गरियाबंद: ये कहानी एक ऐसे पिता की है, जिसने अपनी जान की परवाह न करते हुए बेटे को मौत के मुंह से खींचकर नई जिंदगी दी. ये कहानी है देवभोग के मांझीपारा में जगदीश अग्रवाल की.
4 साल पहले बीमारी का पता चला
जगदीश के दिन की शुरुआत पिता के चरणों को स्पर्श कर होती है और हो भी क्यों ना आखिर वो पिता ही तो हैं जिनकी बदौलत जगदीश को दूसरी जिंदगी मिली है. करीब चार साल पहले जब डॉक्टरों ने जगदीश को ये बताया कि उनकी किडनी खराब है तो, उनके पैरों तले जमीन खिसक गई.
चेन्नई में ट्रांसप्लांट हुई किडनी
करीब 7 लाख रुपए खर्च करने के बाद जब रायपुर के डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए, तो इलाज के लिए जगदीश को विशाखापट्टनम और चेन्नई जाना पड़ा. यहां के डॉक्टरों ने आखिरकार उन्हें किडनी ट्रांसप्लांट की सलाह दी. साथ ही इसके लिए 25 लाख रुपए खर्च होने की जानकारी दी.
पिता ने दी नई जिंदगी
छोटी सी किराना दुकान चलाने वाले जगदीश के लिए इतनी बड़ी रकम का इंतजाम करना आसान नहीं था, बेटे को मौत के मुंह से निकालने के लिए बूढ़े पिता लक्ष्मीनारायण के पास अपनी किडनी देने के सिवाए और कोई रास्ता नहीं था और उन्होंने अपनी किडनी देकर बेटे को नई जिंदगी दी.
सालाना तीन लाख रुपए का आता है खर्च
जगदीश की दवाई और रुटीन चेकअप में अभी भी परिवार को सालाना 3 लाख रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं. परिवार की माली हालत लगातार कमजोर होती जा रही है और लगातार कर्ज के बोझ तले दबता जा रहा है, इसके बावजूद भी परिवार खुश है कि आज उनका बेटा सही सलामत उनके बीच मौजूद है.
पिता को दिया भगवान का दर्जा
सबसे अहम बात तो ये है कि जिस तरह पिता ने बुढ़ापे में बेटे के लिए अपनी जान दांव पर लगा दी ऐसे में इस बेटे के लिए पिता का दर्जा भगवान से बढ़कर हो गया है.