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EXCLUSIVE: कोरोना काल कलाकारों की जिंदगी का सबसे मुश्किल समय- तीजन बाई

कोरोना ने सभी क्षेत्रों को प्रभावित किया है. कला का क्षेत्र भी कोरोना की काली परछाई से अछूता नहीं रहा. कोरोना काल का कलाकारों पर क्या असर पड़ा है इन सब सवालों को लेकर ETV भारत ने प्रसिद्ध पंडवानी गायिका, पद्म विभूषण तीजन बाई से खास बात की.

Special conversation with Pandwani singer Padmashree Teejan Bai
तीजन बाई से खास बातचीत
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Published : Oct 30, 2020, 10:38 PM IST

Updated : Oct 30, 2020, 11:01 PM IST

गरियाबंद: छत्तीसगढ़ की लोक कला और पंडवानी गायन का अगर नाम लें तो इस क्षेत्र में सबसे बड़ा नाम तीजन बाई का आता है. देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी पंडवानी का प्रदर्शन कर चुकी तीजन बाई भी कोरोना काल के चलते कलाकारों की स्थिति बिगड़ने की बात कह रही हैं. तीजन बाई का कहना है कि कोरोना काल सबसे अधिक कलाकारों के लिए संकट का समय लेकर आया है. कार्यक्रम पूरी तरह बंद होने के चलते कलाकार का जीवन संघर्ष के बीच कट रहा है.

तीजन बाई से खास बातचीत

तीजन बाई का साफ तौर पर कहना है कि कलाकारों का जीवन दर्शकों की भीड़ से चलता है. लेकिन कोरोना संक्रमण की वजह से न भीड़ लग रही है, न कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं. कलाकार बेरोजगार हो गए हैं. तीजन बाई ने बताया कि कई कलाकारों की स्थितियां अब अच्छी नहीं हैं. छोटे कलाकारों के लिए उनकी पीड़ा साफ नजर आ रही है.

अब भी पसंद की जाती है पंडवानी

पंडवानी गायन की वर्तमान स्थिति को लेकर पूछे गए सवाल पर तीजन बाई कहतीं हैं कि पंडवानी सुनने वालों की संख्या आज भी लाखों में है. ऐसा नहीं है कि लोग अब इसमें रुचि नहीं लेते. स्कूलों में भी पंडवानी पसंद की जाती है.

नई पीढ़ी भी सीख रही पंडवानी

पंडवानी गायन सीखने में नए कलाकारों को रुचि नहीं होने के सवाल पर तीजन बाई कहतीं हैं कि कई नए चेहरे पंडवानी सीखने के लिए प्रयासरत हैं. लेकिन हर कोई तीजनबाई तो नहीं बन सकता. फिर भी कई नाम हैं जो काफी कुछ कर रहे हैं. तीजन बाई ने कहा कि मेरे पास 200 से ज्यादा बच्चे हैं जो पंडवानी सीख रहे हैं. उनमें से एक मेरी नाती भी है.

छत्तीसगढ़ के लोक कलाकारों की स्थिति दयनीय, राज्योत्सव से भी टूटी आस

क्या है पंडवानी गायन

पंडवानी छत्तीसगढ़ का वह एकल नाट्य है जिसका मतलब है पांडववाणी (पांडवकथा) यानी महाभारत की कथा. ये कथाएं छत्तीसगढ़ की परधान और देवार छत्तीसगढ़ की जातियों की गायन परंपरा है. परधान जाति के कथा वाचक या वाचिका के हाथ में 'किंकनी' (पारंपरिक वाद्य यंत्र) होता है और देवारों के हाथों में र्रूंझू (वाद्य यंत्र) होता है.

पंडवानी की दो शैलियां

पंडवानी की दो शैलियां होती हैं. एक होती है कपालिका और दूसरी वेदमती शैली.

  • कपालिका शैली

कापालिक शैली जो गायक गायिका के स्मृति में या "कपाल" में विद्यमान है. यानी जिन कलाकारों को महाभारत की पूरी कथा कंठस्त याद है उसे कपालिका शैली कहते हैं. कापालिक शैली की विख्यात गायिका हैं तीजनबाई, शांतिबाई चेलकने, उषा बाई बारले.

  • वेदमती शैली

वेदमती शैली जिसका आधार है शास्र. कापालिक शैली वाचक परम्परा पर आधारित होती है और वेदमती शैली का आधार है खड़ी भाषा में गाना. 'महाभारत के शांति पर्व को प्रस्तुत करनेवाले निसंदेह वे सर्वश्रेष्ठ कलाकार हैं'. पुनाराम निषाद और पंचूराम रेवाराम पुरुष कलाकारों में हैं जो वेदमती शैली को अपनाए हैं. महिला कलाकारों में लक्ष्मी बाई का नाम है.

गरियाबंद: छत्तीसगढ़ की लोक कला और पंडवानी गायन का अगर नाम लें तो इस क्षेत्र में सबसे बड़ा नाम तीजन बाई का आता है. देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी पंडवानी का प्रदर्शन कर चुकी तीजन बाई भी कोरोना काल के चलते कलाकारों की स्थिति बिगड़ने की बात कह रही हैं. तीजन बाई का कहना है कि कोरोना काल सबसे अधिक कलाकारों के लिए संकट का समय लेकर आया है. कार्यक्रम पूरी तरह बंद होने के चलते कलाकार का जीवन संघर्ष के बीच कट रहा है.

तीजन बाई से खास बातचीत

तीजन बाई का साफ तौर पर कहना है कि कलाकारों का जीवन दर्शकों की भीड़ से चलता है. लेकिन कोरोना संक्रमण की वजह से न भीड़ लग रही है, न कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं. कलाकार बेरोजगार हो गए हैं. तीजन बाई ने बताया कि कई कलाकारों की स्थितियां अब अच्छी नहीं हैं. छोटे कलाकारों के लिए उनकी पीड़ा साफ नजर आ रही है.

अब भी पसंद की जाती है पंडवानी

पंडवानी गायन की वर्तमान स्थिति को लेकर पूछे गए सवाल पर तीजन बाई कहतीं हैं कि पंडवानी सुनने वालों की संख्या आज भी लाखों में है. ऐसा नहीं है कि लोग अब इसमें रुचि नहीं लेते. स्कूलों में भी पंडवानी पसंद की जाती है.

नई पीढ़ी भी सीख रही पंडवानी

पंडवानी गायन सीखने में नए कलाकारों को रुचि नहीं होने के सवाल पर तीजन बाई कहतीं हैं कि कई नए चेहरे पंडवानी सीखने के लिए प्रयासरत हैं. लेकिन हर कोई तीजनबाई तो नहीं बन सकता. फिर भी कई नाम हैं जो काफी कुछ कर रहे हैं. तीजन बाई ने कहा कि मेरे पास 200 से ज्यादा बच्चे हैं जो पंडवानी सीख रहे हैं. उनमें से एक मेरी नाती भी है.

छत्तीसगढ़ के लोक कलाकारों की स्थिति दयनीय, राज्योत्सव से भी टूटी आस

क्या है पंडवानी गायन

पंडवानी छत्तीसगढ़ का वह एकल नाट्य है जिसका मतलब है पांडववाणी (पांडवकथा) यानी महाभारत की कथा. ये कथाएं छत्तीसगढ़ की परधान और देवार छत्तीसगढ़ की जातियों की गायन परंपरा है. परधान जाति के कथा वाचक या वाचिका के हाथ में 'किंकनी' (पारंपरिक वाद्य यंत्र) होता है और देवारों के हाथों में र्रूंझू (वाद्य यंत्र) होता है.

पंडवानी की दो शैलियां

पंडवानी की दो शैलियां होती हैं. एक होती है कपालिका और दूसरी वेदमती शैली.

  • कपालिका शैली

कापालिक शैली जो गायक गायिका के स्मृति में या "कपाल" में विद्यमान है. यानी जिन कलाकारों को महाभारत की पूरी कथा कंठस्त याद है उसे कपालिका शैली कहते हैं. कापालिक शैली की विख्यात गायिका हैं तीजनबाई, शांतिबाई चेलकने, उषा बाई बारले.

  • वेदमती शैली

वेदमती शैली जिसका आधार है शास्र. कापालिक शैली वाचक परम्परा पर आधारित होती है और वेदमती शैली का आधार है खड़ी भाषा में गाना. 'महाभारत के शांति पर्व को प्रस्तुत करनेवाले निसंदेह वे सर्वश्रेष्ठ कलाकार हैं'. पुनाराम निषाद और पंचूराम रेवाराम पुरुष कलाकारों में हैं जो वेदमती शैली को अपनाए हैं. महिला कलाकारों में लक्ष्मी बाई का नाम है.

Last Updated : Oct 30, 2020, 11:01 PM IST
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