गरियाबंद : राजिम मेले की शुरुआत माघी पूर्णिमा से होती है. इस दिन हजारों श्रद्धालु त्रिवेणी संगम में श्रद्धा और आस्था की डुबकी लगाते (devotion and culture is called Rajim) हैं. फिर भक्ति में शक्ति के प्रतीक भगवान कुलेश्वरनाथ और भगवान राजीव लोचन के दर्शन करते हैं. 15 दिन तक चलने वाले मेले के अंतिम दिन महाशिवरात्रि को कुलेश्वरनाथ मंदिर में लाखों श्रद्धालु अपने आराध्य देव की पूजा अर्चना करने पहुंचते हैं.
महाशिवरात्रि तक लगता है मेला
राजिम मेले को माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक मनाये जाने के पीछे विशेष महत्व है. माघ पूर्णिमा भगवान राजीव लोचन का अवतरण दिवस है. महाशिवरात्रि भगवान भोलेनाथ के स्वयंवर का दिन. दोनों ही यहां साक्षात विराजमान हैं. भक्त 15 दिनों तक मेले के रूप में उत्सव मनाते हैं. मान्यता है कि माघ पूर्णिमा के दिन ओडिशा के भगवान जगन्नाथ बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ भगवान राजीव लोचन के जन्मोत्सव में शामिल होने राजिम आते हैं और पुरी मंदिर के पट इस दिन बंद रहते हैं.
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पुराणों में है जिक्र
राजिम मेला सदियों से चला आ रहा है. पुराणों में भी इसका जिक्र सुनने को मिलता है. मेले के नाम बदले मगर स्वरूप आज भी वहीx है. लोग आज भी उतनी ही श्रद्धा और भक्ति से यहां पहुंचकर मेले में शामिल होते हैं. छत्तीसगढ़ ही नही बल्कि देश के कोने-कोने और विदेशों से भी लोग यहां पहुंचते हैं.
संगम स्थल पर रेत में होती है आयोजित
राजिम मेला तीन नदियों के संगम स्थल पर रेत में आयोजित होता है. साधु संतों के पंडाल से लेकर सांस्कृतिक महोत्सव स्थल सबकुछ नदी की रेत में आयोजित होता है. 15 दिन यहां भक्ति और संस्कृति की अविरल धारा बहती रहती है. छत्तीसगढ़ी संस्कृति की छटा भी 15 दिन तक मेले में बिखरी दिखाई देती है. मुख्यमंच पर प्रतिदिन सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं. स्थानीय कलाकारों से लेकर प्रदेश के नामी कलाकार यहां अपनी प्रस्तुति देना सौभाग्य समझते हैं. देश के अलग-अलग हिस्सों से भी कलाकार यहां अपनी कला का प्रदर्शन करने पहुंचते हैं.
ये विश्व रिकॉर्ड हैं दर्ज
राजिम मेले के नाम दो विश्व रिकार्ड दर्ज हैं. पहला विश्व रिकॉर्ड 7 फरवरी 2018 को दर्ज हुआ, जिसमें 3 लाख 61 दीपक एक साथ जलाये गए थे. दूसरा विश्व रिकार्ड उसके अगले दिन 8 फरवरी को 2100 लोगों द्वारा एक साथ शंखनाद करने पर दर्ज हुआ. तब राजिम माघी पुन्नी मेले का नाम राजिम कल्प कुंभ था. साल 2019 में सरकार बदलने पर फिर से इसका नाम राजिम माघी पुन्नी मेला कर दिया गया.
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प्रशासन करती है ये व्यवस्थायें
मेले में लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं. शासन द्वारा मेले में कई तरह की व्यवस्थाएं की जाती है ताकि यहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की परेशानी ना हो. इसके अलावा उनकी सुरक्षा की भी पुलिस विभाग द्वारा चाकचौबंद व्यवस्था की जाती है.
श्रद्धालुओं की आस्था में कोई बदलाव नहीं
सनातन काल से चले आ रहे राजिम मेले ने कई उतार-चढ़ाव देखे. कई बदलाव भी देखे. कई स्वरूप भी बदले, लेकिन मेले के प्रति श्रद्धालुओं की आस्था में कोई बदलाव नहीं आया. आज भी श्रद्धालु यहां उसी आस्था के साथ पहुंचते हैं, जितनी भक्ति भावना से पहले पहुंचते थे. तभी तो पावन नगरी राजिम को मोक्षदायनी कहा जाता है.