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SPECIAL: न चारे की कमी, न दाम बढ़े फिर डेयरी व्यवसाय से मोह भंग क्यों ? - animal feed vendor in gariaband

गरियाबंद में डिब्बाबंद दूध की डिमांड बढ़ने के बाद यहां के पशुपालक मवेशियों को पालने में रुचि नहीं ले रहे हैं. लोगों का कहना है कि दूध न बिकने, मजदूरों की कमी और पशुआहार महंगा होने के कारण डेयरी व्यवसाय में कोई भी रुचि नहीं ले रहा है.

disillusionment with animal husbandry
पशुपालन से किसानों का मोहभंग
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Published : Jun 17, 2020, 3:39 PM IST

Updated : Jun 17, 2020, 7:14 PM IST

गरियाबंद: छत्तीसगढ़ में न तो चारे की कमी है और न ही यहां दाम में ज्यादा बढ़ोतरी हुई है लेकिन डेयरी संचालकों का पशुपालन से मोहभंग होता नजर आ रहा है. जिले में चारा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है, लॉक डाउन की शुरुआत में 10 प्रतिशत दाम बढ़े थे लेकिन लोगों का मोह डिब्बाबंद दूध की तरफ बढ़ने और मजदूरों के न मिलने की वजह से डेयरी संचालकों के सामने मुश्किल खड़ी हो गई है.

चारा संकट नहीं, फिर भी बंद हो रही डेयरी

जहां लोग एक तरफ डिब्बाबंद दूध के उपयोग की तरफ ज्यादा झुके हैं तो वहीं ताजे दूध के उत्पादन में आने वाली ज्यादा लागत और बाजार से उतनी राशि मिलने में हो रही परेशानी की वजह से पशुपालक अब कम रुचि ले रहे हैं. वहीं दूसरी बड़ी परेशानी पशुपालन के लिए मजदूर ना मिलना भी है. डेयरी में गोबर आदि की साफ-सफाई, पशुओं को चारा देना, दिनभर उनकी देखरेख के लिए जब मजदूर नहीं मिलते तो पशुपालकों को सब कुछ खुद ही करना पड़ता है. नतीजतन बड़े घरों के पशुपालक खुद तो यह सब बमुश्किल कर लेते हैं, मगर नई पीढ़ी के पशुपालक इससे पीछे हट रहे हैं.

लॉकडाउन में बिक गए कई मवेशी

ETV भारत से बात करते हुए गरियाबंद के पशुपालक चुन्नीलाल भारती ने बताया कि लॉकडाउन के पहले इनके पास 15 से ज्यादा मवेशी थे, लेकिन लॉकडाउन में दूध का उत्पादन पूरी तरह ठप होने होने के बाद आधे से ज्यादा मवेशी इन्होंने बेच दिए हैं, हालांकि ये भी कह रहे हैं कि गरियाबंद में पशुओं के उपचार की भी सुविधा सही नहीं मिलने से यहां के पशुपालक परेशान रहते हैं, लेकिन मुख्य समस्या मजदूर ना मिलने और लोगों के डिब्बा बंद दूध की ओर रुख करने की है.

SPECIAL : लॉकडाउन में गायब रहे पेट्स लवर्स, बेरोजगारी के कगार पर शॉपकीपर


पशुपालन में रुचि नहीं ले रही नई पीढ़ी
ETV भारत की पड़ताल में ये बात सामने आई कि छत्तीसगढ़ के इस इलाके में पशुओं को जो चारा खिलाया जाता है अर्थात पशु आहार की कोई कमी नजर नहीं आ रही है. लॉकडाउन के बाद भी पशुआहार के दाम केवल 10 प्रतिशत ही बढ़े हैं लेकिन फिर भी पशुपालक अन्य दिक्कतों के चलते इसमें अब रुचि लेते नजर नहीं आ रहे हैं. ज्यादातर पशुपालक ज्यादा मेहनत और कम मुनाफा होने के चलते अपनी अगली पीढ़ी को इस काम से दूर रखना चाह रहे हैं.

पशुआहार की भी नहीं हो रही बिक्री

इधर पशुपालन कम होने से चारा बेचने वालों की भी दुकान बंद होने की कगार पर है. पशुआहार बेचने वालों की माने तो लॉकडाउन के कारण दुग्ध उत्पादन कम होने से चारे की डिमांड भी कम होने लगी है. इसके पीछे पशुआहार विक्रेता भी दूध की डिमांड में कमी आने को प्रमुख कारण मान रहे है.

VIDEO: गरियाबंद के मोहेरा पुल के पास दिखा गौर का झुंड

आंकड़ों की बात करें तो गरियाबंद जिले में कुल 3 लाख 95 हजार मवेशी हैं. जिनमें गाय, बैल, भैंस और बकरियां शामिल हैं. लेकिन दूध देने वाले मवेशियों की संख्या बेहद कम है. साथ ही डेयरियों की संख्या और भी कम है. जिले भर में छोटी-बड़ी मिलाकर केवल 50 डेयरी है क्योंकि ज्यादातर किसान ही पशु पालन करते हैं. इस लिहाज से कृषि का आंकड़ा भी काफी महत्व रखता है. जिले में 1 लाख 42 हजार 590 हेक्टेयर में जिले के 82 हजार किसान परिवार खेती करते हैं मगर इनमें से भी पशु पालन करने वालों की संख्या बेहद कम है. ज्यादातर किसान अब मशीनों पर आश्रित हो गए हैं. जिनके पास खुद की मशीन नहीं है वह जरूरत पड़ने पर किराए पर ट्रैक्टर थ्रेसर हार्वेस्टर मंगाकर खेती करते हैं लेकिन पशुपालन नहीं करते.

बता दें कि कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने के डर से लोग अब डेयरी संचालकों से दूध या दूध से बने दूसरे उत्पाद लेने की बजाय पैकेट बंद दूध लेना पसंद कर रहे हैं. जिससे लॉकडाउन के दौरान कई पशुपालकों की दूध ना बिकने से आर्थिक स्थिति खराब हो चुकी है. इसी वजह से पशुपालक अब पशुपालन करने में रुचि नहीं ले रहे हैं.

गरियाबंद: छत्तीसगढ़ में न तो चारे की कमी है और न ही यहां दाम में ज्यादा बढ़ोतरी हुई है लेकिन डेयरी संचालकों का पशुपालन से मोहभंग होता नजर आ रहा है. जिले में चारा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है, लॉक डाउन की शुरुआत में 10 प्रतिशत दाम बढ़े थे लेकिन लोगों का मोह डिब्बाबंद दूध की तरफ बढ़ने और मजदूरों के न मिलने की वजह से डेयरी संचालकों के सामने मुश्किल खड़ी हो गई है.

चारा संकट नहीं, फिर भी बंद हो रही डेयरी

जहां लोग एक तरफ डिब्बाबंद दूध के उपयोग की तरफ ज्यादा झुके हैं तो वहीं ताजे दूध के उत्पादन में आने वाली ज्यादा लागत और बाजार से उतनी राशि मिलने में हो रही परेशानी की वजह से पशुपालक अब कम रुचि ले रहे हैं. वहीं दूसरी बड़ी परेशानी पशुपालन के लिए मजदूर ना मिलना भी है. डेयरी में गोबर आदि की साफ-सफाई, पशुओं को चारा देना, दिनभर उनकी देखरेख के लिए जब मजदूर नहीं मिलते तो पशुपालकों को सब कुछ खुद ही करना पड़ता है. नतीजतन बड़े घरों के पशुपालक खुद तो यह सब बमुश्किल कर लेते हैं, मगर नई पीढ़ी के पशुपालक इससे पीछे हट रहे हैं.

लॉकडाउन में बिक गए कई मवेशी

ETV भारत से बात करते हुए गरियाबंद के पशुपालक चुन्नीलाल भारती ने बताया कि लॉकडाउन के पहले इनके पास 15 से ज्यादा मवेशी थे, लेकिन लॉकडाउन में दूध का उत्पादन पूरी तरह ठप होने होने के बाद आधे से ज्यादा मवेशी इन्होंने बेच दिए हैं, हालांकि ये भी कह रहे हैं कि गरियाबंद में पशुओं के उपचार की भी सुविधा सही नहीं मिलने से यहां के पशुपालक परेशान रहते हैं, लेकिन मुख्य समस्या मजदूर ना मिलने और लोगों के डिब्बा बंद दूध की ओर रुख करने की है.

SPECIAL : लॉकडाउन में गायब रहे पेट्स लवर्स, बेरोजगारी के कगार पर शॉपकीपर


पशुपालन में रुचि नहीं ले रही नई पीढ़ी
ETV भारत की पड़ताल में ये बात सामने आई कि छत्तीसगढ़ के इस इलाके में पशुओं को जो चारा खिलाया जाता है अर्थात पशु आहार की कोई कमी नजर नहीं आ रही है. लॉकडाउन के बाद भी पशुआहार के दाम केवल 10 प्रतिशत ही बढ़े हैं लेकिन फिर भी पशुपालक अन्य दिक्कतों के चलते इसमें अब रुचि लेते नजर नहीं आ रहे हैं. ज्यादातर पशुपालक ज्यादा मेहनत और कम मुनाफा होने के चलते अपनी अगली पीढ़ी को इस काम से दूर रखना चाह रहे हैं.

पशुआहार की भी नहीं हो रही बिक्री

इधर पशुपालन कम होने से चारा बेचने वालों की भी दुकान बंद होने की कगार पर है. पशुआहार बेचने वालों की माने तो लॉकडाउन के कारण दुग्ध उत्पादन कम होने से चारे की डिमांड भी कम होने लगी है. इसके पीछे पशुआहार विक्रेता भी दूध की डिमांड में कमी आने को प्रमुख कारण मान रहे है.

VIDEO: गरियाबंद के मोहेरा पुल के पास दिखा गौर का झुंड

आंकड़ों की बात करें तो गरियाबंद जिले में कुल 3 लाख 95 हजार मवेशी हैं. जिनमें गाय, बैल, भैंस और बकरियां शामिल हैं. लेकिन दूध देने वाले मवेशियों की संख्या बेहद कम है. साथ ही डेयरियों की संख्या और भी कम है. जिले भर में छोटी-बड़ी मिलाकर केवल 50 डेयरी है क्योंकि ज्यादातर किसान ही पशु पालन करते हैं. इस लिहाज से कृषि का आंकड़ा भी काफी महत्व रखता है. जिले में 1 लाख 42 हजार 590 हेक्टेयर में जिले के 82 हजार किसान परिवार खेती करते हैं मगर इनमें से भी पशु पालन करने वालों की संख्या बेहद कम है. ज्यादातर किसान अब मशीनों पर आश्रित हो गए हैं. जिनके पास खुद की मशीन नहीं है वह जरूरत पड़ने पर किराए पर ट्रैक्टर थ्रेसर हार्वेस्टर मंगाकर खेती करते हैं लेकिन पशुपालन नहीं करते.

बता दें कि कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने के डर से लोग अब डेयरी संचालकों से दूध या दूध से बने दूसरे उत्पाद लेने की बजाय पैकेट बंद दूध लेना पसंद कर रहे हैं. जिससे लॉकडाउन के दौरान कई पशुपालकों की दूध ना बिकने से आर्थिक स्थिति खराब हो चुकी है. इसी वजह से पशुपालक अब पशुपालन करने में रुचि नहीं ले रहे हैं.

Last Updated : Jun 17, 2020, 7:14 PM IST
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