धमतरी: संस्थागत प्रसव के मामले में धमतरी जिले के सरकारी अस्पतालों के प्रति गर्भवती महिलाओं का विश्वास बढ़ा है.यही वजह है कि अब सरकारी अस्पतालों में महिलाओं की भीड़ बढ़ती जा रही है. यहां रोजाना बड़ी संख्या में डिलीवरी से संबंधित केस आ रहे हैं. इनमें कांकेर,बालोद और धमतरी सहित गरियाबंद से भी गर्भवती महिलाएं यहां पहुंचती है. जो ये मानती है कि संस्थागत प्रसव के लिए सरकारी अस्पताल से अच्छा कोई अस्पताल नहीं है.
जननी सुरक्षा योजना शुरू होने के बाद से ज्यादातर महिलाएं जागरूक हैं जो संस्थागत प्रसव को महत्व दे रही हैं. एक समय जिले में संस्थागत प्रसव की स्थिति 13 फीसदी ही हुआ करती थी लेकिन आज यह 95 फीसदी हो गई है. जिले के अस्पतालों में भी सुविधाएं बढ़ी है. इसमें स्वास्थ्य कार्यकर्ता, मितानिन,आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की विशेष भूमिका है. यही वजह है कि जागरूकता के चलते पहले और अब की स्थिति में काफी अंतर है.
कोरोना काल में स्वास्थ्य कार्यकर्ता निभा रहे अहम भूमिका
कोरोना के इस चुनौतीपूर्ण दौर में खुद की परवाह किए बगैर मरीजों की देखभाल और इलाज करना स्वास्थ्यकर्मियों के लिए बेहद मुश्किल होता है.कोरोना काल में भी स्वास्थ्य कार्यकर्ता सफलतापूर्वक प्रसव करा रहे हैं.पिछले 1 वर्ष से लेकर अब तक जिले में करीब 13588 गर्भवती महिलाओं का संस्थागत प्रसव कराया चुका है. इनमें से 11073 गर्भवती महिलाओं की नार्मल डिलीवरी कराई गई है तो वहीं 2515 गर्भवतियों की सिजेरियन डिलीवरी कराई गई है. जिसमें जच्चा और बच्चा दोनों स्वस्थ हैं. इसके अलावा 35 कोविड संक्रमित महिलाओं का भी प्रसव कराया जा चुका है.
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कोरोना संक्रमित गर्भवती महिलाओं के लिए भी सुविधाएं
धमतरी जिला अस्पताल में मार्च में कुल 129 नार्मल डिलीवरी हुई और 21 सिजेरियन डिलीवरी हुई है. वहीं अप्रैल में अब तक 95 केस में नार्मल डिलीवरी हुई है. स्वास्थ्य स्टाफ का कहना है कि कोरोना काल में भी स्वास्थ्य सेवा लगातार जारी है. जो गर्भवती महिलाएं आती है, उनका पहले एंटीजन टेस्ट कराया जाता है. डिलवरी के समय पीपीई किट पहन कर ही डिलीवरी कराते हैं. कोरोना संक्रमित गर्भवतियों के लिए अलग से सेटअप तैयार किया गया है. उनका कहना है कि पहले नॉर्मल डिलीवरी कराने का प्रयास किया जाता है. स्थिति नाजुक होने पर ही सिजेरियन किया जाता है.
क्या है संस्थागत प्रसव ?
सरकारी योजनाओं के कारण 98% संस्थागत प्रसव होते हैं.बता दें कि संस्थागत प्रसव करने वाली महिला को 1400 रुपये नगद और आने-जाने के लिए महतारी एक्सप्रेस की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है.इसके अलावा 48 घंटे तक इलाज और एक साल तक शिशु और माता को निशुल्क उपचार के अलावा दवाइयां उपलब्ध कराई जाती है.अस्पताल में सिजेरियन प्रसव के अलावा प्रसव के बाद नवजात कमजोर है तो उनके बेहतर इलाज के लिए शिशु गहन चिकित्सा वार्ड भी संचालित किए जाते हैं. जहां एडमिट जिले में 170 उपस्वास्थ्य केंद्र हैं. इन उपस्वास्थ्य केन्द्रों में भी नॉर्मल डिलवरी का प्रयास किया जाता है.
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सरकारी अस्पतालों के प्रति बढ़ा रुझान
जिले में स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की सक्रियता से सुरक्षित प्रसव का रिकॉर्ड कायम किया जा रहा है. वहीं जच्चा-बच्चा की मृत्यु दर पर भी लगभग नियंत्रण पा लिया गया है.ऐसे में सरकारी अस्पतालों के प्रति आम लोगों का रुझान भी बढ़ा है. यही वजह है कि पिछले कुछ सालों में संस्थागत प्रसव की संख्या में इजाफा दर्ज किया गया है.