दुर्गः पंडवानी की 'रानी' तीजन बाई की कहानी जल्द ही सिल्वर स्क्रीन पर नजर आएगी. तीजन बाई ने पंडवानी गायन से छत्तीसगढ़ का नाम दुनियाभर में रोशन किया है. पद्म विभूषण तीजन बाई पर बनने वाली फिल्म में उनका किरदार विद्या बालन निभाएंगी. उनके नाना का रोल सदी के महानायक अमिताभ बच्चन करेंगे. खबर है कि तीजन बाई से मिलने, उनके जीवन के बारे में जानने और छत्तीसगढ़ी सीखने विद्या बालन जल्द ही प्रदेश आने वाली हैं. 16 मार्च 2019 को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों उन्हें पद्म विभूषण सम्मान मिला था.
तीजन बाई छत्तीसगढ़ की पहली ऐसी शख्सियत होंगी, जिन पर बॉलीवुड में हिंदी फिल्म बनने वाली है. ऐसा बताया जा रहा है कि इसे लेकर फिल्म के प्रोड्यूसरों ने तीजन बाई के साथ ही सारी औपचारिकताएं पूरी कर ली हैं और उनकी सहमति भी ले ली है. ऐसी संभावना है कि अगले साल फरवरी-मार्च तक फिल्म की शूटिंग शुरू हो सकती है.
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भिलाई के गनियारी में जन्मी थीं तीजन बाई
विदेश में पंडवानी की कला को नया आयाम देने वाली तीजन बाई का जन्म छत्तीसगढ़ के भिलाई के गनियारी गांव में 24 अप्रैल 1956 को हुआ था. उनका जन्म प्रदेश के प्रसिद्ध पर्व तीजा के दिन हुआ था इसलिए उनकी मां ने उनका नाम तीजन रख दिया. तीजन बाई के पिता का नाम चुनुकलाल पारधी और माता का नाम सुखवती था. तीजन अपने माता-पिता की पांच संतानों में सबसे बड़ी थीं. 13 साल की उम्र में पंडवानी को मंच पर प्रस्तुत करने वाली तीजन के जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए. उनका जीवन संघर्षों भरा रहा. पारधी जनजाति में जन्म लेने वाली तीजन ने जब पंडवानी गायन में कदम रखा तो उन्हें समाज से निष्कासन भी झेलना पड़ा.
नाना ने पहचाना हुनर
उनके नाना का नाम ब्रजलाल था. बचपन में वे अपने नाना से महाभारत की कहानियां सुनती थीं, जो धीरे-धीरे उन्हें याद होती चली गईं. तीजन के इस हुनर को उनके नाना बृजलाल ने सबसे पहले पहचाना था. वह तीजन को पंडवानी गाना सिखाते थे. बृजलाल छत्तीसगढ़ी लेखक सबल सिंह चौहान की महाभारत की कहानियां तीजन को सुनाते थे, जिसे वह याद करती जातीं थीं. वह अपने जीवन में कभी पढ़ाई-लिखाई भी नहीं कर पाईं. दुर्ग जिले के चंद्रखुरी गांव में तीजन ने पंडवानी को पहली बार मंच पर उतारा था.
इंदिरा गांधी भी हुईं थी प्रभावित
तीजन पहली महिला थीं, जिन्होंने कापालिक शैली में पंडवानी गायन किया. पहले के समय में पंडवानी को महिलाएं सिर्फ बैठकर गा सकती थीं, जिसे वेदमती शैली कहा जाता है. इसके साथ ही पुरुष वर्ग खड़े होकर पंडवानी गायन करते थे, जिसे कापालिक शैली कहा जाता है. तीजन के पंडवानी गायन शैली से देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी प्रभावित हुईं थीं.
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क्या है पंडवानी गायन ?
पंडवानी छत्तीसगढ़ का वह एकल नाट्य है जिसका मतलब है पांडववाणी (पांडवकथा) यानी महाभारत की कथा. ये कथाएं छत्तीसगढ़ की परधान और देवार छत्तीसगढ़ की जातियों की गायन परंपरा है. परधान जाति के कथा वाचक या वाचिका के हाथ में 'किंकनी' (पारंपरिक वाद्य यंत्र) होता है और देवारों के हाथों में र्रूंझू (वाद्य यंत्र) होता है.
विदेशों में लहराया पंडवानी का परचम
पंडवानी में दुशासन वध के प्रसंग पर तीजन का पॉवरफुल प्रदर्शन सबसे ज्यादा लोकप्रिय है. तीजन की लोकप्रियता छत्तीसगढ़ के साथ-साथ दूसरे राज्यों में भी है. 1980 में तीजन बाई ने सांस्कृतिक राजदूत के रूप में इंग्लैंड, फ्रांस, स्विट्ज़रलैंड, जर्मनी, टर्की, माल्टा, साइप्रस, रोमानिया और मॉरीशस की यात्रा की.
मिल चुके हैं कई पुरस्कार
- 1988 में पद्मश्री सम्मान मिला.
- 1995 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार.
- 2003 में कला के क्षेत्र में पद्म भूषण से अलंकृत की गईं.
- 2007 में नृत्य शिरोमणि से भी सम्मानित किया जा चुका है.
- 2019 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया.
- 2017 में खैरागढ़ संगीत विवि से डी लिट की मानद उपाधि.
- अब तक 4 डी लिट सम्मान मिले.
- जापान में मिला फुकोका पुरस्कार.