गरियाबंद: सुपेबेड़ा में किडनी की बीमारी से पीड़ित मरीजों की चीख सड़क से सदन तक पहुंच चुकी है. इस मामले की गूंज अब विधानसभा में सुनाई दे रही है. जहां सुपेबेड़ा में लगातार किडनी की बीमारी से मौतों का सिलसिला बढ़ता जा रहा है वहीं सरकार की नजर में यहां होने वाली मौतें किडनी की बीमारी से नहीं हुई है. विधानसभा में खुद स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने कहा कि एक भी मौत किडनी की बीमारी से नहीं हुई है. उन्होंने सदन में कहा कि सुपेबेड़ा में ग्रामीण किडनी की बीमारी से पीड़ित हैं लेकिन मौत हृदय गति रुकने से हुई है.
200 से ज्यादा लोग किडनी की बीमारी से पीड़ित
सरकार का मानना है कि 200 से अधिक लोग यहां किडनी की बीमारी से पीड़ित हैं. ऐसे में स्वास्थ्य मंत्री के बयान पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं.
ETV भारत के सवाल
- सुपेबेड़ा पर सरकार विरोधाभासी बातें क्यों कर रही है
- क्या सभी किडनी मरीजों की मौत हार्ट स्ट्रोक से हुई ?
- सत्ता में आने के बाद सुपेबेड़ा के मुद्दे पर सरकार के सुर क्यों बदले ?
- रमन सरकार में कांग्रेस ने इसे बड़ा मुद्दा बताया था
- लेकिन सत्ता में आने के बाद कहीं इस पर लीपापोती तो नहीं हो रही !
200 से ज्यादा लोग किडनी की बीमारी से पीड़ित
दरअसल, सुपेबेड़ा में किडनी की बीमारी से मौत का आंकडा 65 से बढकर 71 हो गया है. वहीं 200 से ज्यादा लोग किडनी की बीमारी से से पीड़ित हैं. मामले में ग्रामीणों का कहना है कि इलाज से कोई फायदा नहीं हो रहा है, बल्कि बार-बार मीडिया में आने की वजह से उनका समाज में संबंध खराब हो रहा है.
अभी भी नए मरीज सामने आ रहे
समाज के लोग सुपेबेड़ा से दूरियां बना रहे हैं, जबकि डॉक्टरों का कहना है कि गांव में अभी 200 से ज्यादा लोग किडनी की बीमारी से पीड़ित हैं. लेकिन ग्रामीण इलाज में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं. अब देखना होगा कि सुपेबेड़ा में किडनी की बीमारी से पीड़ित लोगों का क्या होता है. ऐसे में क्या सरकार आंकड़े की जादूगरी दिखाकर अपनी पीठ थपथपाएगी, या लोगों की जिंदगी किडनी की बीमारी से बचाई जा सकेगी. ये सवाल अब भी बना हुआ है.