दुर्ग: चिराग ही नहीं, शिक्षा और शिक्षित बच्चों से भी घर रोशन होता है. शिक्षा की लौ हर बच्चों में जगाने के लिए दुर्ग में किट्टू की पाठशाला बच्चों को निःशुल्क शिक्षा दे रही है. अक्सर सड़कों पर भीख मांगने या परिवार के साथ फुटपाथ पर जीवनयापन करने वाले बच्चे गलत रास्ते का चयन कर लेते हैं. ऐसे में बच्चों को निःशु्ल्क शिक्षा के साथ-साथ सही आचरण का ज्ञान देने का काम किट्टू की पाठशाला कर रही है. एक सामाजिक संस्था के इस कदम की सराहना भी हो रही है.
छत्तीसगढ़ के भिलाई में गरीब और फुटपाथ पर रहने वाले बच्चों को शिक्षित करने का एक संस्था ने बीड़ा उठाया है. ये संस्था ऐसे बच्चों को पढ़ा रही है, जो पहले चौक-चौराहे या सड़कों पर भीख मांग कर या फिर सामान बेचकर अपने माता-पिता के साथ जीवन यापन करते थे. जब से बच्चों को शिक्षा मिलनी शुरू हुई, ये बच्चे बड़ी लगन और मेहनत से पढ़ाई कर रहे हैं. वे डॉक्टर, सैनिक, शिक्षक और पुलिस बनने की ख्वाहिश अपने मन में जगा रहे हैं. इन बच्चों की दास्तां जानने के लिए ईटीवी भारत पहुंचा किट्टू की पाठशाला...
किट्टू की पाठशाला की शुरुआत 30 से 40 बच्चों से की गई
भिलाई के चन्द्रा-मौर्या टॉकिज के पीछे ऐसे लोग बसें हैं, जिनका खुद का ठिकाना नहीं है. ये लोग दूसरे प्रदेश से आकर मूर्ति बनाकर और बेचकर अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं. इन परिवारों के पास न तो रहने के लिए घर है और न ही अपने बच्चों को पढ़ाने के पैसे. कभी-कभी तो परिवार को भीख मांगकर जरूरी सामान खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ता है. इन सभी परेशानियों को देखते हुए एक सामाजिक संगठन ने इस बस्ती में रहने वालों बच्चों को पढ़ाने का बीड़ा उठाया. सामाजिक संगठन ने उसी बस्ती के बीच में झोपड़ीनुमा घर बनाकर शिक्षा की ज्योत बच्चों में जलाने को किट्टू की पाठशाला की शुरुआत की. शुरुआत में 15 से 20 बच्चे पाठशाला में पढ़ाई करने आते थे. हालांकि एक माह बाद अब 30 से 40 बच्चे नियमित दो घंटे पढ़ाई करते हैं. इन बच्चों को इस पाठशाला में पढ़ाने के अलावा इनके जीवनशैली में बदलाव भी लाया जा रहा है, ताकि इनका भविष्य संवर सके.
शुरुआती दौर में होती थीं दिक्कतें, अब बच्चे पढ़ाई में ले रहे रुचि
ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान किट्टू की पाठशाला के टीचर ने बताया कि शुरुआत में काफी परेशानी हुई. पहले इस पाठशाला में आने से बच्चे डरते थे. धीरे-धीरे बच्चे पढ़ाई के प्रति खुद रुचि दिखाने लगी. यह बच्चे पहले सड़कों पर घूम-घूम कर लोगों से पैसे मांगते थे. सामान बेचकर अपना जीवन यापन करते थे. ऐसे में इस संस्था ने इन बच्चों को पढ़ाने का बीड़ा उठाया. संस्था का उद्देश्य बच्चों की शिक्षा है. टीचर कहती हैं कि किट्टू की पाठशाला में रोजाना 2 से ढाई घंटे क्लास होती है. 30 से 40 बच्चे रोजाना पढ़ाई करने आते हैं. इन बच्चों को संस्था द्वारा पेंसिल, स्लेट, कॉपी और किताब दी गई है. सुविधा मिलने पर बच्चे भी पढ़ाई के प्रति रुचि दिखा रहे हैं.
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बच्चे पढ़ कर बनना चाह रहे बड़े अफसर
जब ईटीवी भारत ने बच्चों से बातचीत की तो उन्होंने कहा कि उन्हें यहां पढ़ना बहुत अच्छा लग रहा है. पहले वह सड़कों पर घूम-घूम कर मूर्तियां बेचा करते थे. या फिर भीख मांगते थे. जब से बच्चे इस स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं. बच्चों की रुचि पढ़ाई की ओर बढ़ गई है. बच्चे पढ़ाई कर डॉक्टर, इंजीनियर, शिक्षक, पुलिस बनने के साथ-साथ स्कूल खोलने की बात कह रहे हैं. इन बच्चों के हौसले देखकर साफ पता चलता है कि इनको अपने भविष्य में आगे बढ़न की ललक लग चुकी है.