गरियाबंद: इंदागांव वन परिक्षेत्र के कुहीमाल, छैला, चिकली, धूपकोट और साहसखोल सहित अन्य जंगलों में मौजूद बेशकीमती साल और सागौन के पेड़ों की अवैध तरीके से धड़ल्ले से कटाई हो रही है. लेकिन वन विभाग को इसकी जानकारी नहीं है.
बता दें कि इंदा गांव वन क्षेत्र में सागौन,साल सहित अन्य कीमती पेड़ हैं और इन कीमती पेडों की संख्या में अब धीरे-धीरे कमी आ रही है. जिसका कारण वन अधिकारियों की उदासीनता को माना जा सकता है. इसकी वजह से लगातार छोटे-छोटे पेड़ों की बलि दे जा रही है.
पल्ला की कीमत 3 से 4 हजार रुपये
कोरोना काल की वर्तमान स्थिति में सागाैन के पल्ले की काफी मांग है. मुख्यालय की सीमा से लगे ओडिसा राज्य में एक पल्ला की कीमत करीब 3 से 4 हजार रुपये बताई जा रही है. यही वजह से है कि जंगल में छोटे पेड़ों की बलि दी जा रही है.
खोखले हैं विभाग के दावे
अवैध कटाई को रोकने के लिए सर्कल अधिकारी से लेकर बीट गार्ड पदस्थ हैं. लेकिन जिम्मेदार फील्ड में कम और इधर-उधर ज्यादा दिखते हैं. मतलब एक-दूसरे के भरोसे रहकर जंगल में पेड़ों की सुरक्षा करने का दावा करते हैं. लेकिन जंगल में पेड़ों की अवैध कटाई को देख विभाग की दावा पूरी तरह खोखली साबित हो रही है.
विभाग भी अवैध कटाई को आसानी से छुपा लेते हैं.
पेड़ों की अवैध कटाई के संबंध में खास बात यह है कि पेड़ों की कटाई के बाद तस्कर बड़ी चालाकी से बचे हिस्से को पूरी तरह गायब कर देते हैं या फिर आग लगा देते हैं, ताकि पेड़ कटाई की भनक विभाग अफसरों को न लग पाए और इससे विभाग के अफसर भी अवैध कटाई को आसानी से छुपा लेते हैं. यही वजह है कि वन विभाग के रिकॉर्ड में अवैध कटाई में कोई खास बढ़ोतरी नहीं बताया है, जबकि जंगल की जमीनी हकीकत कुछ और बयां करती है. हालांकि अधिकारी भी दबी जुबान मानते हैं कि पहले घने जंगल की तुलना में पेड़ों की संख्या इस समय बहुत कम देखने को मिल रही है. जिसका प्रमुख कारण ताबड़तोड़ पेड़ों की कटाई को माना जाता है.
सरकार करती है पर्यावरण संरक्षण का दावा
एक ओर तो राज्य सरकार पर्यावरण संरक्षण के लिए दावा करती है, तो दूसरी ओर उनके नुमाइंदे दावों पर पानी फेरने का काम कर रहे हैं. अब देखना ये होगा कि कीमती पेड़ों की अवैध कटाई पर विभाग के जिम्मेदार अधिकारी कब तक लगाम लगा पाते हैं और पर्यावरण संरक्षण के दावों को लब तक हकीकत में बदल पाते हैं.