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गरियाबंद: 'इन ग्रामीणों को अब भी है विकास के पंख लगने का इंतजार, जरा एक नजर फेर लो भूपेश सरकार' - rural distress

गरियाबंद जिले के ग्राम जामगुरियापारा में बरसात में स्थिति इतनी खराब हो जाती है कि बीमार लोगों तक एंबुलेंस भी नहीं पहुंच पाती है. यही हाल प्रदेश के कई ग्रामों और कस्बों का है.

ग्रामीण गांव में रहने से अच्छा मरने की बात कर रहे.
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Published : Sep 26, 2019, 12:05 AM IST

गरियाबंद: साल 2000 में जब छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश से अलग होकर राज्य बना था, तो उस समय शहर से लेकर गांव के लोगों ने अपने सुनहरे भविष्य के लिए सपने संजोए थे. उन्हें लगा था कि अब उनके अधूरे सपने पूरे होंगे. उनके अरमानों के पंख लगेंगे. उनके विकास के सपने पूरे होंगे, लेकिन यह सपना सिर्फ सपना ही बनकर रह गया.

ग्रामीण गांव में रहने से अच्छा मरने की बात कर रहे.

प्रदेश के ज्यादातर गांव आज अपनी मूलभूत सुविधाओं के लिए सिस्टम से जूझ रहे हैं. आलम यह है कि केंद्रीय और राज्य स्तरीय योजनाएं लागू होने के बावजूद प्रदेश में कई ऐसे गांव मौजूद हैं, जहां सड़क, तो छोड़िए पगडंडी तक नहीं है. यह तस्वीर गरियाबंद जिले के ग्राम जामगुरियापारा का है. बरसात में स्थिति इतनी खराब हो जाती है कि बीमार लोगों तक एंबुलेंस भी नहीं पहुंच पाती है. यही हाल प्रदेश के कई ग्रामों और कस्बों का है.

जामगुरियापारा के ग्रामीणों की मानें, तो वे कई साल से मात्र एक सड़क के लिए प्रशासन से गुहार लगा रहे हैं. पिछले 5 से 10 सालों में सड़क न होने से सही समय पर इलाज न मिल पाने पर कई लोगों ने अपनी जान तक गंवा दी है. इसमें से कई लोगों ने तो रास्ते में ही दम तोड़ दिया था. दरअसल, मुख्य सड़क से जामगुरियापारा को जोड़ने वाला रास्ता लगभग डेढ़ किलोमीटर का है. जहां रास्तेभर में सिवाय किचड़ के कुछ नजर नहीं आता है.

रास्ते में कई जगहों पर कमर तक बरसात का पानी भरा रहता है. परेशानियां यहीं खत्म नही होती. गांव के अंदर गलियों तक का यही हाल है. जगह-जगह पानी और किचड़ ही दिखाई देता है. इस नजारे से ऐसा प्रतीत होता है कि, विकास की चिड़िया ने कभी इस ग्राम की ओर मुड़कर नहीं देखा हो.

पूर्व मुख्यमंत्री सडक बनाने की घोषणा की थी

ऐसा नहीं है कि सड़क बनाने के लिए कभी सिस्टम ने पहल न की हो, कई बार गलियों का निरीक्षण हो चुका है. नक्शे तक पास हो चुके हैं, बावजूद इसके सड़कें, तो छोड़िये रास्ते में मुरम का एक ढेंला तक नहीं डाला गया है. प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने खुद पंचायत मुख्यालय पहुंचकर इस गांव के लिए सडक बनाने की घोषणा की थी, लेकिन घोषणा कभी गांव के धरातल तक नहीं पहुंच सकी. शहरी चकाचौंध देखकर प्रदेश के विकास पर अपनी पीठ थपथपाने वाली शासन और प्रशासन के लिए यह बड़े दुख की बात है कि एक ग्रामीण गांव की इस हालत को देखकर गांव में रहने से अच्छा मरने की बात कर रहा है. सिस्टम यह भूल चुका है कि प्रदेश की आधे से अधिक जनता गांव में निवास करती है.

गरियाबंद: साल 2000 में जब छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश से अलग होकर राज्य बना था, तो उस समय शहर से लेकर गांव के लोगों ने अपने सुनहरे भविष्य के लिए सपने संजोए थे. उन्हें लगा था कि अब उनके अधूरे सपने पूरे होंगे. उनके अरमानों के पंख लगेंगे. उनके विकास के सपने पूरे होंगे, लेकिन यह सपना सिर्फ सपना ही बनकर रह गया.

ग्रामीण गांव में रहने से अच्छा मरने की बात कर रहे.

प्रदेश के ज्यादातर गांव आज अपनी मूलभूत सुविधाओं के लिए सिस्टम से जूझ रहे हैं. आलम यह है कि केंद्रीय और राज्य स्तरीय योजनाएं लागू होने के बावजूद प्रदेश में कई ऐसे गांव मौजूद हैं, जहां सड़क, तो छोड़िए पगडंडी तक नहीं है. यह तस्वीर गरियाबंद जिले के ग्राम जामगुरियापारा का है. बरसात में स्थिति इतनी खराब हो जाती है कि बीमार लोगों तक एंबुलेंस भी नहीं पहुंच पाती है. यही हाल प्रदेश के कई ग्रामों और कस्बों का है.

जामगुरियापारा के ग्रामीणों की मानें, तो वे कई साल से मात्र एक सड़क के लिए प्रशासन से गुहार लगा रहे हैं. पिछले 5 से 10 सालों में सड़क न होने से सही समय पर इलाज न मिल पाने पर कई लोगों ने अपनी जान तक गंवा दी है. इसमें से कई लोगों ने तो रास्ते में ही दम तोड़ दिया था. दरअसल, मुख्य सड़क से जामगुरियापारा को जोड़ने वाला रास्ता लगभग डेढ़ किलोमीटर का है. जहां रास्तेभर में सिवाय किचड़ के कुछ नजर नहीं आता है.

रास्ते में कई जगहों पर कमर तक बरसात का पानी भरा रहता है. परेशानियां यहीं खत्म नही होती. गांव के अंदर गलियों तक का यही हाल है. जगह-जगह पानी और किचड़ ही दिखाई देता है. इस नजारे से ऐसा प्रतीत होता है कि, विकास की चिड़िया ने कभी इस ग्राम की ओर मुड़कर नहीं देखा हो.

पूर्व मुख्यमंत्री सडक बनाने की घोषणा की थी

ऐसा नहीं है कि सड़क बनाने के लिए कभी सिस्टम ने पहल न की हो, कई बार गलियों का निरीक्षण हो चुका है. नक्शे तक पास हो चुके हैं, बावजूद इसके सड़कें, तो छोड़िये रास्ते में मुरम का एक ढेंला तक नहीं डाला गया है. प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने खुद पंचायत मुख्यालय पहुंचकर इस गांव के लिए सडक बनाने की घोषणा की थी, लेकिन घोषणा कभी गांव के धरातल तक नहीं पहुंच सकी. शहरी चकाचौंध देखकर प्रदेश के विकास पर अपनी पीठ थपथपाने वाली शासन और प्रशासन के लिए यह बड़े दुख की बात है कि एक ग्रामीण गांव की इस हालत को देखकर गांव में रहने से अच्छा मरने की बात कर रहा है. सिस्टम यह भूल चुका है कि प्रदेश की आधे से अधिक जनता गांव में निवास करती है.

Intro:स्लग---खाट पर सिस्टम
एंकर--- विकास के खोखले दावे, खाट पर सिस्टम, जीना हुआ मुहाल, आजादी के 70 साल बाद भी ऐसे हालात, किस चिडिया का नाम है विकास, ये तस्वीरे विकास के दावो की असलियत बताने के लिए काफी है, कुछ कमी रह गयी हो तो जरा ये भी सुन लीजिए.......
बाइट 1----विद्याधर, ग्रामीण.........
Body:वीओ 1----हम बात कर रहे है गरियाबंद जिले की आमाड पंचायत के आश्रित गॉव जामगुरियापारा की, 400 की आबादी वाले इस गांव में एक भी पहुंच मार्ग नही है, पगडंडी के सहारे ही लोग आज भी आना जाना करते है, ग्रामीणों को सबसे ज्यादा दिक्कत बारिश के दिनों में होती है, मुख्यमार्ग तक पहुंचने के लिए ग्रामीणों को एक किमी कीचड और पानी से गुजरना पडता है, कोई बीमार हो जाये तो खाट पर लेटाकर ही मुख्यमार्ग तक लाना पडता है, खाट पर मरीज को ले जाने वाली ये तस्वीरें दो दिन पहले की है, जब सिकलिन की बीमारी से जुझ रहे हरलाल नागेश की तबीयत अचानक बिगड गयी तो उसे ग्रामीणों की मदद से चारपाई पर लेटाकर अस्पताल पहुंचाया गया।
बाइट 2----सुरदास, ग्रामीण........
बाइट 3---दयाराम नागेश, ग्रामीण.............
वीओ 2----वैसे जामगुरियापारा में इस तरह की तस्वीरें कोई पहली बार देखने को नही मिली, ग्रामीणों के मुताबिक हर साल बारिश के तीन महीने गुजाराना उनके लिए बडा मुश्किल होता है, कोई बीमार हो जाये या किसी काम से शहर जाना पड जाये तो उनके लिए आफत खडी हो जाती है, यही नही अबतक आधा दर्जन से ज्यादा लोग ईलाज के आभाव में बीच रास्ते में ही दम तोड चुके है, ऐसा भी नही है कि ग्रामीणों ने कभी सडक की मांग ना की हो बल्कि पूर्व मुख्यमंत्री उनके पंचायत मुख्यालय पहुंचकर सडक बनाने की घोषणा कर चुके है, जिसे आज तक अमलीजामा नही पहनाया जा सका।
बाइट 4---मुरलीधर नागेश, ग्रामीण..........
बाइट 5--भंवरसिंह शांडिल्य, शिक्षक..........
Conclusion:फाईनल वीओ---सरकार के लिए दुधिया रोशनी में नहाया राजधानी का मैरिन ड्राइव और नया रायपुर विकास का मॉडल जरुर हो सकता है, प्रदेश के विकास का माडल नही हो सकता, छग की 70 प्रतिशत जनता गॉव में बसती है और जबतक गॉवों से ऐसी तस्वीरें आती रहेंगी तबतक तबतक प्रदेश का असली विकास नही हो सकता।
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