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दुर्ग: थानों में काम करने वाली महिला स्वयं सेविकाओं को 5 महीने से नहीं मिला वेतन

नारंगी कलर की साड़ी में ये महिलाएं नगरीय निकाय क्षेत्रों के हर थानों में नजर आती हैं. अफसोस की इन्हें दिया जाने वाला नाममात्र का मानदेय भी पिछले पांच महिनों से नहीं मिला है.

महिला स्वयं सेविकाएं
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Published : Aug 16, 2019, 9:31 PM IST

दुर्ग: महिला पुलिस स्वयं सेविकाएं आज अपने नाम मात्र के वेतन के लिए तरस रही हैं. उन्हें पिछले पांच महीने से मानदेय नहीं मिला है. महिलाओं ने जल्द वेतन देने और वेतन में वृद्धि की मांग की है.

पिछले पांच महीनों से नहीं मिला मानदेय
नारंगी कलर की साड़ी में ये महिलाएं नगरीय निकाय क्षेत्रों के हर थानों में नजर आती हैं. ये पुलिस तो नहीं लेकिन पुलिस के लिए पिछले साल से कार्य कर रही है. थाने में आने वाले हर अपराधों पर इनकी नजर होती है और ये यथासंभव उन्हें सुलझाने में मदद भी करती हैं. लेकिन अफसोस की इन्हें दिया जाने वाला नाममात्र का मानदेय भी पिछले पांच महिनों से नहीं मिला है. ऐसे में इन्हें परिवार चलाने में भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.

महिला स्वयं सेविकाओं को नहीं मिला पिछले पांच महीने का वेतन

जल्द वेतन देने के साथ वेतनवृद्धि की मांग
प्रदेश की पूर्व भाजपा सरकार ने इन्हें महिला पुलिस स्वयं सेविका (चेतना) योजना के तहत भर्ती कराया था. महिला एवं बाल विकास विभाग के माध्यम से इन्हें नियुक्त किया गया है, लेकिन काम ये गृह विभाग से संबंधित कर रही है. महिलाओं के अनुसार महज 1 हजार रुपए प्रतिमाह इन्हें मानदेय दिया जाता है, जो आज के समय में बेहद कम है. महिलाओं का कहना है कि न सिर्फ उन्हें समय पर मानदेय दी जाए बल्कि उसमें वृद्धि भी की जाए.

महिला पुलिस स्वयं सेविकाएं कहलाती हैं ये महिलांए
शहर में ये महिलाएं, महिला पुलिस स्वयं सेविकाएं कहलाती हैं. जिले में करीब 4700 महिलाएं कार्य कर रही हैं. जिन्हें पांच महीने से वेतन नहीं दिया गया है. वहीं जिले के कलेक्टर का कहना है कि महिला स्वयं सेविकाओं को 5 महीने से मनादेय नहीं मिलने की जानकारी मिली है. विभाग से जानकारी लेकर वेतन देने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी.

बहरहाल महिला स्वयं सेविकाएं आज खाली पेट रहकर अपना फर्ज निभा रही हैं. ऐसे में देखना होगा कि ऊंट के मुंह में जीरे के समान मिलने वाला मानदेय उन्हें कब तक मिलता है.

दुर्ग: महिला पुलिस स्वयं सेविकाएं आज अपने नाम मात्र के वेतन के लिए तरस रही हैं. उन्हें पिछले पांच महीने से मानदेय नहीं मिला है. महिलाओं ने जल्द वेतन देने और वेतन में वृद्धि की मांग की है.

पिछले पांच महीनों से नहीं मिला मानदेय
नारंगी कलर की साड़ी में ये महिलाएं नगरीय निकाय क्षेत्रों के हर थानों में नजर आती हैं. ये पुलिस तो नहीं लेकिन पुलिस के लिए पिछले साल से कार्य कर रही है. थाने में आने वाले हर अपराधों पर इनकी नजर होती है और ये यथासंभव उन्हें सुलझाने में मदद भी करती हैं. लेकिन अफसोस की इन्हें दिया जाने वाला नाममात्र का मानदेय भी पिछले पांच महिनों से नहीं मिला है. ऐसे में इन्हें परिवार चलाने में भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.

महिला स्वयं सेविकाओं को नहीं मिला पिछले पांच महीने का वेतन

जल्द वेतन देने के साथ वेतनवृद्धि की मांग
प्रदेश की पूर्व भाजपा सरकार ने इन्हें महिला पुलिस स्वयं सेविका (चेतना) योजना के तहत भर्ती कराया था. महिला एवं बाल विकास विभाग के माध्यम से इन्हें नियुक्त किया गया है, लेकिन काम ये गृह विभाग से संबंधित कर रही है. महिलाओं के अनुसार महज 1 हजार रुपए प्रतिमाह इन्हें मानदेय दिया जाता है, जो आज के समय में बेहद कम है. महिलाओं का कहना है कि न सिर्फ उन्हें समय पर मानदेय दी जाए बल्कि उसमें वृद्धि भी की जाए.

महिला पुलिस स्वयं सेविकाएं कहलाती हैं ये महिलांए
शहर में ये महिलाएं, महिला पुलिस स्वयं सेविकाएं कहलाती हैं. जिले में करीब 4700 महिलाएं कार्य कर रही हैं. जिन्हें पांच महीने से वेतन नहीं दिया गया है. वहीं जिले के कलेक्टर का कहना है कि महिला स्वयं सेविकाओं को 5 महीने से मनादेय नहीं मिलने की जानकारी मिली है. विभाग से जानकारी लेकर वेतन देने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी.

बहरहाल महिला स्वयं सेविकाएं आज खाली पेट रहकर अपना फर्ज निभा रही हैं. ऐसे में देखना होगा कि ऊंट के मुंह में जीरे के समान मिलने वाला मानदेय उन्हें कब तक मिलता है.

Intro:पुलिस के कार्या में कंधे से कंधा मिलाकर कार्य करने वाली जिले की हजारों महिलाएं आज बगैर मानदेय के कार्य कर रही है । पिछले पांच माह से इन्हें मानदेय नहीं मिल सका है । उम्मीद की आस में ये कार्य तो कर रही है लेकिन अब परिवार की चिंता सताने लगी है .....Body:आरेज कलर की साडी में ये महिलाएं नगरीय निकाय क्षेत्रों के हर थानों में नजर आती है । ये पुलिस तो नहीं लेकिन पुलिस के लिए पिछले वर्ष से कार्य कर रही है । थानें में आने वाले हर अपराधों पर इनकी नजर हाती है ओर ये यथासंभव उन्हें सुलझाने में मदद भी करती है । लेकिन अफसोस की इन्हें दिया जाने वाला नाममात्र का मानदेय भी पिछले पांच महिलों से अप्राप्त है । ऐसे में इन्हें परिवार चलाने में भारी परेशानियों का सामना करना पड रहा है .....प्रदेश की पूर्व भाजपा सरकार ने इन्हें महिला पुलिस स्वयं सेविका (चेतना) योजना के तहत भर्ती कराया था । महिला एवं बाल विकास विभाग के माध्यम से इन्हें नियुक्त किया गया है लेकिन कार्य ये गृह विभाग से संबंधित कर रही है । महिलाओं के अनुसार महज 1 हजार रूपए प्रतिमाह इन्हें मानदेय दिया जाता है जो आज के समय में बेहद कम है । महिलाओं का कहना है कि न सिर्फ उन्हें समय पर मानदेय दिया जाए बल्कि उसमें वृद्धि भी की जाए ....Conclusion:शहर में ये महिलाएं महिला पुलिस स्वयं सेविकाएं कहलाती है । जिले में करीब 4700 महिलाएं कार्य कर रही है । जिन्हें पांच माह से वेतन नही दिया गया है । वही जिले के कलेक्टर का कहना है कि महिला स्वयं सेविका को 5 माह से मनादेह नही मिलने की जानकरी लगी है विभाग से जानकरी लेकर जल्द ही इस ओर कार्य किया जाएगा ....बहरहाल महिला स्वयं सेविकाएं आज खाली पेट रहकर अपना फर्ज निभा रही है । ऐसे में देखना होगा कि उंट के मुंह में जीरे के समान मिलने वाला मानदेय इन्हें कब तक प्राप्त होता है ।

बाईट 1- लोभन रंगी , महिला पुलिस स्वयं सेविका (शूट में)

बाईट 2- जामिनी देवांगन, महिला पुलिस स्वयं सेविका (साड़ी में)

बाईट 3- अंकित आनंद, कलेक्टर दुर्ग (शर्ट में )



कोमेन्द्र सोनकर,दुर्ग
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