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गुल्लक वाली टीचर: बच्चे नशे के आदी हो रहे थे, इस शिक्षिका ने बचत की लत लगा दी

जब शिक्षिका निर्मला को पता चला कि यहां के बच्चे नशे की गिरफ्त में जा रहे हैं, बस शिक्षिका ने उसी वक्त ठान लिया था कि ये सूरत बदलनी थी. कैसे ये उनसे खुद जानिए.

गुल्लक वाली टीचर गरियाबंद
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Published : Sep 5, 2019, 8:11 PM IST

Updated : Sep 5, 2019, 11:40 PM IST

गरियाबंद: गरियाबंद की पांडुका प्रायमरी स्कूल में ये गुल्लक देख रहे हैं आप, इसमें सिर्फ बच्चों के लिए रुपए नहीं जमा होते बल्कि संस्कार, शिक्षा और भविष्य गढ़ने के तरीके जमा होते हैं. इसका पूरा श्रेय जाता है इस स्कूल की प्रधानपाठक निर्मला शर्मा को. निर्मला 2009 में जब यहां आई थीं तो उन्हें पता चला कि यहां के बच्चे नशे की गिरफ्त में जा रहे हैं, बस निर्मला ने उसी वक्त ठान लिया था कि ये सूरत बदलनी थी. कैसे ये उनसे खुद जानिए.

गुल्लक वाली टीचर गरियाबंद

शिक्षिका की शर्त
निर्मला बताती हैं कि जब बच्चा पहली क्लास में एडमिशन लेता है, तब परिवार के साथ एक गुल्लक लेकर आता है. पांचवीं तक पढ़ते वक्त हर दिन यहां बच्चे रुपए लाकर डालते हैं. पांचवीं के बाद जब बच्चे छठी क्लास में दूसरे स्कूल दाखिला लेने जाते हैं, तो इन्हीं पैसों से किताब और ड्रेस खरीदते हैं. ये निर्मला शर्मा की शर्त है.

पढ़ें : छत्तीसगढ़ में आज से लागू हुआ 82 फीसदी आरक्षण, गरीब सवर्णों को मिला 10% रिजर्वेशन

पांडुका प्रायमरी स्कूल में पढ़ने वाले ये नन्हे बच्चे है हर रोज अपनी पॉकेटमनी में से बचत करते हैं. स्कूल की प्रधानपाठक ने इनके लिए अलग-अलग गुलक की व्यवस्था कर रखी है, जिसमें ये अपनी पॉकेटमनी के बचत सिक्के डालते हैं. स्कूल छोड़ते वक्त ये गुल्लक तभी मिलता है, जब वे इसके रुपयों से किताब और ड्रेस खरीदने का वादा करते हैं. इस काम में शिक्षिका का साथ बच्चों के अभिभावत देते हैं.

बचत करने की होड़
ऐसा करने के पीछे प्रधानपाठक ने बताया कि उनके स्कूल में ज्यादातर सामान्य परिवार के बच्चे पढ़ने आते हैं, जिनके परिवारों में शिक्षा को ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता था. यही नहीं बच्चे खुद भी पढ़ाई की बजाय कुसंगतियों में ज्यादा ध्यान देते थे. जब से उन्होंने गुलक की व्यवस्था की है तब से बच्चों में बचत करने की प्रवृति बढ़ी है. बच्चे एक दूसरे से ज्यादा बचत करने की होड़ में लगे हैं.

इस नई सोच और यहां के बच्चों का भविष्य इस तरह से गढ़ने के लिए निर्मला शर्मा को सलाम.

गरियाबंद: गरियाबंद की पांडुका प्रायमरी स्कूल में ये गुल्लक देख रहे हैं आप, इसमें सिर्फ बच्चों के लिए रुपए नहीं जमा होते बल्कि संस्कार, शिक्षा और भविष्य गढ़ने के तरीके जमा होते हैं. इसका पूरा श्रेय जाता है इस स्कूल की प्रधानपाठक निर्मला शर्मा को. निर्मला 2009 में जब यहां आई थीं तो उन्हें पता चला कि यहां के बच्चे नशे की गिरफ्त में जा रहे हैं, बस निर्मला ने उसी वक्त ठान लिया था कि ये सूरत बदलनी थी. कैसे ये उनसे खुद जानिए.

गुल्लक वाली टीचर गरियाबंद

शिक्षिका की शर्त
निर्मला बताती हैं कि जब बच्चा पहली क्लास में एडमिशन लेता है, तब परिवार के साथ एक गुल्लक लेकर आता है. पांचवीं तक पढ़ते वक्त हर दिन यहां बच्चे रुपए लाकर डालते हैं. पांचवीं के बाद जब बच्चे छठी क्लास में दूसरे स्कूल दाखिला लेने जाते हैं, तो इन्हीं पैसों से किताब और ड्रेस खरीदते हैं. ये निर्मला शर्मा की शर्त है.

पढ़ें : छत्तीसगढ़ में आज से लागू हुआ 82 फीसदी आरक्षण, गरीब सवर्णों को मिला 10% रिजर्वेशन

पांडुका प्रायमरी स्कूल में पढ़ने वाले ये नन्हे बच्चे है हर रोज अपनी पॉकेटमनी में से बचत करते हैं. स्कूल की प्रधानपाठक ने इनके लिए अलग-अलग गुलक की व्यवस्था कर रखी है, जिसमें ये अपनी पॉकेटमनी के बचत सिक्के डालते हैं. स्कूल छोड़ते वक्त ये गुल्लक तभी मिलता है, जब वे इसके रुपयों से किताब और ड्रेस खरीदने का वादा करते हैं. इस काम में शिक्षिका का साथ बच्चों के अभिभावत देते हैं.

बचत करने की होड़
ऐसा करने के पीछे प्रधानपाठक ने बताया कि उनके स्कूल में ज्यादातर सामान्य परिवार के बच्चे पढ़ने आते हैं, जिनके परिवारों में शिक्षा को ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता था. यही नहीं बच्चे खुद भी पढ़ाई की बजाय कुसंगतियों में ज्यादा ध्यान देते थे. जब से उन्होंने गुलक की व्यवस्था की है तब से बच्चों में बचत करने की प्रवृति बढ़ी है. बच्चे एक दूसरे से ज्यादा बचत करने की होड़ में लगे हैं.

इस नई सोच और यहां के बच्चों का भविष्य इस तरह से गढ़ने के लिए निर्मला शर्मा को सलाम.

Intro:स्लग---टीचर्स डे स्पेशल
एंकर--ज्यादातर शिक्षकों ने आजकल बच्चों को केवल किताबी ज्ञान बांटने तक सीमित कर लिया है, मगर फिर भी फिलहाल कुछ ऐसे शिक्षक मौजूद है जो बच्चों को किताबी ज्ञान के अलावा व्यवहारिक ज्ञान की शिक्षा भी दे रहे है, आज शिक्षक दिवस के अवसर पर हम एक ऐसी ही शिक्षिका के बारे में बताने जा रहे है जो ग्रामीण परिवेश के बच्चों को कुछ अलग तरह की शिक्षा देने में जुटी है।
Body:वीओ 1---आज भी आप और हम में से बहुत से ऐसे लोग होंगे जिनके पास हजारों लाखों कमाने के बाद भी बचत के नाम पर एक फूटी कौड़ी नही होगी, ये बचत हम क्यों नही कर पाए इसके पीछे सबके अपने अलग अलग कारण हो सकते है मगर सबसे बड़ा कारण ये है कि बचत करना हमने कभी सीखा ही नही, वही गरियाबंद जिले के पांडुका प्रायमरी स्कूल में पढ़ने वाले ये नन्हें बच्चे है जो रोज अपनी पॉकेटमनी में से बचत करते है, स्कूल की प्रधानपाठक ने इनके लिए अलग अलग गुलक की व्यवस्था कर रखी है जिसमे ये अपनी पॉकेटमनी के बचत सिक्के डालते है ताकि पांचवी पास करने के बाद जब ये गुलक का पैसा उन्हें मिलेगा तो उससे ये अपने लिए कॉपी पुस्तक खरीद सके।
बाईट 1--निर्मला शर्मा, प्रधानपाठक--
वीओ 2--ऐसा करने के पीछे प्रधानपाठक ने बताया कि उनके स्कूल में ज्यादातर सामान्य परिवार के बच्चे पढ़ने आते है, जिनके परिवारों में शिक्षा को ज्यादा महत्व नही दिया जाता था, यही नही बच्चे खुद भी पढ़ाई की बजाय कुसंगतियो में ज्यादा ध्यान देते थे, यहां तक कि अपनी पॉकेटमनी भी ऐसे ही व्यर्थ में खर्च कर देते थे, मगर जब से उन्होंने गुलक की व्यवस्था की है तब से बच्चों में बचत करने की प्रवृति बढ़ी है, बच्चे एक दूसरे से ज्यादा बचत करने की होड़ करने लगे है।
बाईट 2--निर्मला शर्मा, प्रधानपाठक--
Conclusion:फाईनल वीओ---बचत की इस नयी शिक्षा से बच्चों को कितना फायदा होगा ये तो आने वाला वक्त ही बताये मगर फिलहाल बच्चों को नयी तरह की शिक्षा देने के कारण ये स्कूल चर्चा का विषय जरुर बना हुआ है और लोग इसकी जमकर तारीफ कर रहे है।
Last Updated : Sep 5, 2019, 11:40 PM IST
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