गरियाबंद: साल 2000 में जब छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश से अलग होकर राज्य बना था, तो उस समय शहर से लेकर गांव के लोगों ने अपने सुनहरे भविष्य के लिए सपने संजोए थे. उन्हें लगा था कि अब उनके अधूरे सपने पूरे होंगे. उनके अरमानों के पंख लगेंगे. उनके विकास के सपने पूरे होंगे, लेकिन यह सपना सिर्फ सपना ही बनकर रह गया.
प्रदेश के ज्यादातर गांव आज अपनी मूलभूत सुविधाओं के लिए सिस्टम से जूझ रहे हैं. आलम यह है कि केंद्रीय और राज्य स्तरीय योजनाएं लागू होने के बावजूद प्रदेश में कई ऐसे गांव मौजूद हैं, जहां सड़क, तो छोड़िए पगडंडी तक नहीं है. यह तस्वीर गरियाबंद जिले के ग्राम जामगुरियापारा का है. बरसात में स्थिति इतनी खराब हो जाती है कि बीमार लोगों तक एंबुलेंस भी नहीं पहुंच पाती है. यही हाल प्रदेश के कई ग्रामों और कस्बों का है.
जामगुरियापारा के ग्रामीणों की मानें, तो वे कई साल से मात्र एक सड़क के लिए प्रशासन से गुहार लगा रहे हैं. पिछले 5 से 10 सालों में सड़क न होने से सही समय पर इलाज न मिल पाने पर कई लोगों ने अपनी जान तक गंवा दी है. इसमें से कई लोगों ने तो रास्ते में ही दम तोड़ दिया था. दरअसल, मुख्य सड़क से जामगुरियापारा को जोड़ने वाला रास्ता लगभग डेढ़ किलोमीटर का है. जहां रास्तेभर में सिवाय किचड़ के कुछ नजर नहीं आता है.
रास्ते में कई जगहों पर कमर तक बरसात का पानी भरा रहता है. परेशानियां यहीं खत्म नही होती. गांव के अंदर गलियों तक का यही हाल है. जगह-जगह पानी और किचड़ ही दिखाई देता है. इस नजारे से ऐसा प्रतीत होता है कि, विकास की चिड़िया ने कभी इस ग्राम की ओर मुड़कर नहीं देखा हो.
पूर्व मुख्यमंत्री सडक बनाने की घोषणा की थी
ऐसा नहीं है कि सड़क बनाने के लिए कभी सिस्टम ने पहल न की हो, कई बार गलियों का निरीक्षण हो चुका है. नक्शे तक पास हो चुके हैं, बावजूद इसके सड़कें, तो छोड़िये रास्ते में मुरम का एक ढेंला तक नहीं डाला गया है. प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने खुद पंचायत मुख्यालय पहुंचकर इस गांव के लिए सडक बनाने की घोषणा की थी, लेकिन घोषणा कभी गांव के धरातल तक नहीं पहुंच सकी. शहरी चकाचौंध देखकर प्रदेश के विकास पर अपनी पीठ थपथपाने वाली शासन और प्रशासन के लिए यह बड़े दुख की बात है कि एक ग्रामीण गांव की इस हालत को देखकर गांव में रहने से अच्छा मरने की बात कर रहा है. सिस्टम यह भूल चुका है कि प्रदेश की आधे से अधिक जनता गांव में निवास करती है.