लेकिन लंबे समय से अस्पताल स्टाफ की कमी से जूझ रहा है. ऐसे में कई बार डिलीवरी के दौरान नवजात बच्चे की हालत गंभीर होने के बाद भी उचित इलाज नहीं मिलता है.
दूर से गंभीर हालत में लाए जाते हैं बच्चे
इसके अलावा ग्रामीण अंचलों में अशिक्षा और जागरूकता की कमी भी नवजात शिशुओं की मौत का मुख्य कारण है. ग्रामीण अंचलों में स्वास्थ सुविधाओं का न होना, गर्भवती महिलाओं की ठीक तरीके से देखभाल न होने की वजह से कम वजनी बच्चे पैदा होते हैं. ऐसे बच्चों को कई बार बचाना मुश्किल होता है.
देर हो जाती है आते-आते...
डॉक्टर का कहना है कि बस्तर संभाग में बच्चों के इलाज के लिए बेहतरीन व्यवस्था मेडिकल कॉलेज में ही है. वे यह भी कहते हैं कि यहां नवजातों के लिए 36 बेड वाला एनआईसीयू है. वहीं 30 दिन से 9 साल तक के बच्चों के इलाज के लिए 60 बेड वाला चिल्ड्रन वार्ड है. 4 पीडियाट्रिक डॉक्टर भी हैं, 6 जेआर काम कर रहे हैं. पिछले एक साल में मेकॉज में 6 जिलों से एनआईसीयू में 2605 और चिल्ड्रन वार्ड में 2857 में भर्ती हुए लेकिन यहां पहुंचने वाले ज्यादातर बच्चे गंभीर अवस्था में लाए गए थे, जिन्हें बचाया नहीं जा सका. भले ही बच्चों को समुचित इलाज व्यवस्था मुहैया करवाने की बात स्वास्थ्य मंत्री कर रहे हैं . लेकिन यह भयावह हालात उस छत्तीसगढ़ और बस्तर के हैं जहां से आयुष्मान भारत योजना का आगाज हुआ.और जहां यूनिवर्सल हेल्थ स्कीम को लागू करने को लेकर सरकार युद्ध स्तर पर काम करने की बात कह रही है. फिर भी अगर ऐसी स्वास्थ्य व्यवस्था जो हमारे नौनिहालों को न बचा पाए. उन्हें बेहतर इलाज न दे पाए तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि हेल्थ सर्विसेज के मामले में हमारा प्रदेश कहां हैं.