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1 साल में बिखर गया देवभोग का ये परिवार, बीमार बेटी कर रही पिता की देखभाल, सरकार से मदद की आस

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Published : Jun 19, 2021, 9:13 PM IST

देवभोग के फोकटपारा में एक परिवार बड़ी मुश्किल से गुजर-बसर कर रहा है. परिवार का मुखिया साल 2020 में अचानक बीमार पड़ा, जिसके बाद उसकी पत्नी की भी मौत हो गई. एक बेटी जो पिता की देखभाल कर रही थी. उसके पैर भी काम नहीं कर रहे हैं. प्रशासन को इस बात की खबर तक नहीं है कि यह परिवार इतनी परेशानियों से जूझ रहा है. ETV BHARAT ने स्वास्थ्य विभाग और जनपद पंचायत अधिकारी को इस परिवार की पीड़ा से अवगत कराया है.

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बीमार बेटी कर रही पिता की देखभाल

गरियाबंद: एक हंसता खेलता परिवार देखते ही देखते बिखर गया है. परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है. परिवार को बीमारी ने ऐसा घेरा है कि सबकुछ बर्बाद हो गया है. मां की मौत के बाद परिवार में पिता और बेटी रह गए हैं. दोनों बीमारी से जूझ रहे हैं. आज ये परिवार पाई-पाई को मोहताज है. अब ना कोई कमाने वाला बचा और ना ही शारीरिक रूप से दिव्यांग हो चुके परिवार को संभालने वाला. ऐसे में जैसे-तैसे पिता और बेटी का जीवन कट रहा है. हैरान करने वाली बात ये भी है कि प्रशासन को इसकी खबर भी नहीं है.

बीमार बेटी कर रही पिता की देखभाल

बीमारी से उजड़ गया पूरा परिवार

देवभोग के फोकटपारा निवासी 70 वर्षीय अभिराम का परिवार सालभर में पूरी तरह बर्बाद हो गया. पिछले साल अप्रैल तक अभिराम मजदूरी कर अपना परिवार पाल रहे थे. उनकी पत्नी बेदमती बेटी देबकी के साथ घर संभालती थी. अभिराम अचानक बीमार हुए और कामकाज बंद हो गया. ऐसे में घर की सारी जिम्मेदारी पत्नी बेदमती पर आ गई. मगर दो महीने के भीतर ही पत्नी की मौत हो गई. जिसके बाद पिता की पूरी जिम्मेदारी 20 वर्षीय बेटी देबकी के कंघे पर आ गई. लेकिन अब बेटी की हालत भी ठीक नहीं है. किसी बीमारी के कारण उसके पैर काम नहीं कर रहे. पिता के साथ अब बेटी भी बीमार पड़ गई है. देखते ही देखते दोनो पैरों ने काम करना बंद कर दिया है. बेटी देबकी घिसट-घिसट कर पिता की देखभाल करने को मजबूर है.

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पड़ोसी कर रहे मदद

बीमार होने के बावजूद ऐसे हालातों में बेटी घर पर पिता को संभाल रही है. हालात ऐसे हैं कि कमाई करना तो दूर गरीबी रेखा का राशन ओर पेंशन लाना भी परिवार के लिए मुश्किल हो गया है. खाते में 7 माह का 2500 रुपये पेंशन जमा है, मगर बैंक नहीं जा पाने के कारण उसे निकाल नहीं पाए. दो माह का राशन भी सोसायटी से नहीं ले पाए हैं. आस-पड़ोस के लोग मदद कर देते हैं. उसी से पिता और बेटी अपना गुजर-बसर कर रहे हैं. अचानक पैदा हुए इन हालातों पर अभिराम भी कुछ कह नहीं पा रहे हैं.

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प्रशासन को खबर ही नहीं

छत्तीसगढ़ की सरकार गरीब और निर्धनों के उत्थान की बात करती है. लेकिन हैरानी की बात है कि गांव में रह रहे इस परिवार के हालातों की जानकारी प्रशासनिक अधिकारियों तक पहुंच ही नहीं सकी है. स्वास्थ्य विभाग को जानकारी ही नहीं है कि एक परिवार में 2 लोग गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं. इसके अलावा जनपद पंचायत के अधिकारी को भी इस बात की जानकारी नहीं थी. ऐसे में कई सवाल भी उठते हैं. पंचायत स्तर तक प्रशासनिक कर्मचारियों को ऐसे लोगों की मदद और सरकार की योजनाओं को पहुंचाने के लिए नियुक्त किया गया है. बावजूद इसके अधिकारियों को इसकी जानकारी क्यों नहीं है. हालांकि ETV BHARAT ने अधिकारियों को परिवार की परेशानियों से अवगत कराया है.

गरियाबंद: एक हंसता खेलता परिवार देखते ही देखते बिखर गया है. परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है. परिवार को बीमारी ने ऐसा घेरा है कि सबकुछ बर्बाद हो गया है. मां की मौत के बाद परिवार में पिता और बेटी रह गए हैं. दोनों बीमारी से जूझ रहे हैं. आज ये परिवार पाई-पाई को मोहताज है. अब ना कोई कमाने वाला बचा और ना ही शारीरिक रूप से दिव्यांग हो चुके परिवार को संभालने वाला. ऐसे में जैसे-तैसे पिता और बेटी का जीवन कट रहा है. हैरान करने वाली बात ये भी है कि प्रशासन को इसकी खबर भी नहीं है.

बीमार बेटी कर रही पिता की देखभाल

बीमारी से उजड़ गया पूरा परिवार

देवभोग के फोकटपारा निवासी 70 वर्षीय अभिराम का परिवार सालभर में पूरी तरह बर्बाद हो गया. पिछले साल अप्रैल तक अभिराम मजदूरी कर अपना परिवार पाल रहे थे. उनकी पत्नी बेदमती बेटी देबकी के साथ घर संभालती थी. अभिराम अचानक बीमार हुए और कामकाज बंद हो गया. ऐसे में घर की सारी जिम्मेदारी पत्नी बेदमती पर आ गई. मगर दो महीने के भीतर ही पत्नी की मौत हो गई. जिसके बाद पिता की पूरी जिम्मेदारी 20 वर्षीय बेटी देबकी के कंघे पर आ गई. लेकिन अब बेटी की हालत भी ठीक नहीं है. किसी बीमारी के कारण उसके पैर काम नहीं कर रहे. पिता के साथ अब बेटी भी बीमार पड़ गई है. देखते ही देखते दोनो पैरों ने काम करना बंद कर दिया है. बेटी देबकी घिसट-घिसट कर पिता की देखभाल करने को मजबूर है.

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पड़ोसी कर रहे मदद

बीमार होने के बावजूद ऐसे हालातों में बेटी घर पर पिता को संभाल रही है. हालात ऐसे हैं कि कमाई करना तो दूर गरीबी रेखा का राशन ओर पेंशन लाना भी परिवार के लिए मुश्किल हो गया है. खाते में 7 माह का 2500 रुपये पेंशन जमा है, मगर बैंक नहीं जा पाने के कारण उसे निकाल नहीं पाए. दो माह का राशन भी सोसायटी से नहीं ले पाए हैं. आस-पड़ोस के लोग मदद कर देते हैं. उसी से पिता और बेटी अपना गुजर-बसर कर रहे हैं. अचानक पैदा हुए इन हालातों पर अभिराम भी कुछ कह नहीं पा रहे हैं.

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प्रशासन को खबर ही नहीं

छत्तीसगढ़ की सरकार गरीब और निर्धनों के उत्थान की बात करती है. लेकिन हैरानी की बात है कि गांव में रह रहे इस परिवार के हालातों की जानकारी प्रशासनिक अधिकारियों तक पहुंच ही नहीं सकी है. स्वास्थ्य विभाग को जानकारी ही नहीं है कि एक परिवार में 2 लोग गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं. इसके अलावा जनपद पंचायत के अधिकारी को भी इस बात की जानकारी नहीं थी. ऐसे में कई सवाल भी उठते हैं. पंचायत स्तर तक प्रशासनिक कर्मचारियों को ऐसे लोगों की मदद और सरकार की योजनाओं को पहुंचाने के लिए नियुक्त किया गया है. बावजूद इसके अधिकारियों को इसकी जानकारी क्यों नहीं है. हालांकि ETV BHARAT ने अधिकारियों को परिवार की परेशानियों से अवगत कराया है.

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