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'जुगाड़ू' की हालत में नहीं हो रहा सुधार, अपनाए जा रहे सारे जुगाड़

उदंती सीता नदी टाइगर प्रोजेक्ट एरिया को साल 2000 में वन भैंसों की मौजूदगी के कारण अभयारण्य का दर्जा मिला था. इसके बावजूद यहां भैंसों की संख्या में इजाफा नहीं हो पाया है.

'जुगाड़ू' की हालत में नहीं हो रही सुधार
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Published : Apr 27, 2019, 9:15 PM IST

Updated : Apr 27, 2019, 11:24 PM IST

गरियाबंदः प्रदेश के राजकीय पशु वन भैंसा विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुके हैं. ये भैंसे अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं. इनके संरक्षण के लिए उदंती अभयारण्य में तमाम तरह के प्रयास किए जा रहे हैं. बावजूद इनकी संख्या में कोई इजाफा नहीं देखा जा रहा है.

'जुगाड़ू' की हालत में नहीं हो रही सुधार, अपनाए जा रहे सारे जुगाड़

कुछ समय पहले तक उदंती अभयारण्य का सबसे आक्रामक वन भैंसा माने जाने वाले जुगाड़ू की हालत भी बेहद नाजुक बताई जा रही है. ग्रामीणों का कहना का है कि जुगाडू दूसरे वन भैंसा से लड़ते हुए घायल हो गया है. वहीं वन विभाग भैंसे के बीमार होने की वजह पैंरों की नस में तकलीफ बता रहा हैं.

हालत में नहीं हो रहा सुधार
वन भैंसे की स्थिति को देखते हुए टाइगर प्रोजेक्ट के अधिकारियों ने उसके इलाज का प्रबंध करना शुरू कर दिया है. भैंसे को अब तक 9 इंजेक्शन लगाए जा चुके हैं, बावजूद इसके जुगाड़ू की हालत में कोई सुधार देखने को नहीं मिल रही है. हालांकि वन विभाग का ये भी कहना है कि बूढ़ा होने के कारण उसे दवाइयां असर नहीं कर रही.

नहीं हो रहा इजाफा
उदंती सीता नदी टाइगर प्रोजेक्ट एरिया को साल 2000 में वन भैंसों की मौजूदगी के कारण अभयारण्य का दर्जा मिला था. इसके बावजूद यहां भैंसों की संख्या में इजाफा नहीं हो पाया है. यहां एक-एक कर कई भैंस अपनी जान गवां चुके हैं.

अब बचे हैं सिर्फ 10 भैंसे
इस एरिया में फिलहाल 10 वन भैंसे मौजूद हैं. इनकी घटती संख्या को देखते हुए 6 भैंसों को तार के घेरे में जंगल जैसा माहौल देकर रखा गया है. इस अभयारण्य में मात्र एक ही मादा भैंस बची है. माना जा रहा है कि वो भी सिर्फ एक या दो बच्चे को ही जन्म दे पाएगी.

क्लोन पद्धति से बढ़ाने का हो रहा प्रयास
इस राजकीय पशु को पूरी तरह से विलुप्त होने से बचाने के लिए वन भैंसों का क्लोन बनाया जा रहा है. इसकी जिम्मेदारी हरियाणा के एक वैज्ञानिक इंस्टीट्यूट को दी गई है. फिलहाल एक मादा वन भैंसा का क्लोन बनाया गया है. ये कितना सफल होता है, ये तो वक्त ही बताएगा.

गरियाबंदः प्रदेश के राजकीय पशु वन भैंसा विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुके हैं. ये भैंसे अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं. इनके संरक्षण के लिए उदंती अभयारण्य में तमाम तरह के प्रयास किए जा रहे हैं. बावजूद इनकी संख्या में कोई इजाफा नहीं देखा जा रहा है.

'जुगाड़ू' की हालत में नहीं हो रही सुधार, अपनाए जा रहे सारे जुगाड़

कुछ समय पहले तक उदंती अभयारण्य का सबसे आक्रामक वन भैंसा माने जाने वाले जुगाड़ू की हालत भी बेहद नाजुक बताई जा रही है. ग्रामीणों का कहना का है कि जुगाडू दूसरे वन भैंसा से लड़ते हुए घायल हो गया है. वहीं वन विभाग भैंसे के बीमार होने की वजह पैंरों की नस में तकलीफ बता रहा हैं.

हालत में नहीं हो रहा सुधार
वन भैंसे की स्थिति को देखते हुए टाइगर प्रोजेक्ट के अधिकारियों ने उसके इलाज का प्रबंध करना शुरू कर दिया है. भैंसे को अब तक 9 इंजेक्शन लगाए जा चुके हैं, बावजूद इसके जुगाड़ू की हालत में कोई सुधार देखने को नहीं मिल रही है. हालांकि वन विभाग का ये भी कहना है कि बूढ़ा होने के कारण उसे दवाइयां असर नहीं कर रही.

नहीं हो रहा इजाफा
उदंती सीता नदी टाइगर प्रोजेक्ट एरिया को साल 2000 में वन भैंसों की मौजूदगी के कारण अभयारण्य का दर्जा मिला था. इसके बावजूद यहां भैंसों की संख्या में इजाफा नहीं हो पाया है. यहां एक-एक कर कई भैंस अपनी जान गवां चुके हैं.

अब बचे हैं सिर्फ 10 भैंसे
इस एरिया में फिलहाल 10 वन भैंसे मौजूद हैं. इनकी घटती संख्या को देखते हुए 6 भैंसों को तार के घेरे में जंगल जैसा माहौल देकर रखा गया है. इस अभयारण्य में मात्र एक ही मादा भैंस बची है. माना जा रहा है कि वो भी सिर्फ एक या दो बच्चे को ही जन्म दे पाएगी.

क्लोन पद्धति से बढ़ाने का हो रहा प्रयास
इस राजकीय पशु को पूरी तरह से विलुप्त होने से बचाने के लिए वन भैंसों का क्लोन बनाया जा रहा है. इसकी जिम्मेदारी हरियाणा के एक वैज्ञानिक इंस्टीट्यूट को दी गई है. फिलहाल एक मादा वन भैंसा का क्लोन बनाया गया है. ये कितना सफल होता है, ये तो वक्त ही बताएगा.

Intro:गरियाबंदः--- प्रदेश की शान कहलाने वाला राजकीय पशु वन भैंसा विलुप्ति के कगार पर पहुंच गए हैं एक और वन भैंस के घायल या फिर बीमार होने की खबर है कुछ समय पहले तक उदंती अभयारण्य का सबसे आक्रामक वन भैंसा माने जाने वाले जुगाड़ू नामक वन भैंसे की हालत बेहद नाजुक बताई जा रही है जहां ग्रामीणों का अनुमान है कि दूसरे वन भैंसे से लड़ाई में जुगाड़ू के घायल होने की आशंका है तो वही अधिकारी पैर की नस में तकलीफ होने के चलते बीमार होने की बात कह रहे हैं इन सबके बीच जुगाड़ू वन भैंसे की हालत बेहद खराब नजर आ रही है गांव के पास एक नाले में घंटों कभी पानी में तो कभी नाले के बगल में बैठा रहता है उठकर ठीक से चल नहीं पा रहा है हालात अब इतने खराब हैं कि वन भैंसे की स्थिति को देखते हुए टाइगर प्रोजेक्ट के अधिकारियों ने उसके इलाज के लिए प्रबंध करवाना प्रारंभ कर दिया है बंदूक से इंजेक्शन में दवाएं उसे दूर से दी जा रहे हैं अब तक 9 इंजेक्शन जुगाड़ू को लगवाए जा चुके हैं लेकिन फिर भी उसकी स्थिति सुधर नहीं रही है इन सबके बीच जुगाड़ू की यह स्थिति वन विभाग के लिए चिंता का कारण बनी हुई है नंदनवन से डॉक्टर जाड़िया तीन बार अभ्यारण में पहुंचकर जुगाड़ू के इलाज के लिए उसे इंजेक्शन दे चुके हैं लेकिन हालात सुधर नहीं रहे हैं चलने फिरने में मोहताज हो रहे जुगाड़ू की हालत अब इतनी खराब हो चुकी है कि उसे चारा सामने देना पड़ रहा है

उदंती सीता नदी टाइगर प्रोजेक्ट एरिया को सन 2000 में वन भैंसे की मौजूदगी के कारण है अभयारण्य का दर्जा मिला था बावजूद इसके यहां इनकी संख्या में इजाफा नहीं हो पाया अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे प्रदेश के राजकीय पशु के प्राकृतिक आवास होने के बावजूद अभयारण्य में एक एक कर मर रहे वन भैंसे वन्य प्रेमियों के चिंता का कारण बने हुए हैं वैसे अधिकारी बताते हैं कि जुगाड़ू वन भैंसा अपनी पूरी उम्र के आसपास जी चुका है बूढ़ा होने के चलते दवाइयां असर नहीं कर रही ऐसे में आधिकारिक इसके ठीक होने की उम्मीद लगाए बैठे हैं

केवल 10 बचे हैं

हम आपको बता दें कि उदंती सिस्टम थे टाइगर प्रोजेक्ट एरिया में 10 वन भैंसे मौजूद है घटती संख्या को देखते हुए इनमें से 6 को कई एकड़ के तार के घेरे वाले बारे में जंगल जैसा माहौल देखकर रखा गया है ताकि इनकी संख्या और ना हो


एक मात्र है मादा वन भैंसा

हम आपको बता दें कि वन भैंसा कोक विलुप्त होने से बचाने का पूरा दामोदर महज एक मात्र मादा वन भैंस पर टिका है क्योंकि एक ही मादा वन भैंसा बची है बाकी सब नर हैं वह भी अब बॉडी हो चुकी है वन विभाग ने इसे आशा नाम दिया है * ऐसा माना जा रहा है कि आशा एक या दो बच्चे ही और दे पाएगी

क्लोन पद्धति से बढ़ाने का हो रहा प्रयास

जब कोई रास्ता नहीं बचा प्रदेश के राजकीय पशु को पूरी तरह विलुप्त होने से बचाने का तब अंततः छत्तीसगढ़ के वन विभाग ने वह किया जिसकी उम्मीद नहीं थी शासन ने वन भैंसे का क्लोन बनाने की जिम्मेदारी एक वैज्ञानिक इंस्टीट्यूट को दी हरियाणा के करनाल स्थित इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने कुछ साल पहले छत्तीसगढ़ पहुंच एक वन भैंसे के चमड़ी का कुछ हिस्सा ले जाकर उससे क्लोन तैयार किया और एक मादा वन भैंसा बनाया है किंतु यह कितना सफल होगा उसमें वन भैंसे के गुण हैं या नहीं वन भैंसे की पीढ़ी को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी क्लोन कैसे और किस हद तक उठा पाएगा यह आने वाला कल ही बताएगा वैसे लोन अभी हरियाणा में है जिसे लाने पर पिछली सरकार में विचार चल रहा था

बाइट--- आरके रायस्त प्रभारी सहायक संचालक उदंती सिटी टाइगर प्रोजेक्टBody:।Conclusion:।
Last Updated : Apr 27, 2019, 11:24 PM IST
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