गरियाबंद: गरियाबंद की पांडुका प्रायमरी स्कूल में ये गुल्लक देख रहे हैं आप, इसमें सिर्फ बच्चों के लिए रुपए नहीं जमा होते बल्कि संस्कार, शिक्षा और भविष्य गढ़ने के तरीके जमा होते हैं. इसका पूरा श्रेय जाता है इस स्कूल की प्रधानपाठक निर्मला शर्मा को. निर्मला 2009 में जब यहां आई थीं तो उन्हें पता चला कि यहां के बच्चे नशे की गिरफ्त में जा रहे हैं, बस निर्मला ने उसी वक्त ठान लिया था कि ये सूरत बदलनी थी. कैसे ये उनसे खुद जानिए.
शिक्षिका की शर्त
निर्मला बताती हैं कि जब बच्चा पहली क्लास में एडमिशन लेता है, तब परिवार के साथ एक गुल्लक लेकर आता है. पांचवीं तक पढ़ते वक्त हर दिन यहां बच्चे रुपए लाकर डालते हैं. पांचवीं के बाद जब बच्चे छठी क्लास में दूसरे स्कूल दाखिला लेने जाते हैं, तो इन्हीं पैसों से किताब और ड्रेस खरीदते हैं. ये निर्मला शर्मा की शर्त है.
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पांडुका प्रायमरी स्कूल में पढ़ने वाले ये नन्हे बच्चे है हर रोज अपनी पॉकेटमनी में से बचत करते हैं. स्कूल की प्रधानपाठक ने इनके लिए अलग-अलग गुलक की व्यवस्था कर रखी है, जिसमें ये अपनी पॉकेटमनी के बचत सिक्के डालते हैं. स्कूल छोड़ते वक्त ये गुल्लक तभी मिलता है, जब वे इसके रुपयों से किताब और ड्रेस खरीदने का वादा करते हैं. इस काम में शिक्षिका का साथ बच्चों के अभिभावत देते हैं.
बचत करने की होड़
ऐसा करने के पीछे प्रधानपाठक ने बताया कि उनके स्कूल में ज्यादातर सामान्य परिवार के बच्चे पढ़ने आते हैं, जिनके परिवारों में शिक्षा को ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता था. यही नहीं बच्चे खुद भी पढ़ाई की बजाय कुसंगतियों में ज्यादा ध्यान देते थे. जब से उन्होंने गुलक की व्यवस्था की है तब से बच्चों में बचत करने की प्रवृति बढ़ी है. बच्चे एक दूसरे से ज्यादा बचत करने की होड़ में लगे हैं.
इस नई सोच और यहां के बच्चों का भविष्य इस तरह से गढ़ने के लिए निर्मला शर्मा को सलाम.